तेरा ठिकाना है दूर लेकिन...By Anoop Kumar Mishra
अनजानी राहें, गली, डगर है,
कहीं है आँखें, कहीं नज़र है।
कहाँ है मंज़िल, कहूँ मैं कैसे,
शहर नया है, नया सफ़र है।
मैं बंद आँखों से देखूँ तुमको,
खोलूँ जो आँखें तो तुम नहीं हो।
तेरा ठिकाना है दूर लेकिन,
लगे मुझे तुम यहीं कहीं हो।
कभी याद तेरी मुझे हँसाए,
कभी आँखों में आँसू लाए।
बड़ा ग़ज़ब है हाल-ए-दिल भी,
करें क्या ज़ाहिर क्या हम छुपाएं?
ये हिज्र मुश्किल, लगे बिताना,
न जाने कब ये घड़ी सही हो?
तेरा ठिकाना है दूर लेकिन,
लगे मुझे तुम यहीं कहीं हो।
आँसू पीने का यूँ तो हुनर है,
हर घूँट लेकिन लगे ज़हर है।
छुपा है मेरा क्या हाल तुमसे,
सांसों में मेरी तेरा बसर है।
देखूँ भला क्या तस्वीर तेरी,
तू ही नज़र में मेरी बसी हो।
तेरा ठिकाना है दूर लेकिन,
लगे मुझे तुम यहीं कहीं हो।
हालत खिज़ा में जैसे चमन की,
सूरत वही कुछ है मेरे मन की।
यहाँ रोशनी है, पर रौनक नहीं,
है महफ़िल मगर अकेलेपन की।
सुनूँ अचानक सदाएँ तेरी,
जैसे कानों में तुम कह गई हो।
तेरा ठिकाना है दूर लेकिन,
लगे मुझे तुम यहीं कहीं हो।
नाता उम्मीदों से छूटा नहीं है,
रब मेरा अब तक रूठा नहीं है।
हम आन मिलेंगे, यक़ीन मानो,
ये बुद्धू तुम्हारा झूठा नहीं है।
चाहूँ कि हँसो तुम बातों पे मेरी,
मगर कहो तुम क्यों रो रही हो?
तेरा ठिकाना है दूर लेकिन,
लगे मुझे तुम यहीं कहीं हो।
स्वमौलिक
'अनुभव' अनूप मिश्रा
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