डायबिटीज और हाई बीपी से जान गंवाने वालों के अंग भी होंगे ट्रांसप्लांट! जानें क्या प्लान बना रहे डॉक्टर?
अब तक, अंगदान (Organ Donation) के मामले में अगर मृतक व्यक्ति को डायबिटीज (मधुमेह) या हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) की बीमारी रही हो, तो आमतौर पर उसके अंग ट्रांसप्लांट के लिए कम ही स्वीकार किए जाते थे. लेकिन हाल ही में, Indian Society for Organ Transplantation (ISOT) ने पहली बार एक विस्तृत रिपोर्ट जारी कर कहा है कि ऐसे अंगों का इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्ते वे सही हालत में हों और मेडिकल मानकों पर खरे उतरें. रिपोर्ट में क्या कहा गया ISOT की रिपोर्ट, जो Lancet Regional - South-East Asia में प्रकाशित हुई है, में बताया गया है कि भारत में इस तरह का पर्याप्त डेटा नहीं है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार, 15-20 प्रतिशत मृतक अंगदाताओं को हाई ब्लड प्रेशर और 2-8 प्रतिशत को डायबिटीज होती है. अमेरिका के USRDS और UNOS डेटाबेस से मिले प्रमाण बताते हैं कि इन मामलों में किडनी ट्रांसप्लांट के बाद प्राथमिक नॉन-फंक्शन, तीव्र रिजेक्शन या डिलेयड ग्राफ्ट फंक्शन (DGF) का खतरा थोड़ा बढ़ सकता है. हालांकि, कुल मिलाकर ग्राफ्ट सर्वाइवल पर असर मामूली होता है. Times of India से बातचीत में वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट और ISOT रिपोर्ट के सह-लेखक डॉ. दिनेश खुल्लर ने कहा, "सिर्फ इस आधार पर कि मृतक को डायबिटीज थी, अंग को तुरंत खारिज करना गलत है. हमारी टीम ने एक स्क्रीनिंग क्राइटेरिया सुझाया है, जिससे तय किया जा सके कि डायबिटिक डोनर की किडनी इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है या नहीं. डॉक्टरों को चाहिए कि हर केस में दाता के अंग और रिसीपिएंट की स्थिति का अलग-अलग मूल्यांकन करें और फिर निर्णय लें." डायबिटीज और हाई बीपी का असर अनियंत्रित डायबिटीज समय के साथ किडनी की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाती है, जिससे किडनी की फिल्टर करने की क्षमता घट सकती है. वहीं, हाई ब्लड प्रेशर भी किडनी पर दबाव बढ़ाकर इसे और कमजोर कर देता है. इसके बावजूद, सभी मामलों में अंग अनुपयोगी नहीं होते. कई बार अंग पूरी तरह स्वस्थ भी मिलते हैं. इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलियरी साइंसेज के डायरेक्टर डॉ. शिव सारिन ने भी Times of India से कहा, "डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या यहां तक कि कैंसर का इतिहास रखने वाले मृतक दाताओं के अंग भी ट्रांसप्लांट के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं, लेकिन हर केस का अलग-अलग मूल्यांकन जरूरी है. अगर डोनर को डायबिटीज थी, तो लिवर बायोप्सी करके उसमें फाइब्रोसिस और फैट की जांच करनी चाहिए, क्योंकि एक-तिहाई मामलों में लिवर अनुपयोगी निकल सकता है. इसी तरह, हाई बीपी वाले डोनर से किडनी लेने में सावधानी बरतनी चाहिए. जहां तक कैंसर का सवाल है, अगर डोनर को इलाज के बाद दो साल से ज्यादा समय तक बीमारी नहीं लौटी है, तो उसका अंग इस्तेमाल किया जा सकता है." क्यों जरूरी है यह बदलाव विशेषज्ञों का मानना है कि इस नई सोच से अंगदान की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है. इससे ट्रांसप्लांट के इंतजार में बैठे हजारों मरीजों को नई जिंदगी मिल सकेगी. हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि ट्रांसप्लांट से पहले सख्त मेडिकल टेस्टिंग और व्यक्तिगत केस-बाय-केस मूल्यांकन किया जाए. इसे भी पढ़ें- सौंफ चबाना ज्यादा अच्छा या सौंफ का पानी पीना, जान लें सेहत के लिए कौन-सा ऑप्शन ज्यादा अच्छा?

अब तक, अंगदान (Organ Donation) के मामले में अगर मृतक व्यक्ति को डायबिटीज (मधुमेह) या हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) की बीमारी रही हो, तो आमतौर पर उसके अंग ट्रांसप्लांट के लिए कम ही स्वीकार किए जाते थे. लेकिन हाल ही में, Indian Society for Organ Transplantation (ISOT) ने पहली बार एक विस्तृत रिपोर्ट जारी कर कहा है कि ऐसे अंगों का इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्ते वे सही हालत में हों और मेडिकल मानकों पर खरे उतरें.
रिपोर्ट में क्या कहा गया
ISOT की रिपोर्ट, जो Lancet Regional - South-East Asia में प्रकाशित हुई है, में बताया गया है कि भारत में इस तरह का पर्याप्त डेटा नहीं है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार, 15-20 प्रतिशत मृतक अंगदाताओं को हाई ब्लड प्रेशर और 2-8 प्रतिशत को डायबिटीज होती है. अमेरिका के USRDS और UNOS डेटाबेस से मिले प्रमाण बताते हैं कि इन मामलों में किडनी ट्रांसप्लांट के बाद प्राथमिक नॉन-फंक्शन, तीव्र रिजेक्शन या डिलेयड ग्राफ्ट फंक्शन (DGF) का खतरा थोड़ा बढ़ सकता है. हालांकि, कुल मिलाकर ग्राफ्ट सर्वाइवल पर असर मामूली होता है.
Times of India से बातचीत में वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट और ISOT रिपोर्ट के सह-लेखक डॉ. दिनेश खुल्लर ने कहा, "सिर्फ इस आधार पर कि मृतक को डायबिटीज थी, अंग को तुरंत खारिज करना गलत है. हमारी टीम ने एक स्क्रीनिंग क्राइटेरिया सुझाया है, जिससे तय किया जा सके कि डायबिटिक डोनर की किडनी इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है या नहीं. डॉक्टरों को चाहिए कि हर केस में दाता के अंग और रिसीपिएंट की स्थिति का अलग-अलग मूल्यांकन करें और फिर निर्णय लें."
डायबिटीज और हाई बीपी का असर
अनियंत्रित डायबिटीज समय के साथ किडनी की रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाती है, जिससे किडनी की फिल्टर करने की क्षमता घट सकती है. वहीं, हाई ब्लड प्रेशर भी किडनी पर दबाव बढ़ाकर इसे और कमजोर कर देता है. इसके बावजूद, सभी मामलों में अंग अनुपयोगी नहीं होते. कई बार अंग पूरी तरह स्वस्थ भी मिलते हैं.
इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलियरी साइंसेज के डायरेक्टर डॉ. शिव सारिन ने भी Times of India से कहा, "डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या यहां तक कि कैंसर का इतिहास रखने वाले मृतक दाताओं के अंग भी ट्रांसप्लांट के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं, लेकिन हर केस का अलग-अलग मूल्यांकन जरूरी है. अगर डोनर को डायबिटीज थी, तो लिवर बायोप्सी करके उसमें फाइब्रोसिस और फैट की जांच करनी चाहिए, क्योंकि एक-तिहाई मामलों में लिवर अनुपयोगी निकल सकता है. इसी तरह, हाई बीपी वाले डोनर से किडनी लेने में सावधानी बरतनी चाहिए. जहां तक कैंसर का सवाल है, अगर डोनर को इलाज के बाद दो साल से ज्यादा समय तक बीमारी नहीं लौटी है, तो उसका अंग इस्तेमाल किया जा सकता है."
क्यों जरूरी है यह बदलाव
विशेषज्ञों का मानना है कि इस नई सोच से अंगदान की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है. इससे ट्रांसप्लांट के इंतजार में बैठे हजारों मरीजों को नई जिंदगी मिल सकेगी. हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि ट्रांसप्लांट से पहले सख्त मेडिकल टेस्टिंग और व्यक्तिगत केस-बाय-केस मूल्यांकन किया जाए.
इसे भी पढ़ें- सौंफ चबाना ज्यादा अच्छा या सौंफ का पानी पीना, जान लें सेहत के लिए कौन-सा ऑप्शन ज्यादा अच्छा?
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