सुप्रीम कोर्ट की लोगों को नसीहत : 'बोलने की आजादी का मतलब कुछ भी कहना नहीं, समाज में नफरत फैलाने से बचें'

सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को नसीहत दी है कि वह कुछ बोलते या लिखते समय अपनी जिम्मेदारी को समझें. कोर्ट ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक अनमोल अधिकार है, लेकिन लोगों को खुद पर नियंत्रण रखना होगा. बोलने की आजादी के नाम पर कुछ भी कह देना सही नहीं. अगर वह ऐसा नहीं करेंगे तो सरकार और पुलिस को दखल देना होगा. वजाहत खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दी नसीहत सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल के रहने वाले वजाहत खान की याचिका पर की. सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी की वजह बनने वाला वजाहत खान फिलहाल खुद कानून के शिकंजे में है. हिंदू समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के आरोप में उस पर पश्चिम बंगाल के अलावा असम, महाराष्ट्र और हरियाणा में एफआईआर दर्ज हुई है. उसने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. वजाहत खान ने कहा है कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने उसे पहले ही गिरफ्तार कर रखा है. अब दूसरे राज्यों में दर्ज केस में उसकी गिरफ्तारी न हो. बाकी केस भी कोलकाता ट्रांसफर कर दिए जाएं. 23 जून को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उसे दूसरे राज्यों में दर्ज एफआईआर में गिरफ्तारी से राहत दी थी. सोमवार (14 जुलाई 2025) को हुई सुनवाई में इस राहत को अगली तारीख तक के लिए बढ़ा दिया गया है. सुनवाई के दौरान वजाहत के वकील ने कहा कि उसने अपने विवादित ट्वीट हटा दिए हैं और उनके लिए सार्वजनिक माफी मांगी है. वह इस बात के लिए शर्मिंदा है कि जैसे बयान के लिए उसने दूसरों पर केस दर्ज करवाया, वैसी बातें वह खुद भी कह चुका है. इस पर जजों ने कहा, "सोशल मीडिया से पोस्ट डिलीट करने का मतलब यह नहीं कि जो बात कही गई थी, वह खत्म नहीं हो गई." नफरती पोस्ट करने से बचें लोग- सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि देश भर में लोगों के सोशल मीडिया पोस्ट के लिए एफआईआर दर्ज हो रहे हैं. जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "हर बार नई एफआईआर और आरोपी को जेल में डालने से क्या होगा? यह कोई समाधान नही है. लोगों को खुद ही नफरती सामग्री पोस्ट करने, शेयर करने या लाइक करने से बचना चाहिए." बेंच ने कहा कि लोग एक बटन दबाते हैं और कुछ भी इंटरनेट पर डाल देते हैं. अभिव्यक्ति की आजादी के ऐसे दुरुपयोग से मुकदमों की संख्या बढ़ रही है. सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर कुछ दिशानिर्देश बनाए जाने की जरूरत है. सामाजिक भाईचारा नष्ट करने वाले बयानों पर कार्रवाई जरूरी है, लेकिन यह भी देखना होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन न हो. ये भी पढ़ें : ओडिशा: यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर कार्रवाई न होने पर छात्रा ने किया आत्मदाह, अब प्रिंसिपल गिरफ्तार

Jul 14, 2025 - 21:30
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सुप्रीम कोर्ट की लोगों को नसीहत : 'बोलने की आजादी का मतलब कुछ भी कहना नहीं, समाज में नफरत फैलाने से बचें'

सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को नसीहत दी है कि वह कुछ बोलते या लिखते समय अपनी जिम्मेदारी को समझें. कोर्ट ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक अनमोल अधिकार है, लेकिन लोगों को खुद पर नियंत्रण रखना होगा. बोलने की जादी के नाम पर कुछ भी कह देना सही नहीं. अगर वह ऐसा नहीं करेंगे तो सरकार और पुलिस को दखल देना होगा.

वजाहत खान की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दी नसीहत

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल के रहने वाले वजाहत खान की याचिका पर की. सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी की वजह बनने वाला वजाहत खान फिलहाल खुद कानून के शिकंजे में है. हिंदू समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के आरोप में उस पर पश्चिम बंगाल के अलावा असम, महाराष्ट्र और हरियाणा में एफआईआर दर्ज हुई है. उसने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

वजाहत खान ने कहा है कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने उसे पहले ही गिरफ्तार कर रखा है. अब दूसरे राज्यों में दर्ज केस में उसकी गिरफ्तारी न हो. बाकी केस भी कोलकाता ट्रांसफर कर दिए जाएं. 23 जून को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उसे दूसरे राज्यों में दर्ज एफआईआर में गिरफ्तारी से राहत दी थी. सोमवार (14 जुलाई 2025) को हुई सुनवाई में इस राहत को अगली तारीख तक के लिए बढ़ा दिया गया है.

सुनवाई के दौरान वजाहत के वकील ने कहा कि उसने अपने विवादित ट्वीट हटा दिए हैं और उनके लिए सार्वजनिक माफी मांगी है. वह इस बात के लिए शर्मिंदा है कि जैसे बयान के लिए उसने दूसरों पर केस दर्ज करवाया, वैसी बातें वह खुद भी कह चुका है. इस पर जजों ने कहा, "सोशल मीडिया से पोस्ट डिलीट करने का मतलब यह नहीं कि जो बात कही गई थी, वह खत्म नहीं हो गई."

नफरती पोस्ट करने से बचें लोग- सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि देश भर में लोगों के सोशल मीडिया पोस्ट के लिए एफआईआर दर्ज हो रहे हैं. जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "हर बार नई एफआईआर और आरोपी को जेल में डालने से क्या होगा? यह कोई समाधान नही है. लोगों को खुद ही नफरती सामग्री पोस्ट करने, शेयर करने या लाइक करने से बचना चाहिए."

बेंच ने कहा कि लोग एक बटन दबाते हैं और कुछ भी इंटरनेट पर डाल देते हैं. अभिव्यक्ति की आजादी के ऐसे दुरुपयोग से मुकदमों की संख्या बढ़ रही है. सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर कुछ दिशानिर्देश बनाए जाने की रूरत है. सामाजिक भाईचारा नष्ट करने वाले बयानों पर कार्रवाई जरूरी है, लेकिन यह भी देखना होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन न हो.

ये भी पढ़ें : ओडिशा: यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर कार्रवाई न होने पर छात्रा ने किया आत्मदाह, अब प्रिंसिपल गिरफ्तार

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