कथावाचन किसे करना चाहिए, किसका अधिकार? By Shyamanand Mishra

Jun 29, 2025 - 17:16
Jun 29, 2025 - 17:18
 0
कथावाचन किसे करना चाहिए, किसका अधिकार? By Shyamanand Mishra

कथावाचन का अधिकार उस हर व्यक्ति को है, जो सच्चे मन से धर्म को आत्मसात करता है—चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग या पृष्ठभूमि से क्यों न हो। धर्म का मर्म जाति में नहीं, बल्कि भावना, श्रद्धा और आचरण में होता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति अपनी असली पहचान छुपाकर, झूठे नाम और स्वरूप से धर्म प्रचार करता है, तो वह न केवल धर्म का अपमान करता है, बल्कि यजमानों को धोखा देकर अपने अधूरे ज्ञान का व्यापार भी करता है। ऐसे कथावाचकों का सामाजिक बहिष्कार और कानूनी कार्रवाई आवश्यक है—लेकिन अपमान, मारपीट या हिंसा नहीं।

दुर्भाग्यवश, जब ऐसे मामलों में कानून ने अपना कार्य आरंभ किया, तो कुछ राजनीतिक शक्तियों ने उन्हें 'पीड़ित' घोषित कर, आर्थिक सहायता और पुरस्कारों के ज़रिए अयोग्यता को मान्यता दे दी। यही है ‘चोरी और सीनाजोरी’ का जीवंत उदाहरण।

कुछ ब्राह्मण वर्ग का यह तर्क है कि कथावाचन, यज्ञ, और पूजा-पाठ केवल उनका अधिकार है। परंतु अधिकार के साथ कर्तव्य भी जुड़ा होता है। जब कोई ब्राह्मण अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता, तो वह अधिकार खो देता है। ऋषि विश्वामित्र, क्षत्रिय कुल में जन्मे थे, लेकिन अपने तप, ज्ञान और कर्तव्य से ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। उन्होंने ही गायत्री मंत्र की रचना की—जिसका जाप आज भी ब्राह्मण समुदाय श्रद्धा से करता है।

इस धरती के प्रथम भागवत कथा वाचक सुखदेव ऋषि ने निस्वार्थ भाव से राजा परीक्षित को मोक्ष हेतु भागवत कथा सुनाया था। 

आज दुर्भाग्य से, कई कथावाचक केवल अपनी प्रसिद्धि, धन और यश के लिए कथा कर रहे हैं। उनका उद्देश्य मोक्ष या मानव कल्याण नहीं, बल्कि मंच, माला और महंगी फीस है। धर्म अब सेवा नहीं, एक बाजार बन गया है—जहाँ कथा वही सुन सकता है, जिसके पास धन हो। यदि यही सोच बन जाए, तो कथावाचक का ब्राह्मण होना कोई विशेषता नहीं रह जाती।

ध्यान रहे, राही मासूम रज़ा (एक मुस्लिम लेखक) ने जब 'महाभारत' जैसे महान धारावाहिक की पटकथा लिखी, या संजय खान ने ‘जय हनुमान’ जैसे धार्मिक धारावाहिक का निर्माण किया—तो किसी ने उनकी धार्मिक पहचान को आधार बनाकर बहिष्कार की माँग नहीं की। धर्म किसी एक जाति, मज़हब या वर्ग की जागीर नहीं है। भगवान ने कभी नहीं कहा कि केवल ब्राह्मण कुल में ही धर्म होगा।

आज भी समाज में ढोंगी बाबाओं की भरमार है—आसाराम, राम रहीम जैसे लोग—जो धर्म का लिबास ओढ़ कर समाज को गुमराह करते रहे, लेकिन अंततः उन्हें उनके कर्मों का दंड मिला।

किसी भी इंसान का असली ब्राह्मण होना उसके जन्म से नहीं, उसके कर्म, आचरण और ज्ञान से तय होता है। जब वह अपने धर्म, अपने कर्तव्यों से भटकता है, तो वह 'ब्राह्मण' नहीं बल्कि एक 'दानव' बन जाता है।

समाज को आज ऐसे ही दानवों से चेतना चाहिए। धर्म का उद्देश्य सेवा है, व्यापार नहीं। योग्यता किसी जाति से नहीं, प्रभु की कृपा से मिलती है। जिसे प्रभु ने जो गुण दिया है, उसे सत्यनिष्ठा से निभाए—किसी और की पहचान लेकर अपने को श्रेष्ठ दिखाने की आवश्यकता नहीं।

जय सनातन धर्म।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

Shyamanand Mishra "मैं एक स्वतंत्र भारतीय नागरिक हूं। जो समाज, संस्कृति, राजनीति और मानवीय मुद्दों पर निष्पक्ष दृष्टिकोण के साथ अपनी राय रखता हूं। मेरा मानना है कि राय विचार देना सिर्फ ख़बर देने का माध्यम नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी और बदलाव का जरिया है। सत्य की खोज और संवेदनशीलता के साथ जन-मन की आवाज़ बनना ही सही उद्देश्य है।" "यह मेरे अपने व्यक्तिगत विचार और भावनाएँ हैं। इनका उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है, और न ही ये किसी संस्था, व्यक्ति या समूह का आधिकारिक दृष्टिकोण दर्शाते हैं। कृपया इन्हें एक स्वतंत्र सोच के रूप में देखा जाए।