माँग रहा है अपनी पहचान... नाम है डोनाल्ड ट्रंप

Jun 21, 2025 - 10:22
Jun 21, 2025 - 10:22
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माँग रहा है अपनी पहचान... नाम है डोनाल्ड ट्रंप

आजकल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप गली-गली घूमकर अपनी पहचान का सम्मान और श्रेय माँगते नज़र आ रहे हैं। लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि सम्मान कोई वस्तु नहीं होती जो बाजार या गलियों में माँगने से मिल जाए। यह तो कर्मों से अर्जित होता है, और वही व्यक्ति इसका अधिकारी होता है जो निस्वार्थ सेवा और सत्य के मार्ग पर चलता है।

जब पहलगाम में एक निर्दोष मानव की हत्या आतंकियों ने धर्म के नाम पर कर दी, तब ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। लेकिन जब भारत ने आतंकियों पर निर्णायक प्रहार किया, तब ट्रंप बेचैन हो उठे। इतना कि भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फायर का श्रेय खुद लेने लगे। यह दिखाता है कि ट्रंप की सोच मानवता की नहीं, बल्कि अवसरवादी और आतंकी हितों के अधिक करीब है।

दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फायर का निर्णय भारत ने अपनी शर्तों पर, अपने तरीके से लिया। इसमें ट्रंप की कोई भूमिका नहीं थी — न भारत ने कभी मानी, ना ही पाकिस्तान ने सीज़  फायर करवाने का श्रेय अमेरिका को दिया। लेकिन जब G7 जैसे वैश्विक मंच पर भारत ने सच्चाई खुलकर रखी, तो ट्रंप वह मंच बीच में ही छोड़कर चले गए। यह या तो भारत की सच्चाई से भागना था, या फिर ईरान-इज़राइल संघर्ष में अपनी भूमिका स्थापित करने की एक और कोशिश।

भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद पर उसका रुख सख्त था, है और रहेगा। मध्यस्थता का कोई सवाल नहीं उठता — भारत और पाकिस्तान के बीच के मुद्दे भारत स्वयं सुलझा सकता है, और यही बात भारत ने ट्रंप को फोन पर भी साफ शब्दों में कह दी थी।

इसके बावजूद यदि ट्रंप प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिका बुलाते हैं, तो यह साफ है कि वे अब सच्चाई से मुँह चुरा रहे हैं। अगर ट्रंप को सम्मान क्या होता है यह जानना है, तो उन्हें मोदी जी से सीख लेनी चाहिए — जो जहां भी जाते हैं, लोग उन्हें सम्मानपूर्वक पैर छूते हैं, गले लगाते हैं, और उन्हें पूरे देश का प्रतिनिधि मानकर आदर करते हैं। मोदी जी उस सम्मान को अपने देश को समर्पित कर देते हैं।

इसके उलट ट्रंप हैं, जो केवल अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के लिए दुनिया भर में "सम्मान का कटोरा" लिए घूम रहे हैं। आज ट्रंप की हालत यह हो गई है कि एक आतंकी छवि वाले देश पाकिस्तान के कमजोर आर्मी चीफ असीम मुनीर जैसे लोगों के साथ मंच साझा करके खुद को प्रासंगिक साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।

कभी ईरान धमकी देता है, कभी तालिबान आँखें दिखाता है — और ट्रंप सम्मान की तलाश में भटकते रहते हैं। लेकिन सच्चा सम्मान न तो ज़ोर से मिलता है, न झूठ से — वह तो मानवता, सच्चाई और आतंकवाद के खिलाफ अडिग संघर्ष से अर्जित होता है।

Disclaimer: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार और मत लेखक के निजी विचार हैं। ये आवश्यक नहीं कि प्रकाशक/मंच/संस्था के विचारों से मेल खाते हों। इस लेख की किसी भी जानकारी, तथ्य या राय के लिए केवल लेखक ही उत्तरदायी हैं।

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Shyamanand Mishra "मैं एक स्वतंत्र भारतीय नागरिक हूं। जो समाज, संस्कृति, राजनीति और मानवीय मुद्दों पर निष्पक्ष दृष्टिकोण के साथ अपनी राय रखता हूं। मेरा मानना है कि राय विचार देना सिर्फ ख़बर देने का माध्यम नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी और बदलाव का जरिया है। सत्य की खोज और संवेदनशीलता के साथ जन-मन की आवाज़ बनना ही सही उद्देश्य है।" "यह मेरे अपने व्यक्तिगत विचार और भावनाएँ हैं। इनका उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है, और न ही ये किसी संस्था, व्यक्ति या समूह का आधिकारिक दृष्टिकोण दर्शाते हैं। कृपया इन्हें एक स्वतंत्र सोच के रूप में देखा जाए।