अरबों डॉलर हर रोज स्वाहा! इजरायल-ईरान युद्ध में मिसाइलें नहीं, कंगाली भी बरस रही, जानें किसकी हालत ज्यादा खराब

Israel Iran War: इजरायल और ईरान के बीच जारी संघर्ष अब केवल सैन्य मोर्चे तक सीमित नहीं है. यह युद्ध अब दोनों देशों की आर्थिक रीढ़ पर भी भारी असर डाल रहा है. इजरायल को हर दिन करोड़ों अरबों डॉलर का सीधा नुकसान हो रहा है, तो वहीं ईरान की पहले से दबाव में चल रही अर्थव्यवस्था और अधिक तनाव में आ चुकी है. चलिए, दोनों देशों की आर्थिक स्थिति की तुलना करके यह समझने की कोशिश करते हैं कि इस संघर्ष के आखिर में किसे आर्थिक रूप से अधिक नुकसान होगा और लॉन्ग टर्म में कौन सा देश ज्यादा असुरक्षित साबित होगा. इजरायल और ईरान की अर्थव्यवस्था किन चीजों पर निर्भर करती है? इजरायल की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से हाई टेक्नोलॉजी वाली इंडस्ट्री पर आधारित है. दुनियाभर की करीब 400 से अधिक मल्टीनेशनल कंपनियों जैसे गूगल, इंटेल और माइक्रोसॉफ्ट के रिसर्च सेंटर इजरायल में स्थित हैं. इसके अलावा, डायमंड कटिंग और पॉलिशिंग इंडसट्री इजरायली एक्सपोर्ट में बड़ा योगदान देता है. ग्रीनहाउस तकनीक की मदद से खेती और फूलों का भी बड़ा एक्सपोर्ट यहां से होता है. दूसरी ओर, ईरान की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा तेल और प्राकृतिक गैस के एक्सपोर्ट पर निर्भर करता है. ईरान फ्रंट पेज की एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान है कि 2025 के अंत तक ईरान प्रतिदिन करीब 3.1 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करेगा, जिसमें से 1.6 मिलियन बैरल का एक्सपोर्ट होगा. इसके अलावा, ईरान की कृषि और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी राजस्व में अहम भूमिका निभाते हैं, हालांकि उनका असर तेल जितना व्यापक नहीं है. यहां समझने वाली बात ये है कि ईरान पर अमेरिका और यूरोप द्वारा लगाए गए कई प्रतिबंधों की वजह से वह अपने तेल और गैस का एक्सपोर्ट ज्यादातर चीन को ही कर पाता है. 2023 में ईरान ने चीन को औसतन 1.1 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) तेल भेजा था. आर्थिक स्थिति की तुलना में कौन कितना मजबूत? GDP के आधार पर इजरायल की अर्थव्यवस्था 583 अरब डॉलर तक पहुंच चुकी है, जबकि IMF की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान की GDP 2025 में 463 अरब डॉलर के आसपास है. हालांकि, ये अनुमान इजरायल के साथ शुरू हुए युद्ध से पहले का है. इजरायल की मुद्रास्फीति दर (Inflation Rate) जहां 3 फीसदी के करीब है, वहीं ईरान में यह 29.5 फीसदी तक पहुंच चुकी है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि जहां इजरायल पर विदेशी कर्ज का भारी बोझ है, जो GDP का लगभग 105 फीसदी है. वहीं ईरान का विदेशी कर्ज जीडीपी का सिर्फ 1.8 फीसदी है, जो इस क्षेत्र में सबसे कम माने जाने वाले अनुपातों में आता है. कौन ज्यादा झेल रहा है? इजरायली बिजनेस अखबार कैलकलिस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल के लिए युद्ध की सीधी आर्थिक लागत बहुत भारी है. वह हर दिन अरबों डॉलर का सैन्य खर्च कर रहा है, जिसमें मिसाइल इंटरसेप्टर, एफ-35 विमानों की उड़ान और गोला-बारूद शामिल हैं. सिर्फ ईरान पर पहले मिसाइल हमले की लागत ही 593 मिलियन डॉलर आंकी गई थी. इसके अलावा, हजारों रिजर्व सैनिकों की तैनाती ने लेबर मार्केट को प्रभावित किया है और औद्योगिक उत्पादन (Industrial Production) में भारी गिरावट आई है. एयरपोर्ट्स के बंद होने से टूरिज्म और एक्सपोर्ट को भी झटका लगा है. वहीं, ईरान की स्थिति भी कम गंभीर नहीं है. हालांकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से दबाव में थी, लेकिन अब युद्ध के चलते उसका तेल एक्सपोर्ट भी खतरे में पड़ गया है. मौजूदा समय में ईरान का अधिकांश तेल चीन को रियायती दरों पर एक्सपोर्ट होता है. युद्ध के कारण अगर तेल पाइपलाइनों या रिफाइनरियों को नुकसान पहुंचा, तो यह राजस्व स्रोत भी ठप पड़ सकता है. साथ ही ईरानी मुद्रा ‘रियाल’ का अवमूल्यन तेजी से हो रहा है. 2024 में इसकी कीमत में 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी, जो अभी और भी हो सकती है. युद्ध के बाद की संभावित आर्थिक तस्वीर कैलकलिस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर युद्ध लंबा चला तो इजरायल की अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ सकता है. 2025 का रक्षा बजट पहले से ही 38.6 अरब डॉलर तक पहुंच गया है और कुल बजट 215 अरब डॉलर से भी ऊपर है. ऐसे में अनुमान है कि युद्ध एक महीने से ज्यादा चला तो केवल सैन्य खर्च ही 12 अरब डॉलर के पार जा सकता है. इसके चलते इजरायल का बजटीय घाटा GDP के 5 फीसदी तक पहुंच सकता है. साथ ही हाई-टेक सेक्टर, जो विदेशी निवेश और इनोवेशन पर आधारित है, वो भी इस अस्थिरता से बुरी तरह प्रभावित हो सकता है. ईरान की ओर देखें तो उसकी स्थिति में थोड़ा अलग स्वरूप है. IMF ने 2025 में ईरान की आर्थिक वृद्धि दर 3.1 फीसदी अनुमानित की है, जो यह बताता है कि देश ने प्रतिबंधों के बावजूद खुद को किसी हद तक स्थिर रखा है. ईरानी न्यूज वेबसाइट ईरान फ्रंट पेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान का चालू खाता अधिशेष (Current Account Surplus) 13.9 अरब डॉलर तक रहने की उम्मीद है. लेकिन यह सब तब तक ही है जब तक उसके तेल इंफ्रास्ट्रक्चर को कोई गंभीर नुकसान न पहुंचे. अगर युद्ध के कारण रिफाइनरियों या गैस क्षेत्रों पर हमला हुआ, तो फिर राजस्व में 40 फीसदी तक गिरावट आ सकती है. कौन सा देश अधिक असुरक्षित स्थिति में है? आसान भाषा में कहें तो शॉर्ट टर्म नुकसान की दृष्टि से इजरायल ज्यादा असुरक्षित स्थिति में है. भारी सैन्य खर्च, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता और तकनीकी क्षेत्र में गिरावट के चलते उसकी अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है. अगर यह संघर्ष लंबा खिंचता है तो GDP में 20 फीसदी तक की गिरावट संभव है. ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव में है, लेकिन वह लंबे समय से प्रतिबंधों के अनुकूल होती आ रही है. इसलिए उसका तात्कालिक झटका थोड़ा कम महसूस हो सकता है. हालांकि, अगर युद्ध ने उसके तेल उत्पादन ढांचे को तबाह कर दिया तो उसे पुनर्निर्माण पर अरबों डॉलर खर्च करने पड़ सकते हैं और उसकी GDP में 7 फीसदी तक गिरावट आ सकती है. कुल मिलाकर कहें तो इस संघर्ष का कोई आर्थिक विजेता नहीं है. इज

Jun 23, 2025 - 17:30
 0
अरबों डॉलर हर रोज स्वाहा! इजरायल-ईरान युद्ध में मिसाइलें नहीं, कंगाली भी बरस रही, जानें किसकी हालत ज्यादा खराब

Israel Iran War: इजरायल और ईरान के बीच जारी संघर्ष अब केवल सैन्य मोर्चे तक सीमित नहीं है. यह युद्ध अब दोनों देशों की आर्थिक रीढ़ पर भी भारी असर डाल रहा है. इजरायल को हर दिन करोड़ों अरबों डॉलर का सीधा नुकसान हो रहा है, तो वहीं ईरान की पहले से दबाव में चल रही अर्थव्यवस्था और अधिक तनाव में आ चुकी है.

चलिए, दोनों देशों की आर्थिक स्थिति की तुलना करके यह समझने की कोशिश करते हैं कि इस संघर्ष के आखिर में किसे आर्थिक रूप से अधिक नुकसान होगा और लॉन्ग टर्म में कौन सा देश ज्यादा असुरक्षित साबित होगा.

इजरायल और ईरान की अर्थव्यवस्था किन चीजों पर निर्भर करती है?

इजरायल की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से हाई टेक्नोलॉजी वाली इंडस्ट्री पर आधारित है. दुनियाभर की करीब 400 से अधिक मल्टीनेशनल कंपनियों जैसे गूगल, इंटेल और माइक्रोसॉफ्ट के रिसर्च सेंटर इजरायल में स्थित हैं. इसके अलावा, डायमंड कटिंग और पॉलिशिंग इंडसट्री इजरायली एक्सपोर्ट में बड़ा योगदान देता है. ग्रीनहाउस तकनीक की मदद से खेती और फूलों का भी बड़ा एक्सपोर्ट यहां से होता है.

दूसरी ओर, ईरान की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा तेल और प्राकृतिक गैस के एक्सपोर्ट पर निर्भर करता है. ईरान फ्रंट पेज की एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान है कि 2025 के अंत तक ईरान प्रतिदिन करीब 3.1 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करेगा, जिसमें से 1.6 मिलियन बैरल का एक्सपोर्ट होगा. इसके अलावा, ईरान की कृषि और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी राजस्व में अहम भूमिका निभाते हैं, हालांकि उनका असर तेल जितना व्यापक नहीं है.

यहां समझने वाली बात ये है कि ईरान पर अमेरिका और यूरोप द्वारा लगाए गए कई प्रतिबंधों की वजह से वह अपने तेल और गैस का एक्सपोर्ट ज्यादातर चीन को ही कर पाता है. 2023 में ईरान ने चीन को औसतन 1.1 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) तेल भेजा था.

आर्थिक स्थिति की तुलना में कौन कितना मजबूत?

GDP के आधार पर इजरायल की अर्थव्यवस्था 583 अरब डॉलर तक पहुंच चुकी है, जबकि IMF की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान की GDP 2025 में 463 अरब डॉलर के आसपास है. हालांकि, ये अनुमान इजरायल के साथ शुरू हुए युद्ध से पहले का है. इजरायल की मुद्रास्फीति दर (Inflation Rate) जहां 3 फीसदी के करीब है, वहीं ईरान में यह 29.5 फीसदी तक पहुंच चुकी है.

सबसे दिलचस्प बात यह है कि जहां इजरायल पर विदेशी कर्ज का भारी बोझ है, जो GDP का लगभग 105 फीसदी है. वहीं ईरान का विदेशी कर्ज जीडीपी का सिर्फ 1.8 फीसदी है, जो इस क्षेत्र में सबसे कम माने जाने वाले अनुपातों में आता है.

कौन ज्यादा झेल रहा है?

इजरायली बिजनेस अखबार कैलकलिस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल के लिए युद्ध की सीधी आर्थिक लागत बहुत भारी है. वह हर दिन अरबों डॉलर का सैन्य खर्च कर रहा है, जिसमें मिसाइल इंटरसेप्टर, एफ-35 विमानों की उड़ान और गोला-बारूद शामिल हैं.

सिर्फ ईरान पर पहले मिसाइल हमले की लागत ही 593 मिलियन डॉलर आंकी गई थी. इसके अलावा, हजारों रिजर्व सैनिकों की तैनाती ने लेबर मार्केट को प्रभावित किया है और औद्योगिक उत्पादन (Industrial Production) में भारी गिरावट आई है. एयरपोर्ट्स के बंद होने से टूरिज्म और एक्सपोर्ट को भी झटका लगा है.

वहीं, ईरान की स्थिति भी कम गंभीर नहीं है. हालांकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से दबाव में थी, लेकिन अब युद्ध के चलते उसका तेल एक्सपोर्ट भी खतरे में पड़ गया है. मौजूदा समय में ईरान का अधिकांश तेल चीन को रियायती दरों पर एक्सपोर्ट होता है.

युद्ध के कारण अगर तेल पाइपलाइनों या रिफाइनरियों को नुकसान पहुंचा, तो यह राजस्व स्रोत भी ठप पड़ सकता है. साथ ही ईरानी मुद्रा ‘रियाल’ का अवमूल्यन तेजी से हो रहा है. 2024 में इसकी कीमत में 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी, जो अभी और भी हो सकती है.

युद्ध के बाद की संभावित आर्थिक तस्वीर

कैलकलिस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर युद्ध लंबा चला तो इजरायल की अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ सकता है. 2025 का रक्षा बजट पहले से ही 38.6 अरब डॉलर तक पहुंच गया है और कुल बजट 215 अरब डॉलर से भी ऊपर है.

ऐसे में अनुमान है कि युद्ध एक महीने से ज्यादा चला तो केवल सैन्य खर्च ही 12 अरब डॉलर के पार जा सकता है. इसके चलते इजरायल का बजटीय घाटा GDP के 5 फीसदी तक पहुंच सकता है. साथ ही हाई-टेक सेक्टर, जो विदेशी निवेश और इनोवेशन पर आधारित है, वो भी इस अस्थिरता से बुरी तरह प्रभावित हो सकता है.

ईरान की ओर देखें तो उसकी स्थिति में थोड़ा अलग स्वरूप है. IMF ने 2025 में ईरान की आर्थिक वृद्धि दर 3.1 फीसदी अनुमानित की है, जो यह बताता है कि देश ने प्रतिबंधों के बावजूद खुद को किसी हद तक स्थिर रखा है. ईरानी न्यूज वेबसाइट ईरान फ्रंट पेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान का चालू खाता अधिशेष (Current Account Surplus) 13.9 अरब डॉलर तक रहने की उम्मीद है.

लेकिन यह सब तब तक ही है जब तक उसके तेल इंफ्रास्ट्रक्चर को कोई गंभीर नुकसान न पहुंचे. अगर युद्ध के कारण रिफाइनरियों या गैस क्षेत्रों पर हमला हुआ, तो फिर राजस्व में 40 फीसदी तक गिरावट आ सकती है.

कौन सा देश अधिक असुरक्षित स्थिति में है?

आसान भाषा में कहें तो शॉर्ट टर्म नुकसान की दृष्टि से इजरायल ज्यादा असुरक्षित स्थिति में है. भारी सैन्य खर्च, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता और तकनीकी क्षेत्र में गिरावट के चलते उसकी अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है. अगर यह संघर्ष लंबा खिंचता है तो GDP में 20 फीसदी तक की गिरावट संभव है.

ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव में है, लेकिन वह लंबे समय से प्रतिबंधों के अनुकूल होती आ रही है. इसलिए उसका तात्कालिक झटका थोड़ा कम महसूस हो सकता है. हालांकि, अगर युद्ध ने उसके तेल उत्पादन ढांचे को तबाह कर दिया तो उसे पुनर्निर्माण पर अरबों डॉलर खर्च करने पड़ सकते हैं और उसकी GDP में 7 फीसदी तक गिरावट आ सकती है.

कुल मिलाकर कहें तो इस संघर्ष का कोई आर्थिक विजेता नहीं है. इजरायल को शॉर्ट टर्म में अधिक वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जबकि ईरान को लॉन्ग टर्म में संसाधनों की क्षति और मुद्रास्फीति जैसी गंभीर समस्याओं से जूझना पड़ सकता है. अगर युद्ध एक महीने से ज्यादा चला, तो न केवल इन दोनों देशों की आर्थिक स्थिरता खतरे में होगी, बल्कि पश्चिम एशिया की पूरी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था संकट में पड़ सकती है.

ये भी पढ़ें: परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों के बाद सातवें आसमान पर खामेनेई का गुस्सा, दी चेतावनी- यहूदी दुश्मन ने बड़ा जुर्म कर दिया, अब दिखाएंगे...

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow