वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर का मैनेजमेंट अब हाई कोर्ट के पूर्व जज के हाथों में, सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी का गठन किया
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी का गठन किया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अशोक कुमार इसके अध्यक्ष होंगे. पूर्व जिला जज मुकेश मिश्रा कमिटी के सदस्य होंगे. इसके अलावा मथुरा के वर्तमान जिला जज, डीएम, एसएसपी और दूसरे अधिकारियों के साथ 4 गोस्वामी भी सदस्य होंगे. यह गोस्वामी कानूनी दावेदारी कर रहे 2 समूहों से होंगे. इनके अलावा और किसी को मंदिर के प्रबंधन में दखल की अनुमति नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्य कांत और जोयमाल्या बागची की बेंच ने 15 मई को एक अन्य बेंच से आए आदेश में बदलाव किया है. कोर्ट ने पिछले आदेश का वह अंश हटा दिया है, जिसमें राज्य सरकार को मंदिर के आस-पास कॉरिडोर के निर्माण के लिए मंदिर का फंड इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई थी. अध्यादेश लागू करने पर रोक सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के प्रबंधन से जुड़े राज्य सरकार के अध्यादेश को लागू करने पर रोक लगा दी है. संबंधित पक्षों से कहा है कि वह इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दें. हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच उस पर सुनवाई करे. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अध्यादेश पर रोक का अर्थ यह नहीं है कि राज्य सरकार उसे विधानसभा में प्रस्तुत कर उस पर मंजूरी नहीं ले सकती. करोड़ों रुपए चढ़ावे के बाद भी असुविधा कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि मंदिर में करोड़ों रुपए चढ़ावा आने के बावजूद श्रद्धालुओं के लिए मौलिक सुविधाओं का भी विकास नहीं किया जा रहा है. गोस्वामी सेवायत समूहों में बंटे हुए हैं. उनके बीच आपस में अदालती विवाद चलता रहता है. इसके चलते मंदिर का प्रशासन निष्क्रिय पड़ा है. कोर्ट ने अपनी तरफ से गठित हाई पावर्ड कमिटी से श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं के विकास पर ध्यान देने के लिए कहा है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि कमिटी सुविधाओं के विकास के लिए जमीन खरीदने के लिए बातचीत करे. ये भी पढ़ें:- 'अगर ECI पर भरोसा नहीं तो दें इस्तीफा', राहुल गांधी के 'वोट चोरी' बयान पर भाजपा का पलटवार

वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी का गठन किया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अशोक कुमार इसके अध्यक्ष होंगे. पूर्व जिला जज मुकेश मिश्रा कमिटी के सदस्य होंगे. इसके अलावा मथुरा के वर्तमान जिला जज, डीएम, एसएसपी और दूसरे अधिकारियों के साथ 4 गोस्वामी भी सदस्य होंगे. यह गोस्वामी कानूनी दावेदारी कर रहे 2 समूहों से होंगे. इनके अलावा और किसी को मंदिर के प्रबंधन में दखल की अनुमति नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्य कांत और जोयमाल्या बागची की बेंच ने 15 मई को एक अन्य बेंच से आए आदेश में बदलाव किया है. कोर्ट ने पिछले आदेश का वह अंश हटा दिया है, जिसमें राज्य सरकार को मंदिर के आस-पास कॉरिडोर के निर्माण के लिए मंदिर का फंड इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई थी.
अध्यादेश लागू करने पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के प्रबंधन से जुड़े राज्य सरकार के अध्यादेश को लागू करने पर रोक लगा दी है. संबंधित पक्षों से कहा है कि वह इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दें. हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच उस पर सुनवाई करे. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अध्यादेश पर रोक का अर्थ यह नहीं है कि राज्य सरकार उसे विधानसभा में प्रस्तुत कर उस पर मंजूरी नहीं ले सकती.
करोड़ों रुपए चढ़ावे के बाद भी असुविधा
कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि मंदिर में करोड़ों रुपए चढ़ावा आने के बावजूद श्रद्धालुओं के लिए मौलिक सुविधाओं का भी विकास नहीं किया जा रहा है. गोस्वामी सेवायत समूहों में बंटे हुए हैं. उनके बीच आपस में अदालती विवाद चलता रहता है. इसके चलते मंदिर का प्रशासन निष्क्रिय पड़ा है.
कोर्ट ने अपनी तरफ से गठित हाई पावर्ड कमिटी से श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं के विकास पर ध्यान देने के लिए कहा है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि कमिटी सुविधाओं के विकास के लिए जमीन खरीदने के लिए बातचीत करे.
ये भी पढ़ें:- 'अगर ECI पर भरोसा नहीं तो दें इस्तीफा', राहुल गांधी के 'वोट चोरी' बयान पर भाजपा का पलटवार
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