नेपाल पहुंचे चीफ जस्टिस गवई, न्यायपालिकाओं को एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने की जरूरत बताई
चीफ जस्टिस बी आर गवई ने कहा है कि आज की दुनिया में न्यायपालिकाएं आपस में जुड़ी हुई हैं. उनके लिए एक-दूसरे के अनुभवों से सीखना महत्वपूर्ण है. काठमांडू में नेपाल-भारत न्यायिक संवाद को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस ने स्वतंत्रता के बाद भारतीय न्यायपालिका की उपलब्धियों का भी उल्लेख किया. इस दौरान नेपाल के चीफ जस्टिस प्रकाश मान सिंह राउत समेत दूसरे जज मौजूद रहे. MoU पर हो चुके हैं हस्ताक्षर चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि भारत और नेपाल की न्यायपालिका के बीच संबंध काफी पुराने हैं. इस साल अप्रैल में दोनों देशों के सुप्रीम कोर्ट ने संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे. यह यात्रा इसी सहयोग को जारी रखने का एक हिस्सा है. 'न्यायपालिका सिर्फ कानून लागू करवाने के लिए नहीं' अपने संबोधन में चीफ जस्टिस ने भारतीय न्यायपालिका की भूमिका में आए बदलावों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कि अब न्यायपालिका कानून की व्याख्या करने और कानून को लागू करवाने तक सीमित नहीं है. उसने अपनी भूमिका को बड़ा किया है. वह कानून के मकसद और उसके नतीजों की भी पहचान कर रही है. इसके आधार पर आदेश जारी किए जा रहे हैं. बड़े फैसलों का उल्लेख उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे फैसलों का उल्लेख किया, जिन्होंने संविधान और कानून की व्याख्या में बड़े बदलाव किए. चीफ जस्टिस ने 1973 के केशवानंद भारती बनाम केरल फैसले का खास तौर पर जिक्र किया. इस फैसले में यह कहा गया था कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती. इस फैसले का इस्तेमाल दुनियाभर की अदालतों ने अपने यहां के संविधान की व्याख्या करते समय किया है. चीफ जस्टिस ने दिव्यांगों तक डिजिटल सेवाओं की पहुंच के लिए इस साल अप्रैल में दिए 'अमर जैन बनाम भारत सरकार', कैदियों में जाति के आधार पर भेदभाव खत्म करने के लिए 2024 में दिए 'सुकन्या शांता बनाम भारत सरकार', ऑफिस में महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए 1997 में आए 'विशाखा बनाम भारत सरकार' जैसे कई फैसलों का हवाला दिया. नेपाली सुप्रीम कोर्ट की सराहना CJI गवई ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की ओर से लैंगिक न्याय, निजता, पर्यावरण और स्वदेशी लोगों के अधिकारों के क्षेत्र में उठाए गए कदमों की सराहना भी की. उन्होंने पुण्यबती पाठक बनाम विदेश मंत्रालय (2005) मामले का जिक्र किया. इस फैसले में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 35 साल से कम उम्र की महिलाओं का पासपोर्ट बनाने के लिए अभिभावक की सहमति की आवश्यकता को रद्द किया था. प्रशासनिक सुधारों की जानकारी अपने संबोधन के दौरान चीफ जस्टिस ने भारत में ऑनलाइन की बढ़ती सुविधा, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के कई भाषाओं में अनुवाद, राष्ट्रीय डिजिटल न्यायिक घड़ी जैसे प्रशासनिक सुधारों की भी चर्चा की. ये भी पढ़ें:- स्थानीय निकाय चुनाव में EVM से क्यों नहीं करवाएंगे वोटिंग? CM सिद्धारमैया ने बताई वजह

चीफ जस्टिस बी आर गवई ने कहा है कि आज की दुनिया में न्यायपालिकाएं आपस में जुड़ी हुई हैं. उनके लिए एक-दूसरे के अनुभवों से सीखना महत्वपूर्ण है. काठमांडू में नेपाल-भारत न्यायिक संवाद को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस ने स्वतंत्रता के बाद भारतीय न्यायपालिका की उपलब्धियों का भी उल्लेख किया. इस दौरान नेपाल के चीफ जस्टिस प्रकाश मान सिंह राउत समेत दूसरे जज मौजूद रहे.
MoU पर हो चुके हैं हस्ताक्षर
चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि भारत और नेपाल की न्यायपालिका के बीच संबंध काफी पुराने हैं. इस साल अप्रैल में दोनों देशों के सुप्रीम कोर्ट ने संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे. यह यात्रा इसी सहयोग को जारी रखने का एक हिस्सा है.
'न्यायपालिका सिर्फ कानून लागू करवाने के लिए नहीं'
अपने संबोधन में चीफ जस्टिस ने भारतीय न्यायपालिका की भूमिका में आए बदलावों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कि अब न्यायपालिका कानून की व्याख्या करने और कानून को लागू करवाने तक सीमित नहीं है. उसने अपनी भूमिका को बड़ा किया है. वह कानून के मकसद और उसके नतीजों की भी पहचान कर रही है. इसके आधार पर आदेश जारी किए जा रहे हैं.
बड़े फैसलों का उल्लेख
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे फैसलों का उल्लेख किया, जिन्होंने संविधान और कानून की व्याख्या में बड़े बदलाव किए. चीफ जस्टिस ने 1973 के केशवानंद भारती बनाम केरल फैसले का खास तौर पर जिक्र किया. इस फैसले में यह कहा गया था कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती. इस फैसले का इस्तेमाल दुनियाभर की अदालतों ने अपने यहां के संविधान की व्याख्या करते समय किया है.
चीफ जस्टिस ने दिव्यांगों तक डिजिटल सेवाओं की पहुंच के लिए इस साल अप्रैल में दिए 'अमर जैन बनाम भारत सरकार', कैदियों में जाति के आधार पर भेदभाव खत्म करने के लिए 2024 में दिए 'सुकन्या शांता बनाम भारत सरकार', ऑफिस में महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए 1997 में आए 'विशाखा बनाम भारत सरकार' जैसे कई फैसलों का हवाला दिया.
नेपाली सुप्रीम कोर्ट की सराहना
CJI गवई ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की ओर से लैंगिक न्याय, निजता, पर्यावरण और स्वदेशी लोगों के अधिकारों के क्षेत्र में उठाए गए कदमों की सराहना भी की. उन्होंने पुण्यबती पाठक बनाम विदेश मंत्रालय (2005) मामले का जिक्र किया. इस फैसले में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 35 साल से कम उम्र की महिलाओं का पासपोर्ट बनाने के लिए अभिभावक की सहमति की आवश्यकता को रद्द किया था.
प्रशासनिक सुधारों की जानकारी
अपने संबोधन के दौरान चीफ जस्टिस ने भारत में ऑनलाइन की बढ़ती सुविधा, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के कई भाषाओं में अनुवाद, राष्ट्रीय डिजिटल न्यायिक घड़ी जैसे प्रशासनिक सुधारों की भी चर्चा की.
ये भी पढ़ें:- स्थानीय निकाय चुनाव में EVM से क्यों नहीं करवाएंगे वोटिंग? CM सिद्धारमैया ने बताई वजह
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