Pitru Dosh: पितृदोष क्या होता है, इसके क्या नुकसान हैं और कैसे होता है समाधान? सब जानें यहां
Pitru Dosh: पितृदोष जन्म कुंडली में बनने वाला एक ग्रह योग है जो पंचम भाव तथा नवम भाव से संबंधित होता है. जब नवम और पंचम भाव में राहु-केतु हो या इन भावों के स्वामियों के साथ राहु-केतु हो, बृहस्पति के साथ राहु-केतु हो या पंचम और नवम भाव के स्वामी नीच राशि में हो या षष्टम अष्टम अथवा द्वादश भाव में हो तो पितृदोष कहा जाता है. जन्म कुंडली में सूर्य पिता के कारक ग्रह कहे गए हैं, इसलिए सूर्य के पीड़ित होने पर भी पितृदोष कहा जा सकता है. क्या होते हैं नुकसान पितृ दोष का सबसे बड़ा नुकसान भाग्य की हानि है. 99% काम हो जाने के बाद पुनः 0 पर आ जाना, यह पितृ दोष का लक्षण कहा जाता है. इंसान अपने स्तर पर 100% मेहनत करता है लेकिन जब परिणाम के लिए भाग्य पर निर्भर रहना पड़ता है तो वह भाग्य उसे धोखा दे देता है, यह पितृ दोष का सबसे बड़ा नुकसान है. इसके अलावा पिता से कुछ वैचारिक मतभेद होना या पिता का सुख कम हो जाना आदि पितृ दोष का प्रभाव कहा जाता है. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी महत्वपूर्ण कार्य के समय पिता था माता का स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण कार्य में नुकसान हो जाता है. पितृदोष से पीड़ित जातक कई बार ठगे जाते हैं. क्या सन्तान पर होता है पितृदोष का प्रभाव? पितृ दोष का संतान से संबंधित नुकसान यह देखने में आया है कि संतान होने में देरी होती है, संतान का गर्भ नष्ट हो जाना अथवा अपंग संतान या संतान की मृत्यु देखी गई है. यह सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव इस दोष का कहा जाता है. कई बार पितृ दोष के कारण भूत प्रेत तंत्र-मंत्र आदि जैसी परेशानियां भी देखने को मिलती हैं. क्यों बनता है पितृ दोष? जन्म कुंडली पूर्व जन्म का एक बहि खाता है जो बताता है कि पूर्व जन्म में कौन से अच्छे और कौन से बुरे कर्म किए थे, जिनके फल स्वरूप हमें इस जन्म में सुख और दुख प्राप्त होगा. जब हमने पूर्व जन्म में अपने माता-पिता तथा बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया होता, उनकी सेवा नहीं की होती, दुर्व्यवहार करते हैं, पितरों के प्रति श्राद्ध आदि नहीं करते, तो यह योग कुंडली में बनता है. पितृदोष को पितरों की अशांत और अतृप्त आत्मा का श्राप कहा जा सकता है. क्या है उपाय- नाग नारायण बलि या त्रिपिंडी पूजा? नाग नारायण बलि पूजा हम अपने उन पूर्वजों के लिए करते हैं जिनकी हमें जानकारी होती है और उनके लिए भी यह पूजा की जाती है जो लंबी बीमारी से अथवा दुर्घटना में असामान्य मृत्यु को प्राप्त होते हैं. इस पूजा का जन्म कुंडली के पितृदोष से कोई लेना-देना नहीं होता है. जन्म कुंडली में यदि पितृदोष हो तो त्रिपिंडी पूजा करवानी चाहिए, यह अज्ञात पितरों के लिए होती है जिनकी हमें कोई जानकारी नहीं होती है, भले ही वे इस जन्म के पूर्वज हो अथवा पूर्व जन्म के पितृ हो. शास्त्रों में त्रयंबकेश्वर में इस पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया है. लेकिन यदि कोई वहां जाने में असमर्थ हो तो वह अपने आसपास किसी तीर्थ स्थान में जहां पवित्र नदी बहती हो तथा कर्मकांड पूजन आदि सब होता हो, वहां करवाया जा सकता है. बिहार में गया जी, राजस्थान में पुष्कर, हरिद्वार में नारायणी शिला मुख्य स्थान है यह पूजा करवाई जा सकती है. स्त्रियों के लिए विशेष नियम- यदि किसी कन्या की कुंडली में यह दोष बनता है तो इसकी पूजा विवाह के बाद पति के साथ करवाई जाती है. विवाह से पूर्व कन्या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर सकती है. विष्णुसहस्रनाम, गजेन्द्रमोक्ष और आदित्यहृदय स्तोत्र है पितृदोष के लिए रामबाण विष्णुसहस्रनाम, गजेन्द्रमोक्ष तथा आदित्य हृदय स्तोत्र हमारे शास्त्रों में ऐसे मुख्य स्तोत्र हैं जो किसी भी प्रकार की समस्या को काटने का सामर्थ रखते हैं. जो पुरुष तथा स्त्री किसी कारणवश यह पूजा नहीं करवा पाता है तो वह इन स्तोत्र का पाठ करके स्वयं को काफी अधिक बड़ी समस्याओं से निकल सकता है तथा पितृ दोष के प्रभाव में काफी अधिक शांति मिलती है. कब होती है पूजा ? पितृ दोष के लिए पूजा कृष्ण पक्ष में करवाई जानी चाहिए तथा इसके लिए कुछ विशेष तिथियां भी शास्त्रों में लिखी गई है. पितृपक्ष में यदि यह पूजा करवाई जाए तो उस समय अधिक शुभ फल मिलता है तथा पितृ अमावस्या की पूजा सर्वश्रेष्ठ कही गई है. ये भी पढ़ें: Nautapa 2025: हाय गर्मी..नौतपा के नौ दिनों में भूल से भी न करें 9 काम [नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

Pitru Dosh: पितृदोष जन्म कुंडली में बनने वाला एक ग्रह योग है जो पंचम भाव तथा नवम भाव से संबंधित होता है. जब नवम और पंचम भाव में राहु-केतु हो या इन भावों के स्वामियों के साथ राहु-केतु हो, बृहस्पति के साथ राहु-केतु हो या पंचम और नवम भाव के स्वामी नीच राशि में हो या षष्टम अष्टम अथवा द्वादश भाव में हो तो पितृदोष कहा जाता है. जन्म कुंडली में सूर्य पिता के कारक ग्रह कहे गए हैं, इसलिए सूर्य के पीड़ित होने पर भी पितृदोष कहा जा सकता है.
क्या होते हैं नुकसान
पितृ दोष का सबसे बड़ा नुकसान भाग्य की हानि है. 99% काम हो जाने के बाद पुनः 0 पर आ जाना, यह पितृ दोष का लक्षण कहा जाता है. इंसान अपने स्तर पर 100% मेहनत करता है लेकिन जब परिणाम के लिए भाग्य पर निर्भर रहना पड़ता है तो वह भाग्य उसे धोखा दे देता है, यह पितृ दोष का सबसे बड़ा नुकसान है. इसके अलावा पिता से कुछ वैचारिक मतभेद होना या पिता का सुख कम हो जाना आदि पितृ दोष का प्रभाव कहा जाता है.
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी महत्वपूर्ण कार्य के समय पिता था माता का स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण कार्य में नुकसान हो जाता है. पितृदोष से पीड़ित जातक कई बार ठगे जाते हैं.
क्या सन्तान पर होता है पितृदोष का प्रभाव?
पितृ दोष का संतान से संबंधित नुकसान यह देखने में आया है कि संतान होने में देरी होती है, संतान का गर्भ नष्ट हो जाना अथवा अपंग संतान या संतान की मृत्यु देखी गई है. यह सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव इस दोष का कहा जाता है. कई बार पितृ दोष के कारण भूत प्रेत तंत्र-मंत्र आदि जैसी परेशानियां भी देखने को मिलती हैं.
क्यों बनता है पितृ दोष?
जन्म कुंडली पूर्व जन्म का एक बहि खाता है जो बताता है कि पूर्व जन्म में कौन से अच्छे और कौन से बुरे कर्म किए थे, जिनके फल स्वरूप हमें इस जन्म में सुख और दुख प्राप्त होगा. जब हमने पूर्व जन्म में अपने माता-पिता तथा बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया होता, उनकी सेवा नहीं की होती, दुर्व्यवहार करते हैं, पितरों के प्रति श्राद्ध आदि नहीं करते, तो यह योग कुंडली में बनता है. पितृदोष को पितरों की अशांत और अतृप्त आत्मा का श्राप कहा जा सकता है.
क्या है उपाय- नाग नारायण बलि या त्रिपिंडी पूजा?
नाग नारायण बलि पूजा हम अपने उन पूर्वजों के लिए करते हैं जिनकी हमें जानकारी होती है और उनके लिए भी यह पूजा की जाती है जो लंबी बीमारी से अथवा दुर्घटना में असामान्य मृत्यु को प्राप्त होते हैं. इस पूजा का जन्म कुंडली के पितृदोष से कोई लेना-देना नहीं होता है.
जन्म कुंडली में यदि पितृदोष हो तो त्रिपिंडी पूजा करवानी चाहिए, यह अज्ञात पितरों के लिए होती है जिनकी हमें कोई जानकारी नहीं होती है, भले ही वे इस जन्म के पूर्वज हो अथवा पूर्व जन्म के पितृ हो. शास्त्रों में त्रयंबकेश्वर में इस पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया है.
लेकिन यदि कोई वहां जाने में असमर्थ हो तो वह अपने आसपास किसी तीर्थ स्थान में जहां पवित्र नदी बहती हो तथा कर्मकांड पूजन आदि सब होता हो, वहां करवाया जा सकता है. बिहार में गया जी, राजस्थान में पुष्कर, हरिद्वार में नारायणी शिला मुख्य स्थान है यह पूजा करवाई जा सकती है.
स्त्रियों के लिए विशेष नियम- यदि किसी कन्या की कुंडली में यह दोष बनता है तो इसकी पूजा विवाह के बाद पति के साथ करवाई जाती है. विवाह से पूर्व कन्या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर सकती है.
विष्णुसहस्रनाम, गजेन्द्रमोक्ष और आदित्यहृदय स्तोत्र है पितृदोष के लिए रामबाण
विष्णुसहस्रनाम, गजेन्द्रमोक्ष तथा आदित्य हृदय स्तोत्र हमारे शास्त्रों में ऐसे मुख्य स्तोत्र हैं जो किसी भी प्रकार की समस्या को काटने का सामर्थ रखते हैं. जो पुरुष तथा स्त्री किसी कारणवश यह पूजा नहीं करवा पाता है तो वह इन स्तोत्र का पाठ करके स्वयं को काफी अधिक बड़ी समस्याओं से निकल सकता है तथा पितृ दोष के प्रभाव में काफी अधिक शांति मिलती है.
कब होती है पूजा ?
पितृ दोष के लिए पूजा कृष्ण पक्ष में करवाई जानी चाहिए तथा इसके लिए कुछ विशेष तिथियां भी शास्त्रों में लिखी गई है. पितृपक्ष में यदि यह पूजा करवाई जाए तो उस समय अधिक शुभ फल मिलता है तथा पितृ अमावस्या की पूजा सर्वश्रेष्ठ कही गई है.
ये भी पढ़ें: Nautapa 2025: हाय गर्मी..नौतपा के नौ दिनों में भूल से भी न करें 9 काम
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]
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