"चेतावनी नहीं, अब कार्रवाई – भारत का बदलता रूप" By Anup Kumar Mishra

May 21, 2025 - 19:37
Jun 21, 2025 - 10:50
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"चेतावनी नहीं, अब कार्रवाई – भारत का बदलता रूप" By Anup Kumar Mishra

जय मां शारदे 

यह आज का भारत है, आखिर क्यों समझते हो नहीं?

रहा न अब वो दौर, कि तुम मरोगे हम रोएंगे।
अब तुम्हारे पाप को हरगिज़ नहीं हम ढोएंगे।
कई बार दी चेतावनी, तुम क्यों सुधारते हो नहीं।
यह आज का भारत है, आखिर क्यों समझते हो नहीं?

किए गोद सूनी माताओं की, सुहागन की माँग उजाड़ दिए।
कायरता से चोरी चुपके, तुम निर्दोषों पर वार किए।
तुम्हारे भेजे आतंकी ने कितने बच्चे अनाथ
किए।
हम निंदा कर ठहर गए, जब भी तुमने आघात किए।
अब भारत वो नहीं जो, तुम संग निंदा निंदा खेलेगा।
तुम्हारी नापाक इरादों को नया भारत नही झेलेगा।
संप्रभुता की ताकत का डंका दुनिया भर में बजता है।
ये भारत स्वयं अब निर्णय लेकर, जो चाहे वो करता है।
तुम कायरता दिखाते हो मगर कहते तुम डरते हो नहीं।
यह आज का भारत है, आखिर क्यों समझते हो नहीं?

हमारी सहनशीलता को तुम दुर्बलता समझ बैठे।
तुम्हारी उदंडता पर लेकिन हम कब तक सहज बैठे।
हमारी संयम हम पर ही, है अब पड़ने लगी भारी।
तुम्हें सबक सलीके से सिखाने की आ गई बारी।
वजूद मिटा देंगे जहां से, तुम्हारा हम वो हाल कर देंगे।
पानी की बूंद को तरसोगे, यूं जीना मुहाल कर देंगे।
एक-एक ज़ख्म जो तुमने दिए, उनका बदला लेंगे।
है भारत की क़ूबत क्या, तुम्हें बख़ूबी बतला देंगे।
कहा कई बार, बदलो चाल, मगर तुम बदलते हो नहीं।
यह आज का भारत है, आखिर क्यों समझते हो नहीं?

भीख के टुकड़ों से अपने लोगों का पेट भरते हो।
अनाज की जगह तुम, आतंक की खेती करते हो।
हमारे यहां चोरी से आकर तुम आतंक मचाते हो।
मगर आतंक से पीड़ित तुम खुद को ही बताते हो।
हम तुम्हारे सभी ढोंग दुनिया को बताने चल दिए।
तुम्हें समझाने-बुझाने के इरादे अब हम बदल दिए।
तुम्हे बेनकाब करने की अब हम ठान लिए हैं।
संभलने का तुम्हें मौका हमने कई बार दिए है।
तुम हो चुके बर्बाद , फिर भी तुम संभलते हो नहीं।
यह आज का भारत है, आखिर क्यों समझते हो नहीं?

तुम परमाणु हथियार की अब धौंस जमाना बंद करो।
हम तो हकीकत जान गए, हमें मूर्ख बनाना बंद करो।
अबकी बस सेंध लगाई, कल वहीं उसे जला देंगे।
सच कहते हैं — पाकिस्तान! तुम्हारी ईंट से ईंट बजा देंगे।
तुम्हें रात में भी हम उजाला दिन जैसा दिखलाएंगे।
पृथ्वी, त्रिशूल, ब्रह्मोस, अग्नि — जब अम्बर से बरसाएंगे।
रोक-थाम अब नहीं करेंगे, बस घर में घुसकर मारेंगे।
अब तक तुमसे किसी जंग में, न हारे थे, न हारेंगे।
क्यों रखें हम खुद को थामे, जब तुम ठहरते हो नहीं।
यह आज का भारत है, आखिर क्यों समझते हो नहीं?

मुरली बजाने वाले को भी यहां, चक्र चलाना पड़ता है।
सौ अपराध से आगे जब शिशुपाल कहीं निकलता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भी, तब सागर पर चाप चढ़ाते हैं,
विनय, परामर्श, प्रार्थना — जब सभी विफल हो जाते हैं।
पहले किए थे दो टुकड़े, अबकी किए तो चार करेंगे,
आपस में लड़-बिखर जाओगे, ऐसा तुम संग चाल चलेंगे।
साथी न कोई काम आएगा, तुम आवाज किसे लगाओगे,
हमसे उलझोगे जो अब तुम, तो मिट्टी में मिल जाओगे।
तुम अना की झूठी मीनार से क्यों नीचे उतरते हो नहीं,
यह आज का भारत है, आखिर क्यों समझते हो नहीं?

'अनुभव' अनूप मिश्रा
स्वरचित एवं मौलिक

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