छोटे शहर से राष्ट्रीय मंच तक: दिनंकर देव परमार की भावनात्मक यात्रा
इस दुनिया में जहाँ अधिकतर सफलता की कहानियाँ बड़े शहरों और नामी संस्थानों से शुरू होती हैं, वहीं दिनंकर देव परमार की कहानी हमें याद दिलाती है कि सबसे चमकदार सितारे अक्सर सबसे गहरे अंधेरे से निकलते हैं।
एक छोटे से साधारण शहर में जन्मे दिनंकर की शुरुआत बेहद सामान्य थी। लेकिन बचपन से ही उनके भीतर कुछ असाधारण था — एक ऐसा सपना, जो केवल अपने लिए नहीं था, बल्कि समाज के लिए था। खुद को नहीं, दूसरों को भी ऊपर उठाने का सपना।
बचपन के बड़े सपने
जब उनके हमउम्र बच्चे खेलों और मनोरंजन में व्यस्त थे, दिनंकर तब भी वित्तीय दुनिया को देखने में रुचि लेते थे। पैसे की समझ, निवेश की अवधारणाएँ, और आर्थिक स्वतंत्रता उन्हें छोटी उम्र में ही आकर्षित करने लगीं। लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी — वो लोगों की मदद करना चाहते थे।
रास्ता उन्हें नहीं पता था, लेकिन मंज़िल बहुत पहले से तय थी — प्रभाव छोड़ना।
एक साहसी निर्णय — ड्रॉपआउट बनकर खुद को पाना
परिवार और समाज की अपेक्षाओं के अनुसार उन्होंने कानून कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन कुछ अधूरा था। किताबें भरी थीं, लेकिन मन खाली था।
21 वर्ष की उम्र में, दिल में हौसला और आत्मा में आग लेकर उन्होंने कानून की पढ़ाई बीच में छोड़ने का निर्णय लिया।
एक ऐसा निर्णय, जो अधिकतर लोगों को डरा देता — लेकिन दिनंकर के लिए यह मुक्ति थी।
यही वह क्षण था, जहाँ से उनकी असली यात्रा शुरू हुई।
फाइनेंस की दुनिया में अपनी पहचान बनाना
दिनंकर ने खुद को पूरी तरह वित्तीय ज्ञान में झोंक दिया — सिर्फ कमाने के लिए नहीं, बल्कि समझने, सीखने और बाँटने के लिए। उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज मार्केट्स (NISM) से आधिकारिक प्रमाणन प्राप्त किया और भारत के सबसे युवा वित्तीय और निवेश सलाहकारों में शामिल हो गए।
लेकिन उन्होंने वहाँ रुकना नहीं चुना।
जहाँ बाकी लोग क्लाइंट्स के पीछे भाग रहे थे, दिनंकर छोटे शहरों के युवाओं तक पहुँच रहे थे।
उन्हें सिखा रहे थे कि पैसा कैसे काम करता है, सपने कैसे फाइनेंस होते हैं, और वित्तीय स्वतंत्रता कैसे ज़िंदगी बदल सकती है।
पिता का साथ — बेटे की ताकत
यह सब उस मौन समर्थन के बिना संभव नहीं था, जो उनके पिता ने उन्हें दिया।
जब दुनिया ने उनके निर्णयों पर उंगली उठाई, उनके पिता ( सुरेन्द्र सिंह परमार) चट्टान बनकर खड़े रहे।
“बेटा, अगर तेरा दिल कहता है सही है, तो मेरा भरोसा तेरे साथ है” —
यह एक वाक्य नहीं था, बल्कि वो शक्ति थी जिसने दिनंकर को कभी झुकने नहीं दिया।
दिनांकर कहते है की ये जो हम महके महके घूम रहे है ये हमारे पिता के पसीने की खुश्बू है ।
गुरुओं का मार्गदर्शन और दोस्तों की मजबूत पीठ
उनके गुरु आकाश जोशी के बारे में बताते है की कई बार रास्ते सुनसान हुए, लेकिन तभी उनका आशीर्वाद उन्हें संभालने आ गया।
उनके शब्द उनके जीवन की दिशा बन गए।
और फिर थे दोस्त — केवल साथी नहीं, बल्कि रणभूमि के योद्धा।
जिन्होंने पढ़ाई में मदद की, थके होने पर हौसला दिया, और हर छोटी जीत को ऐसे मनाया जैसे वो अपनी हो।
“मैंने ये सब अकेले नहीं बनाया,” दिनंकर कहते हैं।
“मैं उन कंधों पर खड़ा हूँ, जिन्होंने मुझ पर तब भरोसा किया जब मैं खुद पर भी संदेह कर रहा था।”
जब देश ने कहा — तुम हमारे सितारे हो
उनकी मेहनत, करुणा और जनहित में किए गए कार्यों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया।
दिनंकर को मिले:
• राष्ट्रीय दिव्य प्रतिभा सम्मान – अद्वितीय प्रतिभा और समाज के प्रति योगदान के लिए
• फाइनेंस में मानद डॉक्टरेट – वित्तीय साक्षरता और सामाजिक जागरूकता फैलाने के लिए
सिर्फ सलाहकार नहीं, उम्मीद की मिसाल
आज दिनंकर देव परमार सिर्फ एक फाइनेंशियल एडवाइज़र नहीं हैं।
वह हर उस युवा के लिए प्रेरणा हैं, जो खुद को एक ऐसे सिस्टम में फँसा हुआ पाता है जहाँ वह फिट नहीं होता।
वह साबित करते हैं कि सिर्फ समृद्ध पृष्ठभूमि नहीं, एक समृद्ध दिल काफी है।
कि सफलता कमाई से नहीं, योगदान से मापी जाती है।
अंतिम पंक्तियाँ: एक कहानी जो हर दिल में गूंजती है
यह सिर्फ दिनंकर की कहानी नहीं है।
यह हर उस सपने देखने वाले युवा की कहानी है,
जो झिझकता है, डरता है, लेकिन फिर भी आगे बढ़ता है।
क्योंकि कई बार, सबसे सुंदर यात्राएँ सुविधा से नहीं,
बल्कि साहस से शुरू होती हैं।
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