'राष्ट्रपति-राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख जो...', प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में बोली कर्नाटक सरकार

प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर आठवें दिन की सुनवाई में कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख होते हैं, वह सिर्फ केंद्र और राज्यों की मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक मामले की सुनवाई में विधानसभा और संसद से विधेयक पारित होने के बाद उन पर फैसला लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए तीन महीने की समयसीमा तय की थी, जिस पर आपत्ति जताते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रेफरेंस भेजकर सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक सरकार के लिए पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यन ने मंगलवार (9 सितंबर, 2025) को कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल नाममात्र के प्रमुख हैं और वह केंद्र और राज्य दोनों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं. इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की बेंच कर रही थी. एडवोकेट  गोपाल सुब्रमण्यन ने बेंच से कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी आपराधिक कार्यवाही से छूट प्रदान करता है क्योंकि उनके पास कार्यपालिका की जिम्मेदारी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए एडवोकेट सुब्रमण्यन ने बेंच को बताया कि विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपाल की संतुष्टि, मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही है. प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई के आठवें दिन सुब्रमण्यन ने कहा कि संविधान राज्य में निर्वाचित सरकार के साथ समानांतर प्रशासन की व्यवस्था नहीं करता है. सीजेआई गवई ने सुब्रमण्यन से पूछा कि क्या सीआरपीसी की धारा 197 के तहत, जो लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी से संबंधित है, सरकार को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना पड़ता है. इस पर उन्होंने कहा कि इस कोर्ट के कई ऐसे फैसले हैं, जिनमें यह माना गया है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं और सीआरपीसी की धारा 197 के संबंध में अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं. इससे पहले तीन सिबंतर को पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि विधेयक के रूप में जनता की आकांक्षाओं को राज्यपालों और राष्ट्रपति की मनमर्जी और इच्छाओं के अधीन नहीं किया जा सकता, क्योंकि कार्यपालिका को विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से रोका गया है. तृणमूल कांग्रेस (TMC) शासित राज्य सरकार ने कहा था कि राज्यपाल संप्रभु की इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते हैं और विधानसभा की ओर से पारित विधेयक की विधायी क्षमता की जांच करने के लिए आगे नहीं बढ़ सकते हैं, जो न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.

Sep 9, 2025 - 19:30
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'राष्ट्रपति-राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख जो...', प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में बोली कर्नाटक सरकार

प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर आठवें दिन की सुनवाई में कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल नाममात्र के प्रमुख होते हैं, वह सिर्फ केंद्र और राज्यों की मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक मामले की सुनवाई में विधानसभा और संसद से विधेयक पारित होने के बाद उन पर फैसला लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए तीन महीने की समयसीमा तय की थी, जिस पर आपत्ति जताते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रेफरेंस भेजकर सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक सरकार के लिए पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यन ने मंगलवार (9 सितंबर, 2025) को कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल केवल नाममात्र के प्रमुख हैं और वह केंद्र और राज्य दोनों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं.

इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर की बेंच कर रही थी. एडवोकेट  गोपाल सुब्रमण्यन ने बेंच से कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी आपराधिक कार्यवाही से छूट प्रदान करता है क्योंकि उनके पास कार्यपालिका की जिम्मेदारी नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए एडवोकेट सुब्रमण्यन ने बेंच को बताया कि विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपाल की संतुष्टि, मंत्रिपरिषद की संतुष्टि ही है. प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई के आठवें दिन सुब्रमण्यन ने कहा कि संविधान राज्य में निर्वाचित सरकार के साथ समानांतर प्रशासन की व्यवस्था नहीं करता है.

सीजेआई गवई ने सुब्रमण्यन से पूछा कि क्या सीआरपीसी की धारा 197 के तहत, जो लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी से संबंधित है, सरकार को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना पड़ता है. इस पर उन्होंने कहा कि इस कोर्ट के कई ऐसे फैसले हैं, जिनमें यह माना गया है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं और सीआरपीसी की धारा 197 के संबंध में अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं.

इससे पहले तीन सिबंतर को पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि विधेयक के रूप में जनता की आकांक्षाओं को राज्यपालों और राष्ट्रपति की मनमर्जी और इच्छाओं के अधीन नहीं किया जा सकता, क्योंकि कार्यपालिका को विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से रोका गया है.

तृणमूल कांग्रेस (TMC) शासित राज्य सरकार ने कहा था कि राज्यपाल संप्रभु की इच्छा पर सवाल नहीं उठा सकते हैं और विधानसभा की ओर से पारित विधेयक की विधायी क्षमता की जांच करने के लिए आगे नहीं बढ़ सकते हैं, जो न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.

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