राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों को समय सीमा में बांधने का मामला: प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई सुनवाई, जानिए- किसने क्या कहा

राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा में बांधने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ को इस बारे में राष्ट्रपति की तरफ से भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर विचार कर उत्तर देना है. बहस की शुरुआत करते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकरमनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान को नए सिरे से नहीं लिख सकता. क्या है मामला? इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास लंबित तमिलनाडु सरकार के 10 विधेयकों को अपनी तरफ से मंज़ूरी दे दी थी. कोर्ट ने राज्यपाल या राष्ट्रपति के फैसला लेने की समय सीमा भी तय कर दी थी. कोर्ट ने कहा था कि अगर तय समय में वह फैसला न लें तो राज्य सरकार कोर्ट आ सकती है. 5 जजों की बेंच कर रही सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को लेकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को 14 सवाल भेजे थे. उन पर सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस बी आर गवई ने अपनी अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच गठित की है, उसके बाकी सदस्य हैं- जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर. बिना विचार रेफरेंस लौटाने की मांग सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले तमिलनाडु और केरल के वकीलों एक घंटे का समय दिया. दोनों राज्य मांग कर रहे हैं कि बिना विचार किए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस को लौटा दिया जाए. केरल की तरफ से वरिष्ठ वकील के के वेणुगोपाल और तमिलनाडु की तरफ से अभिषेक मनोज सिंघवी ने पक्ष रखा. दोनों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक बेंच विधेयकों पर फैसला दे चुकी है. केंद्र सरकार प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के ज़रिए उसे अप्रत्यक्ष तौर पर बदलवाने की कोशिश कर रही है इसलिए सुप्रीम कोर्ट बिना विचार लौटा दे. जज सहमत नहीं हुए दोनों वरिष्ठ वकीलों की बात से 5 जजों की बेंच सहमत नजर नहीं आई. चीफ जस्टिस ने कहा, 'जब आदरणीय राष्ट्रपति ने हमसे कुछ सवाल पूछे हैं तो हमें उनका उत्तर देना होगा, लेकिन यह साफ है कि हम कानूनी सवालों का उत्तर दे रहे हैं. किसी पुराने फैसले को बदलने की बात नहीं कर रहे हैं.' संविधान दोबारा नहीं लिख सकते प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर चर्चा की शुरुआत आम तौर पर देश के अटॉर्नी जनरल करते हैं. इस बार भी ऐसा ही हुआ. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान को दोबारा नहीं लिख सकता है. उनका साथ देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहले संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल को समय सीमा में बांधने का प्रावधान रखा जा रहा था, लेकिन डॉक्टर अंबेडकर ने उसे हटाने की पैरवी की थी. कोर्ट का अहम सवाल बेंच के सदस्य जस्टिस नरसिम्हा ने सॉलिसिटर जनरल को रोकते हुए कहा, 'तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा. आखिर अगर राज्यपाल विधायकों को लंबे समय तक रोक कर रखें तो क्या किया जाए?' इस पर तुषार मेहता ने जवाब दिया, 'यह चिंता वाजिब है, लेकिन जरूरी नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के पास भी हर बात का समाधान हो. राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में कोर्ट को दखल देने की शक्ति संविधान में नहीं दी है.'

Aug 19, 2025 - 20:30
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राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों को समय सीमा में बांधने का मामला: प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई सुनवाई, जानिए- किसने क्या कहा

राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा में बांधने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ को इस बारे में राष्ट्रपति की तरफ से भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर विचार कर उत्तर देना है. बहस की शुरुआत करते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकरमनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान को नए सिरे से नहीं लिख सकता.

क्या है मामला?

इस साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास लंबित तमिलनाडु सरकार के 10 विधेयकों को अपनी तरफ से मंज़ूरी दे दी थी. कोर्ट ने राज्यपाल या राष्ट्रपति के फैसला लेने की समय सीमा भी तय कर दी थी. कोर्ट ने कहा था कि अगर तय समय में वह फैसला न लें तो राज्य सरकार कोर्ट आ सकती है.

5 जजों की बेंच कर रही सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को लेकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को 14 सवाल भेजे थे. उन पर सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस बी आर गवई ने अपनी अध्यक्षता में 5 जजों की बेंच गठित की है, उसके बाकी सदस्य हैं- जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर.

बिना विचार रेफरेंस लौटाने की मांग

सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले तमिलनाडु और केरल के वकीलों एक घंटे का समय दिया. दोनों राज्य मांग कर रहे हैं कि बिना विचार किए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस को लौटा दिया जाए. केरल की तरफ से वरिष्ठ वकील के के वेणुगोपाल और तमिलनाडु की तरफ से अभिषेक मनोज सिंघवी ने पक्ष रखा. दोनों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक बेंच विधेयकों पर फैसला दे चुकी है. केंद्र सरकार प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के ज़रिए उसे अप्रत्यक्ष तौर पर बदलवाने की कोशिश कर रही है इसलिए सुप्रीम कोर्ट बिना विचार लौटा दे.

जज सहमत नहीं हुए

दोनों वरिष्ठ वकीलों की बात से 5 जजों की बेंच सहमत नजर नहीं आई. चीफ जस्टिस ने कहा, 'जब आदरणीय राष्ट्रपति ने हमसे कुछ सवाल पूछे हैं तो हमें उनका उत्तर देना होगा, लेकिन यह साफ है कि हम कानूनी सवालों का उत्तर दे रहे हैं. किसी पुराने फैसले को बदलने की बात नहीं कर रहे हैं.'

संविधान दोबारा नहीं लिख सकते

प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर चर्चा की शुरुआत आम तौर पर देश के अटॉर्नी जनरल करते हैं. इस बार भी ऐसा ही हुआ. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट संविधान को दोबारा नहीं लिख सकता है. उनका साथ देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहले संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल को समय सीमा में बांधने का प्रावधान रखा जा रहा था, लेकिन डॉक्टर अंबेडकर ने उसे हटाने की पैरवी की थी.

कोर्ट का अहम सवाल

बेंच के सदस्य जस्टिस नरसिम्हा ने सॉलिसिटर जनरल को रोकते हुए कहा, 'तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा. आखिर अगर राज्यपाल विधायकों को लंबे समय तक रोक कर रखें तो क्या किया जाए?' इस पर तुषार मेहता ने जवाब दिया, 'यह चिंता वाजिब है, लेकिन जरूरी नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के पास भी हर बात का समाधान हो. राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में कोर्ट को दखल देने की शक्ति संविधान में नहीं दी है.'

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