सुप्रीम कोर्ट ने जमानत राशि जमा करने की पेशकश के बाद इसे कठिन बताने वाले पक्षकारों की निंदा की

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (23 जून, 2025) को उस प्रचलित तरीके की निंदा की जिसमें पक्षकार स्वेच्छा से जमानत के लिए पर्याप्त धनराशि जमा करने की पेशकश करते हैं, लेकिन बाद में हाईकोर्ट्स की ओर से लगाई गई कठोर शर्तों में ढील देने की मांग करते हैं. जस्टिस के वी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति के अधिकारों के प्रति सजग है, लेकिन उसे न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता के प्रति भी उतना ही सजग होना चाहिए. बेंच ने कहा, 'इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि अधिक जमानत राशि जमानत नहीं देने के बराबर है और जमानत देते समय कठोर शर्तें नहीं लगाई जानी चाहिए.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कठोर शर्तें व्यक्तिगत मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेंगी. यह टिप्पणी उस समय की गई जब पीठ मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को लेकर दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पर केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के प्रावधानों के तहत अपराध का मामला दर्ज किया गया था, क्योंकि उसने कथित तौर पर 13.73 करोड़ रुपये के करों की चोरी की थी. याचिकाकर्ता को 27 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और उसने जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था. यह बात रिकॉर्ड में आई कि जब आठ मई को जमानत याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, तो याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने पहले ही 2.86 करोड़ रुपये जमा कर दिए हैं और वह किसी भी कठोर शर्त का पालन करने के लिए तैयार हैं. वकील ने स्वेच्छा से हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि याचिकाकर्ता जमानत पर रिहा होने की तारीख से 10 दिनों के भीतर 2.50 करोड़ रुपये जमा करने के लिए तैयार है. हाईकोर्ट ने उसे निचली अदालत में लंबित मामले में 50 लाख रुपये जमा करने के निर्देश देने के साथ जमानत दे दी. रिहाई के 10 दिनों के भीतर शेष दो करोड़ रुपये जमा करने का एक और निर्देश दिया गया. यह पुष्टि होने पर कि उसने 50 लाख रुपये का भुगतान किया है, याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट ने 10 लाख रुपये के मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया. हालांकि, 12 मई को हाईकोर्ट में संशोधन के लिए अर्जी दी गई और तर्क दिया गया कि याचिका में उल्लिखित परिस्थितियों के कारण याचिकाकर्ता की रिहाई से पहले 50 लाख रुपये जमा करने की शर्त लगभग असंभव थी. हाईकोर्ट ने 14 मई को याचिकाकर्ता को रिहाई की तारीख से 10 दिनों के भीतर पूरे 2.50 करोड़ रुपये जमा करने की छूट दी थी, जबकि उस पर लगाई गई अन्य शर्तें अपरिवर्तित रहीं. याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के 14 मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

Jun 24, 2025 - 12:30
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सुप्रीम कोर्ट ने जमानत राशि जमा करने की पेशकश के बाद इसे कठिन बताने वाले पक्षकारों की निंदा की

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (23 जून, 2025) को उस प्रचलित तरीके की निंदा की जिसमें पक्षकार स्वेच्छा से जमानत के लिए पर्याप्त धनराशि जमा करने की पेशकश करते हैं, लेकिन बाद में हाईकोर्ट्स की ओर से लगाई गई कठोर शर्तों में ढील देने की मांग करते हैं.

जस्टिस के वी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति के अधिकारों के प्रति सजग है, लेकिन उसे न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता के प्रति भी उतना ही सजग होना चाहिए. बेंच ने कहा, 'इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि अधिक जमानत राशि जमानत नहीं देने के बराबर है और जमानत देते समय कठोर शर्तें नहीं लगाई जानी चाहिए.'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कठोर शर्तें व्यक्तिगत मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेंगी. यह टिप्पणी उस समय की गई जब पीठ मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को लेकर दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पर केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के प्रावधानों के तहत अपराध का मामला दर्ज किया गया था, क्योंकि उसने कथित तौर पर 13.73 करोड़ रुपये के करों की चोरी की थी.

याचिकाकर्ता को 27 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और उसने जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था. यह बात रिकॉर्ड में आई कि जब आठ मई को जमानत याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, तो याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने पहले ही 2.86 करोड़ रुपये जमा कर दिए हैं और वह किसी भी कठोर शर्त का पालन करने के लिए तैयार हैं.

वकील ने स्वेच्छा से हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि याचिकाकर्ता जमानत पर रिहा होने की तारीख से 10 दिनों के भीतर 2.50 करोड़ रुपये जमा करने के लिए तैयार है. हाईकोर्ट ने उसे निचली अदालत में लंबित मामले में 50 लाख रुपये जमा करने के निर्देश देने के साथ जमानत दे दी. रिहाई के 10 दिनों के भीतर शेष दो करोड़ रुपये जमा करने का एक और निर्देश दिया गया.

यह पुष्टि होने पर कि उसने 50 लाख रुपये का भुगतान किया है, याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट ने 10 लाख रुपये के मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया. हालांकि, 12 मई को हाईकोर्ट में संशोधन के लिए अर्जी दी गई और तर्क दिया गया कि याचिका में उल्लिखित परिस्थितियों के कारण याचिकाकर्ता की रिहाई से पहले 50 लाख रुपये जमा करने की शर्त लगभग असंभव थी.

हाईकोर्ट ने 14 मई को याचिकाकर्ता को रिहाई की तारीख से 10 दिनों के भीतर पूरे 2.50 करोड़ रुपये जमा करने की छूट दी थी, जबकि उस पर लगाई गई अन्य शर्तें अपरिवर्तित रहीं. याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के 14 मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

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