श्रावण मास 2025: शिव की कृपा पाने का पावन समय! जानें व्रत के नियम, पूजा विधि और चातुर्मास का महत्व

श्रावण मास: माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की उनकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने श्रावण मास के दौरान पार्वती जी की इच्छा पूर्ण की. यही कारण है कि श्रावण मास को भगवान शिव अत्यंत प्रिय मानते हैं. इसी मास में उनका माता पार्वती से पुनर्मिलन हुआ था. इस कारण, आज भी श्रावण मास में अनेक कन्याएं भगवान शिव की आराधना करती हैं और शिवलिंग की श्रद्धा से पूजा करती हैं ताकि उन्हें भी योग्य जीवनसाथी प्राप्त हो सके. श्रावण मास का महत्व: ‘श्रावण’ नाम श्रावण नक्षत्र से लिया गया है, क्योंकि इस मास की पूर्णिमा श्रावण नक्षत्र और मकर राशि में होती है. यह मास भगवान शिव और विष्णु दोनों की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है. समुद्र मंथन और भगवान शिव का नीलकंठ स्वरूप: समुद्र मंथन की कथा हम सभी जानते हैं. मंथन के दौरान, सबसे पहली चीज़ जो निकली वह "हलाहल" (विष) थी और भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए उस विष का पान किया. विष के कारण उनके शरीर का तापमान बढ़ गया. सभी देवी-देवताओं ने तापमान कम करने की कोशिश की लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. तब भगवान शिव ने अपने सिर पर चंद्रमा धारण किया जिससे तापमान कम हो गया. देवराज इंद्र ने भी तापमान कम करने के लिए भारी वर्षा की, जो श्रावण मास में नीलकंठ महादेव पर जल चढ़ाने का एक कारण बन गया, क्योंकि यह सब श्रावण मास में ही हुआ था. चातुर्मास व्रत: चातुर्मास व्रत का आरंभ देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी) से होता है और समाप्ति उत्थान एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी) पर होती है.वैदिक पंचांग के अनुसार इसमें चार पवित्र मास आते हैं: श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक इन चार महीनों में उपवास, तपस्या, भक्ति सेवा और सात्विक जीवन का पालन किया जाता है. चातुर्मास में उपवास के नियम:  पहला महीना (श्रावण): 10 जुलाई – 8 अगस्त. इस महीने में हरी पत्तेदार सब्जियों से परहेज किया जाता है. अपवाद - धनिया पत्ती, मेथी पत्ती, पुदीना और करी पत्ती. हालाँकि, पत्ता गोभी ली जा सकती है क्योंकि यह शाक नहीं है. दूसरा महीना (भाद्रपद): 9 अगस्त – 6 सितंबर. दही और ऐसे भोजन जिनमें दही मुख्य सामग्री हो, जैसे कढ़ी, लस्सी, छाछ आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. अपवाद - चरणामृत का सम्मान करना चाहिए, भले ही उसमें दही हो. तीसरा महीना (अश्विन): 7 सितंबर – 6 अक्टूबर. चातुर्मास के तीसरे महीने में दूध से परहेज किया जाता है. अपवाद - दूध की मिठाइयाँ (जैसे पेड़ा, रसगुल्ला, संदेश), दूध उत्पाद (जैसे पनीर, चीज़) क्योंकि दूध को रूपांतरित करके उपयोग किया जाता है. चरणामृत का सम्मान करना चाहिए, भले ही उसमें दूध हो. चौथा महीना (कार्तिक): 7 अक्टूबर – 4 नवंबर. चातुर्मास के अंतिम महीने के दौरान, उड़द दाल से परहेज किया जाता है. इडली, डोसा या उड़द दाल युक्त कोई भी अन्य व्यंजन नहीं लेना चाहिए श्रावण और चातुर्मास व्रत के अन्य नियम श्रावण मास के साथ-साथ चातुर्मास व्रत के दौरान भी कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है. इन नियमों का उद्देश्य केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि भी है. इस अवधि में व्यक्ति को अपने आहार और व्यवहार दोनों में संयम रखना चाहिए. कई लोग इस दौरान दिन में केवल एक बार भोजन (एकभुक्त) करते हैं. कुछ लोग नमक, लहसुन, प्याज, और अन्य तामसिक खाद्य पदार्थों का पूरी तरह त्याग कर देते हैं. कई भक्त मौन व्रत रखते हैं और दिनभर शिव की साधना में मन लगाते हैं. व्रत के प्रकार: एकभुक्त भोजन: दिन में केवल एक बार भोजन करना. यह व्रत संयम और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक माना जाता है. नक्त व्रत: केवल सूर्यास्त के बाद हल्का सात्विक भोजन करना. दिनभर जल या फल पर रहना. मौन व्रत: पूरे दिन मौन रहना और बोलचाल से दूर रहकर ध्यान और शिव-भक्ति में मन लगाना. उपवास का उद्देश्य: उपवास केवल एक परंपरा या धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव के प्रति सच्ची भक्ति का प्रतीक है. जो भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करता है, उसने पहले किसी न किसी चीज़ का त्याग अवश्य किया होता है. इसी प्रकार, श्रावण मास में उपवास का उद्देश्य होता है: अपने पसंदीदा खाद्य पदार्थों का त्याग करना. तामसिक प्रवृत्तियों और सुख-सुविधाओं से दूर रहना. मन, वाणी और कर्म को संयमित करके शिव की आराधना में लगाना. यही त्याग हमें शिव के प्रिय श्रावण मास में उनके दिव्य आशीर्वाद का पात्र बनाता है. श्रावण मास के प्रत्येक दिन का महत्व:श्रावण मास का प्रत्येक दिन शुभ माना जाता है: सोमवार: भगवान शिव की पूजा का दिन.   मंगलवार: महिलाएँ अपने परिवार के बेहतर स्वास्थ्य के लिए गौरी की पूजा करती हैं. बुधवार: भगवान विष्णु या कृष्ण के अवतार विठ्ठल को समर्पित है. गुरुवार: बुध और गुरु की पूजा के लिए. शुक्रवार: तुलसी की पूजा के लिए. शनिवार: इन दिनों को संपत् शनिचर (धन शनिवार) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि व्यक्ति धन प्राप्ति के लिए प्रार्थना कर सकता है. रविवार: सूर्य देव के लिए. श्रावण मास में विशेष पालन: रुद्राक्ष पहनना श्रावण मास में काफी शुभ होता है, बशर्ते व्यक्ति सभी सात्विक नियमों का पालन कर रहा हो. इस महीने में प्रतिदिन लघु रुद्र पाठ करने की अत्यधिक अनुशंसा की जाती है. प्रतिदिन पद्म पुराण का पाठ आत्मा को परमात्मा की ओर बेहतर तरीके से उन्नत कर सकता है. Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

Jul 10, 2025 - 09:30
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श्रावण मास 2025: शिव की कृपा पाने का पावन समय! जानें व्रत के नियम, पूजा विधि और चातुर्मास का महत्व

श्रावण मास: माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की उनकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने श्रावण मास के दौरान पार्वती जी की इच्छा पूर्ण की. यही कारण है कि श्रावण मास को भगवान शिव अत्यंत प्रिय मानते हैं.

इसी मास में उनका माता पार्वती से पुनर्मिलन हुआ था. इस कारण, आज भी श्रावण मास में अनेक कन्याएं भगवान शिव की आराधना करती हैं और शिवलिंग की श्रद्धा से पूजा करती हैं ताकि उन्हें भी योग्य जीवनसाथी प्राप्त हो सके.

श्रावण मास का महत्व: ‘श्रावण’ नाम श्रावण नक्षत्र से लिया गया है, क्योंकि इस मास की पूर्णिमा श्रावण नक्षत्र और मकर राशि में होती है. यह मास भगवान शिव और विष्णु दोनों की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है.

समुद्र मंथन और भगवान शिव का नीलकंठ स्वरूप: समुद्र मंथन की कथा हम सभी जानते हैं. मंथन के दौरान, सबसे पहली चीज़ जो निकली वह "हलाहल" (विष) थी और भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए उस विष का पान किया. विष के कारण उनके शरीर का तापमान बढ़ गया.

सभी देवी-देवताओं ने तापमान कम करने की कोशिश की लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. तब भगवान शिव ने अपने सिर पर चंद्रमा धारण किया जिससे तापमान कम हो गया. देवराज इंद्र ने भी तापमान कम करने के लिए भारी वर्षा की, जो श्रावण मास में नीलकंठ महादेव पर जल चढ़ाने का एक कारण बन गया, क्योंकि यह सब श्रावण मास में ही हुआ था.

चातुर्मास व्रत: चातुर्मास व्रत का आरंभ देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी) से होता है और समाप्ति उत्थान एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी) पर होती है.वैदिक पंचांग के अनुसार इसमें चार पवित्र मास आते हैं: श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक इन चार महीनों में उपवास, तपस्या, भक्ति सेवा और सात्विक जीवन का पालन किया जाता है.

चातुर्मास में उपवास के नियम:

  •  पहला महीना (श्रावण): 10 जुलाई – 8 अगस्त. इस महीने में हरी पत्तेदार सब्जियों से परहेज किया जाता है. अपवाद - धनिया पत्ती, मेथी पत्ती, पुदीना और करी पत्ती. हालाँकि, पत्ता गोभी ली जा सकती है क्योंकि यह शाक नहीं है.
  • दूसरा महीना (भाद्रपद): 9 अगस्त – 6 सितंबर. दही और ऐसे भोजन जिनमें दही मुख्य सामग्री हो, जैसे कढ़ी, लस्सी, छाछ आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. अपवाद - चरणामृत का सम्मान करना चाहिए, भले ही उसमें दही हो.
  • तीसरा महीना (अश्विन): 7 सितंबर – 6 अक्टूबर. चातुर्मास के तीसरे महीने में दूध से परहेज किया जाता है. अपवाद - दूध की मिठाइयाँ (जैसे पेड़ा, रसगुल्ला, संदेश), दूध उत्पाद (जैसे पनीर, चीज़) क्योंकि दूध को रूपांतरित करके उपयोग किया जाता है. चरणामृत का सम्मान करना चाहिए, भले ही उसमें दूध हो.
  • चौथा महीना (कार्तिक): 7 अक्टूबर – 4 नवंबर. चातुर्मास के अंतिम महीने के दौरान, उड़द दाल से परहेज किया जाता है. इडली, डोसा या उड़द दाल युक्त कोई भी अन्य व्यंजन नहीं लेना चाहिए

श्रावण और चातुर्मास व्रत के अन्य नियम

श्रावण मास के साथ-साथ चातुर्मास व्रत के दौरान भी कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है. इन नियमों का उद्देश्य केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि भी है. इस अवधि में व्यक्ति को अपने आहार और व्यवहार दोनों में संयम रखना चाहिए.

  • कई लोग इस दौरान दिन में केवल एक बार भोजन (एकभुक्त) करते हैं.

  • कुछ लोग नमक, लहसुन, प्याज, और अन्य तामसिक खाद्य पदार्थों का पूरी तरह त्याग कर देते हैं.

  • कई भक्त मौन व्रत रखते हैं और दिनभर शिव की साधना में मन लगाते हैं.

व्रत के प्रकार:

  • एकभुक्त भोजन: दिन में केवल एक बार भोजन करना. यह व्रत संयम और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक माना जाता है.

  • नक्त व्रत: केवल सूर्यास्त के बाद हल्का सात्विक भोजन करना. दिनभर जल या फल पर रहना.

  • मौन व्रत: पूरे दिन मौन रहना और बोलचाल से दूर रहकर ध्यान और शिव-भक्ति में मन लगाना.

उपवास का उद्देश्य: उपवास केवल एक परंपरा या धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव के प्रति सच्ची भक्ति का प्रतीक है. जो भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करता है, उसने पहले किसी न किसी चीज़ का त्याग अवश्य किया होता है.

इसी प्रकार, श्रावण मास में उपवास का उद्देश्य होता है:

  • अपने पसंदीदा खाद्य पदार्थों का त्याग करना.

  • तामसिक प्रवृत्तियों और सुख-सुविधाओं से दूर रहना.

  • मन, वाणी और कर्म को संयमित करके शिव की आराधना में लगाना.

यही त्याग हमें शिव के प्रिय श्रावण मास में उनके दिव्य आशीर्वाद का पात्र बनाता है.

श्रावण मास के प्रत्येक दिन का महत्व:
श्रावण मास का प्रत्येक दिन शुभ माना जाता है:

  • सोमवार: भगवान शिव की पूजा का दिन.  
  • मंगलवार: महिलाएँ अपने परिवार के बेहतर स्वास्थ्य के लिए गौरी की पूजा करती हैं.
  • बुधवार: भगवान विष्णु या कृष्ण के अवतार विठ्ठल को समर्पित है.
  • गुरुवार: बुध और गुरु की पूजा के लिए.
  • शुक्रवार: तुलसी की पूजा के लिए.
  • शनिवार: इन दिनों को संपत् शनिचर (धन शनिवार) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि व्यक्ति धन प्राप्ति के लिए प्रार्थना कर सकता है.
  • रविवार: सूर्य देव के लिए.

श्रावण मास में विशेष पालन: रुद्राक्ष पहनना श्रावण मास में काफी शुभ होता है, बशर्ते व्यक्ति सभी सात्विक नियमों का पालन कर रहा हो. इस महीने में प्रतिदिन लघु रुद्र पाठ करने की अत्यधिक अनुशंसा की जाती है. प्रतिदिन पद्म पुराण का पाठ आत्मा को परमात्मा की ओर बेहतर तरीके से उन्नत कर सकता है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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