हकीकत के साए में ख्वाबों की रोशनी By Anup Kumar Mishra

एक नई गीत आप सब की नज़र ...
"न कोई शिकायत, न कोई गिला है"
न कोई शिकायत, न कोई गिला है।
मुकद्दर से मुझको, जो कुछ मिला है।
मुस्कुराहट मिली उनको, लब पर सजाए।
खुद रोए मगर हम, बहुत को हंसाए।
बड़ी ही गजब, रीत है इस जहां की।
लोग हंसते हैं जब, कोई आंसू बहाए।
दिल में जो बसे, जब वही चीड़ दे दिल।
है अपना वो या गैर, ये कहना मुश्किल।
यहां समझे भला, कैसे खामोशी कोई।
जो ज़ुबां की बयानी, समझ ही न पाए।
हर फूल को भाए, सावन का मौसम।
पतझड़ में कहां, फूल कोई खिला है?
न कोई शिकायत, न कोई गिला है।
मुकद्दर से मुझको, जो कुछ मिला है।
सुना है टूटे दिल, भी जाते हैं जोड़े।
चूड़ हुए दिल मगर, कोई क्या बटोरे?
मुमकिन कहां सिलना, कपड़े वो जिनके।
रेशा रेशा यहां पर, गए हो उधेड़े।
अपनी उम्मीदों से ही, हम हैं चोट खाए।
खता औरों की फिर, भला क्यों बताए?
रात के ख्वाब सारे, हो जाते ओझल।
हकीकत से मिलते, हैं जब सवेरे।
है मायूसी वहीं, जहां है उम्मीदें।
सदियों से चलता, यही सिलसिला है।
न कोई शिकायत, न कोई गिला है।
मुकद्दर से मुझको, जो कुछ मिला है।
स्वरचित एवं मौलिक
'अनुभव' अनूप मिश्रा
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