रिटायर्ड जजों की सरकारी पदों पर नियुक्ति और चुनाव लड़ने के मुद्दे पर बोले CJI गवई- इसीलिए मैंने तो...

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) ने रिटायरमेंट के बाद जजों की सरकारी पदों पर नियुक्ति और चुनाव लड़ने को लेकर कहा कि ये गंभीर नैतिक चिंताएं हैं. उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि न्यायपालिका के भीतर भी भ्रष्टाचार और कदाचार के मामले सामने आए हैं. ऐसी घटनाओं से जनता के भरोसे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पूरी प्रणाली की शुचिता में विश्वास खत्म हो सकता है. सीजेआई बी आर गवई ने कहा कि इन मसलों पर त्वरित, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई करके ही इस विश्वास को फिर से कायम किया जा सकता है. भारत में जब भी ऐसे मामले सामने आए हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार से निपटने के लिए तत्काल और उचित उपाय किए हैं. सीजेआई की यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर आई है. जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी. जस्टिस गवई ने कहा कि प्रत्येक लोकतंत्र में न्यायपालिका को न सिर्फ न्याय प्रदान करना चाहिए, बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच्चाई को रख सकती है. उन्होंने कहा कि न्यायिक वैधता और जनता का विश्वास शब्द आपस में जुड़े हुए हैं. रिटायरमेंट के बाद जजों की सरकारी नियुक्ति अक्सर बहस का मुद्दा बनी रहती हैं, इस पर सीजेआई बी आर गवई ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद की ऐसी नियुक्तियों का समय और प्रकृति न्यायपालिका की शुचिता में जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती है, क्योंकि इससे यह धारणा बन सकती है कि सरकारी नियुक्तियों या राजनीति में आने से लिए संभवत: न्यायिक निर्णय लिया गया. उन्होंने कहा, 'चर्चा का एक और मुद्दा सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति है. भारत में जजों के रिटायरमेंट की आयु निश्चित है. अगर कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकार में कोई अन्य नियुक्ति प्राप्त करता है या चुनाव लड़ने के लिए पीठ से इस्तीफा देता है तो यह गंभीर नैतिक चिंताएं पैदा करता है और इससे लोगों का ध्यान आकर्षित होता है.' उन्होंने कहा, 'इसी को देखते हुए मेरे कई सहयोगियों और मैंने सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई भूमिका या पद स्वीकार न करने की सार्वजनिक तौर पर प्रतिज्ञा की है. यह प्रतिबद्धता न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने का एक प्रयास है.'

Jun 4, 2025 - 18:30
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रिटायर्ड जजों की सरकारी पदों पर नियुक्ति और चुनाव लड़ने के मुद्दे पर बोले CJI गवई- इसीलिए मैंने तो...

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) ने रिटायरमेंट के बाद जजों की सरकारी पदों पर नियुक्ति और चुनाव लड़ने को लेकर कहा कि ये गंभीर नैतिक चिंताएं हैं. उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि न्यायपालिका के भीतर भी भ्रष्टाचार और कदाचार के मामले सामने आए हैं. ऐसी घटनाओं से जनता के भरोसे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पूरी प्रणाली की शुचिता में विश्वास खत्म हो सकता है.

सीजेआई बी आर गवई ने कहा कि इन मसलों पर त्वरित, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई करके ही इस विश्वास को फिर से कायम किया जा सकता है. भारत में जब भी ऐसे मामले सामने आए हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार से निपटने के लिए तत्काल और उचित उपाय किए हैं.

सीजेआई की यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर आई है. जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी. जस्टिस गवई ने कहा कि प्रत्येक लोकतंत्र में न्यायपालिका को न सिर्फ न्याय प्रदान करना चाहिए, बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच्चाई को रख सकती है. उन्होंने कहा कि न्यायिक वैधता और जनता का विश्वास शब्द आपस में जुड़े हुए हैं.

रिटायरमेंट के बाद जजों की सरकारी नियुक्ति अक्सर बहस का मुद्दा बनी रहती हैं, इस पर सीजेआई बी आर गवई ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद की ऐसी नियुक्तियों का समय और प्रकृति न्यायपालिका की शुचिता में जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती है, क्योंकि इससे यह धारणा बन सकती है कि सरकारी नियुक्तियों या राजनीति में आने से लिए संभवत: न्यायिक निर्णय लिया गया.

उन्होंने कहा, 'चर्चा का एक और मुद्दा सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति है. भारत में जजों के रिटायरमेंट की आयु निश्चित है. अगर कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकार में कोई अन्य नियुक्ति प्राप्त करता है या चुनाव लड़ने के लिए पीठ से इस्तीफा देता है तो यह गंभीर नैतिक चिंताएं पैदा करता है और इससे लोगों का ध्यान आकर्षित होता है.'

उन्होंने कहा, 'इसी को देखते हुए मेरे कई सहयोगियों और मैंने सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई भूमिका या पद स्वीकार न करने की सार्वजनिक तौर पर प्रतिज्ञा की है. यह प्रतिबद्धता न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने का एक प्रयास है.'

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