सोते-सोते क्यों हो जाती है लोगों की मौत? 99 पर्सेंट लोग नहीं जानते हैं ये कारण

आज के समय में हृदय संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं और उनमें से एक गंभीर समस्या है क्रॉनिक हार्ट फेलियर (Chronic Heart Failure). यह एक ऐसी स्थिति है, जब हृदय शरीर की जरूरत के अनुसार पर्याप्त मात्रा में रक्त पंप नहीं कर पाता. यह स्थिति धीरे-धीरे विकसित होती है और कई बार लोग शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे रोग बढ़कर गंभीर हो जाता है. लक्षण (Symptoms)क्रॉनिक हार्ट फेलियर((Chronic Heart Failure) के शुरुआती चरण में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते. जैसे-जैसे हृदय की कार्यक्षमता कम होती है, शरीर के कई हिस्सों पर असर दिखने लगता है. सबसे पहले मरीज को लगातार थकान महसूस होने लगती है. पैरों, टखनों और पंजों में सूजन आ जाती है. कई बार रात में बार-बार यूरिन पास करने की समस्या भी बढ़ जाती है. गंभीर स्थिति में सांस लेने में तकलीफ, घरघराहट, सीने में जकड़न और अनियमित धड़कनें देखने को मिलती हैं. अगर ऐसे संकेत नजर आएं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. पुरुषों में ज्यादा खतरा मिथक या सच?कई लोग मानते हैं कि क्रॉनिक हार्ट फेलियर पुरुषों में ज्यादा होता है, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है. बीएलके हार्ट सेंटर, नई दिल्ली के कार्डियोथोरेसिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय कौल के अनुसार, 45 वर्ष की उम्र से पहले पुरुषों में इस रोग का खतरा महिलाओं की तुलना में अधिक होता है और इस उम्र तक अनुपात 7:3 रहता है. लेकिन 50 वर्ष के बाद यह अनुपात लगभग बराबर हो जाता है. यानी उम्र बढ़ने के साथ पुरुष और महिलाएं दोनों समान रूप से जोखिम में आते हैं. क्रॉनिक हार्ट फेलियर के प्रकार और उपचारयह बीमारी चार चरणों (Type 1 से Type 4) में विभाजित है. टाइप 1 शुरुआती अवस्था होती है, जहां दवाइयों से उपचार संभव है. टाइप 2 और 3 में केवल दवाइयां काफी नहीं होतीं, इन मामलों में सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है. टाइप 4 सबसे गंभीर अवस्था है, जब हृदय की कार्यक्षमता 85-90 प्रतिशत तक खत्म हो जाती है. इस स्थिति में हार्ट ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प बचता है. डॉ. अजय कौल का कहना है कि अगर हृदय 50 प्रतिशत तक क्षतिग्रस्त हो चुका है, तो समय पर इलाज से मरीज सामान्य जीवन जी सकता है, लेकिन 65 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर जटिलताएं बढ़ जाती हैं. रोकथाम और लाइफस्टाइल मैनेजमेंटइस बीमारी को रोकने के लिए जीवनशैली में बदलाव करना जरूरी है. सबसे पहले ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें, क्योंकि अधिक बीपी होने पर हृदय को रक्त पंप करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. दिनभर में दो लीटर से ज्यादा तरल पदार्थ न लें, क्योंकि यह ब्लड वॉल्यूम बढ़ाता है और हृदय पर दबाव डालता है. नमक का सेवन कम करें, हेल्दी डाइट लें और धूम्रपान व शराब से दूर रहें. इसके अलावा, नियमित रूप से हेल्थ चेकअप कराना भी बेहद जरूरी है. इसे भी पढ़ें- लिवर को चुपचाप खत्म कर देती है यह बीमारी, 99 पर्सेंट लोग नहीं देते हैं ध्यान Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

Jul 27, 2025 - 12:30
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सोते-सोते क्यों हो जाती है लोगों की मौत? 99 पर्सेंट लोग नहीं जानते हैं ये कारण

आज के समय में हृदय संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं और उनमें से एक गंभीर समस्या है क्रॉनिक हार्ट फेलियर (Chronic Heart Failure). यह एक ऐसी स्थिति है, जब हृदय शरीर की जरूरत के अनुसार पर्याप्त मात्रा में रक्त पंप नहीं कर पाता. यह स्थिति धीरे-धीरे विकसित होती है और कई बार लोग शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे रोग बढ़कर गंभीर हो जाता है.

लक्षण (Symptoms)
क्रॉनिक हार्ट फेलियर((Chronic Heart Failure) के शुरुआती चरण में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते. जैसे-जैसे हृदय की कार्यक्षमता कम होती है, शरीर के कई हिस्सों पर असर दिखने लगता है. सबसे पहले मरीज को लगातार थकान महसूस होने लगती है. पैरों, टखनों और पंजों में सूजन आ जाती है. कई बार रात में बार-बार यूरिन पास करने की समस्या भी बढ़ जाती है. गंभीर स्थिति में सांस लेने में तकलीफ, घरघराहट, सीने में जकड़न और अनियमित धड़कनें देखने को मिलती हैं. अगर ऐसे संकेत नजर आएं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

पुरुषों में ज्यादा खतरा मिथक या सच?
कई लोग मानते हैं कि क्रॉनिक हार्ट फेलियर पुरुषों में ज्यादा होता है, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है. बीएलके हार्ट सेंटर, नई दिल्ली के कार्डियोथोरेसिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय कौल के अनुसार, 45 वर्ष की उम्र से पहले पुरुषों में इस रोग का खतरा महिलाओं की तुलना में अधिक होता है और इस उम्र तक अनुपात 7:3 रहता है. लेकिन 50 वर्ष के बाद यह अनुपात लगभग बराबर हो जाता है. यानी उम्र बढ़ने के साथ पुरुष और महिलाएं दोनों समान रूप से जोखिम में आते हैं.

क्रॉनिक हार्ट फेलियर के प्रकार और उपचार
यह बीमारी चार चरणों (Type 1 से Type 4) में विभाजित है. टाइप 1 शुरुआती अवस्था होती है, जहां दवाइयों से उपचार संभव है. टाइप 2 और 3 में केवल दवाइयां काफी नहीं होतीं, इन मामलों में सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है. टाइप 4 सबसे गंभीर अवस्था है, जब हृदय की कार्यक्षमता 85-90 प्रतिशत तक खत्म हो जाती है. इस स्थिति में हार्ट ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प बचता है. डॉ. अजय कौल का कहना है कि अगर हृदय 50 प्रतिशत तक क्षतिग्रस्त हो चुका है, तो समय पर इलाज से मरीज सामान्य जीवन जी सकता है, लेकिन 65 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर जटिलताएं बढ़ जाती हैं.

रोकथाम और लाइफस्टाइल मैनेजमेंट
इस बीमारी को रोकने के लिए जीवनशैली में बदलाव करना जरूरी है. सबसे पहले ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें, क्योंकि अधिक बीपी होने पर हृदय को रक्त पंप करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. दिनभर में दो लीटर से ज्यादा तरल पदार्थ न लें, क्योंकि यह ब्लड वॉल्यूम बढ़ाता है और हृदय पर दबाव डालता है. नमक का सेवन कम करें, हेल्दी डाइट लें और धूम्रपान व शराब से दूर रहें. इसके अलावा, नियमित रूप से हेल्थ चेकअप कराना भी बेहद जरूरी है.

इसे भी पढ़ें- लिवर को चुपचाप खत्म कर देती है यह बीमारी, 99 पर्सेंट लोग नहीं देते हैं ध्यान

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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