महाराष्ट्र के वसई-विरार में भ्रष्टाचार का बड़ा खेल, ED ने खोल दिए 4 अहम किरदारों के सारे राज

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपनी रिमांड याचिका में खुलासा किया है कि पूर्व वसई विरार सिटी म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (VVCMC) आयुक्त अनिल कुमार खंडेराव पवार एक ऐसे कार्टेल के शीर्ष पर थे, जिसमें नगर निगम अधिकारी, बिल्डर और बिचौलिए शामिल थे. ED का दावा है कि इस कार्टेल ने पूरे निगम को संगठित भ्रष्टाचार के अड्डे में बदल दिया. ED के अनुसार, पवार ने “फिक्स–रेट रिश्वत प्रणाली” को संस्थागत रूप दिया, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा वह खुद रखते थे, जबकि उनके सहयोगी और प्लानिंग अधिकारी – जिनमें टाउन प्लानिंग के डिप्टी डायरेक्टर वाई. एस. रेड्डी भी शामिल थे, यह सुनिश्चित करते थे कि 60 एकड़ सरकारी और निजी ज़मीन पर अवैध इमारतें बिना रोकटोक खड़ी हों. ED का कहना है कि यह रैकेट पूर्व नगरसेवक सीताराम सुधामा गुप्ता और उनके भतीजे अरुण सदानंद गुप्ता द्वारा बड़े पैमाने पर ज़मीन कब्ज़े से शुरू हुआ और धीरे-धीरे यह बेनामी लेनदेन, शेल कंपनियों और नकद वसूली के माध्यम से सैंकड़ों करोड़ रुपये के समानांतर अर्थतंत्र में बदल गया. ED ने अपनी रिमांड रिपोर्ट में हर एक आरोपी की भूमिका को बड़ी बारीकी से बयान किया है. आरोपी नंबर-1 सीताराम सुधामा गुप्ता बहुजन विकास आघाड़ी (BVA) पार्टी के पूर्व नगरसेवक सीताराम गुप्ता पर बड़े पैमाने पर ज़मीन कब्ज़ा, अवैध निर्माण और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है.• साल 2007 में गुप्ता ने सरकारी अनुमति के बिना चॉल बनाई और जनता को बेच दी, शिकायतों के बाद CIDCO ने 2007–08 में इन्हें ध्वस्त कर दिया.• 2009–2011 के बीच जब VVCMC ने CIDCO की जगह ले ली तो गुप्ता ने लगभग 60 एकड़ ज़मीन (जिसमें सरकारी प्लॉट भी शामिल थे) पर 168 G+4 इमारतें और 74 चॉल रूम खड़े किए, जिन्हें बाद में हाईकोर्ट के आदेश से तोड़ा गया.• जांच में सामने आया कि गुप्ता और उनके सहयोगियों ने जाली एग्रीमेंट और पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल कर 60 एकड़ ज़मीन स्थानीय बिल्डरों को बेच दी.• 2013–2021 के बीच, इन बिल्डरों ने VVCMC अधिकारियों की मिलीभगत से 41 इमारतें खड़ी की.• इन सौदों से गुप्ता को मोटी नकद रकम मिली, जिसे डमी बिल्डरों, शेल कंपनियों और बेनामी मालिकों (अक्सर ड्राइवर, रिक्शा चालक या कर्मचारी के नाम पर) के जरिए घुमाया गया.• मई 2025 की छापेमारी में उनके घर से 45 लाख नकद बरामद हुआ. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अवैध निर्माण को मंजूरी दिलाने और कार्रवाई से बचने के लिए उन्होंने नगर निगम अधिकारियों को रिश्वत दी. ED के अनुसार, गुप्ता की गतिविधियां उन्हें इस अपराध का मुख्य सूत्रधार और लाभार्थी साबित करती हैं, जो PMLA 2002 की धारा 3 और 4 के तहत अपराध की श्रेणी में आता है. आरोपी नंबर-2 अरुण सदानंद गुप्ता सीताराम गुप्ता के भतीजे अरुण गुप्ता वसई-विरार क्षेत्र में प्रभावशाली माने जाते हैं. उन्होंने सीताराम के साथ मिलकर और स्वतंत्र रूप से अवैध सौदे और मनी लॉन्ड्रिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. • 2006 में, सीताराम के साथ मिलकर अरुण ने आचोले, नालासोपारा (पूर्व) के सर्वे नं. 22–32 की करीब 30 एकड़ ज़मीन हासिल की, जिसे CIDCO ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित किया था.• प्रतिबंधित ज़मीन जानते हुए भी, दोनों ने इसे लगभग 100 उप-प्लॉट्स में बांटकर बिना मंजूरी बेच दिया.• खरीदारों, जिनमें से कई ने नकद भुगतान किया, को झूठा विश्वास दिलाया गया कि यह वैध रिहायशी प्लॉट हैं.• दो अवैध इमारतें भी खड़ी की गईं, जिन्हें बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने तोड़ने का आदेश दिया.• इन सौदों से हुई नकद आमदनी को किस्तों में कथित विक्रेता को दी गई और बाकी रकम वसई, नायगांव, पालघर और नालासोपारा में महंगी संपत्तियों में निवेश की गई.• जांच के दौरान अरुण गुप्ता स्वामित्व और भुगतान के दस्तावेज़ों का विश्वसनीय रिकॉर्ड नहीं दिखा सके और उनके पास से जब्त की गई बिक्री विलेखों में भारी विसंगतियां मिलीं. आरोपी नंबर-3 वाई. एस. रेड्डी वाई. एस. रेड्डी ने 1993 में CIDCO में असिस्टेंट टाउन प्लानर के रूप में करियर शुरू किया. 2010 में उन्हें VVCMC में भेजा गया और 2012 में वह डिप्टी डायरेक्टर ऑफ टाउन प्लानिंग बने.• इस पद पर रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया.• बिल्डरों से मंजूरी, NOC और अवैध निर्माण को बचाने के बदले 10–12 रुपये प्रति वर्ग फुट रिश्वत वसूलते थे• व्हाट्सऐप चैट्स और बिल्डरों के बयान बताते हैं कि कोड नाम इस्तेमाल होते थे: “D” (रेड्डी), “C” (कमिश्नर पवार)• एक आर्किटेक्ट ने स्वीकार किया कि उन्होंने 1.95 लाख वर्ग फुट के प्रोजेक्ट के लिए रेड्डी को 50 लाख रुपये दिए• मई–जून 2025 की छापेमारी में ED ने उनके घर से 8.23 करोड़ नकद और 23.25 करोड़ के हीरे–जवाहरात जब्त किए• यह पैसा बाद में रियल एस्टेट, ज्वेलरी और अन्य संपत्तियों में लगाया गया ताकि इसकी अवैध उत्पत्ति छिपाई जा सके ED के अनुसार, रेड्डी ने अपने पद का दुरुपयोग कर व्यक्तिगत लाभ उठाया और वसई-विरार में अवैध निर्माण को पनपने दिया आरोपी नंबर-4 अनिल कुमार खंडेराव पवार 2014 बैच के IAS अधिकारी, 13 जनवरी 2022 से 25 जुलाई 2025 तक VVCMC के आयुक्त रहे.• ED की जांच में सामने आया कि पवार ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के बजाय पहले से मौजूद कार्टेल को और मज़बूत किया और VVCMC को पूरी तरह “भ्रष्टाचार का केंद्र” बना दिया.• उन्होंने संगठित घूस और वसूली तंत्र खड़ा किया, जिसमें 150 रुपये प्रति वर्ग फुट की दर तय थी• 50 रुपये खुद पवार के लिए• 30 रुपये अतिरिक्त आयुक्त के लिए• 20 रुपये डिप्टी आयुक्त के लिए• शेष सहायक आयुक्त, इंजीनियर और प्लानिंग स्टाफ में बांटा जाता था• बिल्डरों और आर्किटेक्ट्स ने बयान दिया कि पवार के लिए “C” और रेड्ड

Aug 18, 2025 - 08:30
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महाराष्ट्र के वसई-विरार में भ्रष्टाचार का बड़ा खेल, ED ने खोल दिए 4 अहम किरदारों के सारे राज

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपनी रिमांड याचिका में खुलासा किया है कि पूर्व वसई विरार सिटी म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (VVCMC) आयुक्त अनिल कुमार खंडेराव पवार एक ऐसे कार्टेल के शीर्ष पर थे, जिसमें नगर निगम अधिकारी, बिल्डर और बिचौलिए शामिल थे. ED का दावा है कि इस कार्टेल ने पूरे निगम को संगठित भ्रष्टाचार के अड्डे में बदल दिया.

ED के अनुसार, पवार ने “फिक्स–रेट रिश्वत प्रणाली” को संस्थागत रूप दिया, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा वह खुद रखते थे, जबकि उनके सहयोगी और प्लानिंग अधिकारी – जिनमें टाउन प्लानिंग के डिप्टी डायरेक्टर वाई. एस. रेड्डी भी शामिल थे, यह सुनिश्चित करते थे कि 60 एकड़ सरकारी और निजी ज़मीन पर अवैध इमारतें बिना रोकटोक खड़ी हों.

ED का कहना है कि यह रैकेट पूर्व नगरसेवक सीताराम सुधामा गुप्ता और उनके भतीजे अरुण सदानंद गुप्ता द्वारा बड़े पैमाने पर ज़मीन कब्ज़े से शुरू हुआ और धीरे-धीरे यह बेनामी लेनदेन, शेल कंपनियों और नकद वसूली के माध्यम से सैंकड़ों करोड़ रुपये के समानांतर अर्थतंत्र में बदल गया. ED ने अपनी रिमांड रिपोर्ट में हर एक आरोपी की भूमिका को बड़ी बारीकी से बयान किया है.

आरोपी नंबर-1 सीताराम सुधामा गुप्ता

बहुजन विकास आघाड़ी (BVA) पार्टी के पूर्व नगरसेवक सीताराम गुप्ता पर बड़े पैमाने पर ज़मीन कब्ज़ा, अवैध निर्माण और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है.
• साल 2007 में गुप्ता ने सरकारी अनुमति के बिना चॉल बनाई और जनता को बेच दी, शिकायतों के बाद CIDCO ने 2007–08 में इन्हें ध्वस्त कर दिया.
• 2009–2011 के बीच जब VVCMC ने CIDCO की जगह ले ली तो गुप्ता ने लगभग 60 एकड़ ज़मीन (जिसमें सरकारी प्लॉट भी शामिल थे) पर 168 G+4 इमारतें और 74 चॉल रूम खड़े किए, जिन्हें बाद में हाईकोर्ट के आदेश से तोड़ा गया.
• जांच में सामने आया कि गुप्ता और उनके सहयोगियों ने जाली एग्रीमेंट और पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल कर 60 एकड़ ज़मीन स्थानीय बिल्डरों को बेच दी.
• 2013–2021 के बीच, इन बिल्डरों ने VVCMC अधिकारियों की मिलीभगत से 41 इमारतें खड़ी की.
• इन सौदों से गुप्ता को मोटी नकद रकम मिली, जिसे डमी बिल्डरों, शेल कंपनियों और बेनामी मालिकों (अक्सर ड्राइवर, रिक्शा चालक या कर्मचारी के नाम पर) के जरिए घुमाया गया.
• मई 2025 की छापेमारी में उनके घर से 45 लाख नकद बरामद हुआ. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अवैध निर्माण को मंजूरी दिलाने और कार्रवाई से बचने के लिए उन्होंने नगर निगम अधिकारियों को रिश्वत दी.

ED के अनुसार, गुप्ता की गतिविधियां उन्हें इस अपराध का मुख्य सूत्रधार और लाभार्थी साबित करती हैं, जो PMLA 2002 की धारा 3 और 4 के तहत अपराध की श्रेणी में आता है.

आरोपी नंबर-2 अरुण सदानंद गुप्ता

सीताराम गुप्ता के भतीजे अरुण गुप्ता वसई-विरार क्षेत्र में प्रभावशाली माने जाते हैं. उन्होंने सीताराम के साथ मिलकर और स्वतंत्र रूप से अवैध सौदे और मनी लॉन्ड्रिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

• 2006 में, सीताराम के साथ मिलकर अरुण ने आचोले, नालासोपारा (पूर्व) के सर्वे नं. 22–32 की करीब 30 एकड़ ज़मीन हासिल की, जिसे CIDCO ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित किया था.
• प्रतिबंधित ज़मीन जानते हुए भी, दोनों ने इसे लगभग 100 उप-प्लॉट्स में बांटकर बिना मंजूरी बेच दिया.
• खरीदारों, जिनमें से कई ने नकद भुगतान किया, को झूठा विश्वास दिलाया गया कि यह वैध रिहायशी प्लॉट हैं.
• दो अवैध इमारतें भी खड़ी की गईं, जिन्हें बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने तोड़ने का आदेश दिया.
• इन सौदों से हुई नकद आमदनी को किस्तों में कथित विक्रेता को दी गई और बाकी रकम वसई, नायगांव, पालघर और नालासोपारा में महंगी संपत्तियों में निवेश की गई.
• जांच के दौरान अरुण गुप्ता स्वामित्व और भुगतान के दस्तावेज़ों का विश्वसनीय रिकॉर्ड नहीं दिखा सके और उनके पास से जब्त की गई बिक्री विलेखों में भारी विसंगतियां मिलीं.

आरोपी नंबर-3 वाई. एस. रेड्डी

वाई. एस. रेड्डी ने 1993 में CIDCO में असिस्टेंट टाउन प्लानर के रूप में करियर शुरू किया. 2010 में उन्हें VVCMC में भेजा गया और 2012 में वह डिप्टी डायरेक्टर ऑफ टाउन प्लानिंग बने.
• इस पद पर रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया.
• बिल्डरों से मंजूरी, NOC और अवैध निर्माण को बचाने के बदले 10–12 रुपये प्रति वर्ग फुट रिश्वत वसूलते थे
• व्हाट्सऐप चैट्स और बिल्डरों के बयान बताते हैं कि कोड नाम इस्तेमाल होते थे: “D” (रेड्डी), “C” (कमिश्नर पवार)
• एक आर्किटेक्ट ने स्वीकार किया कि उन्होंने 1.95 लाख वर्ग फुट के प्रोजेक्ट के लिए रेड्डी को 50 लाख रुपये दिए
• मई–जून 2025 की छापेमारी में ED ने उनके घर से 8.23 करोड़ नकद और 23.25 करोड़ के हीरे–जवाहरात जब्त किए
• यह पैसा बाद में रियल एस्टेट, ज्वेलरी और अन्य संपत्तियों में लगाया गया ताकि इसकी अवैध उत्पत्ति छिपाई जा सके

ED के अनुसार, रेड्डी ने अपने पद का दुरुपयोग कर व्यक्तिगत लाभ उठाया और वसई-विरार में अवैध निर्माण को पनपने दिया

आरोपी नंबर-4 अनिल कुमार खंडेराव पवार

2014 बैच के IAS अधिकारी, 13 जनवरी 2022 से 25 जुलाई 2025 तक VVCMC के आयुक्त रहे.
• ED की जांच में सामने आया कि पवार ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के बजाय पहले से मौजूद कार्टेल को और मज़बूत किया और VVCMC को पूरी तरह “भ्रष्टाचार का केंद्र” बना दिया.
• उन्होंने संगठित घूस और वसूली तंत्र खड़ा किया, जिसमें 150 रुपये प्रति वर्ग फुट की दर तय थी
• 50 रुपये खुद पवार के लिए
• 30 रुपये अतिरिक्त आयुक्त के लिए
• 20 रुपये डिप्टी आयुक्त के लिए
• शेष सहायक आयुक्त, इंजीनियर और प्लानिंग स्टाफ में बांटा जाता था
• बिल्डरों और आर्किटेक्ट्स ने बयान दिया कि पवार के लिए “C” और रेड्डी के लिए “D” कोड नाम इस्तेमाल होते थे
• एक प्रोजेक्ट (1.95 लाख वर्ग फुट) के लिए केवल पवार का हिस्सा 48.75 लाख रुपये तय किया गया था
• पवार ने न सिर्फ 41 अवैध इमारतों पर कार्रवाई रोक दी, बल्कि बदले में करोड़ों की घूस वसूली
• जांच में सामने आया कि पवार ने रिश्तेदारों, शेल कंपनियों और बेनामी संस्थाओं के माध्यम से अवैध कमाई को रियल एस्टेट और लग्ज़री आइटम्स में निवेश किया
• उनके एक रिश्तेदार ने स्वीकार किया कि रेड्डी की मार्फत 3.375 करोड़ रुपये कैश (37.5 लाख रुपये + 3 करोड़ रुपये) दादर में अंगड़िया कूरियर से लिया गया, जिसे बाद में प्रॉपर्टीज में लगाया गया
• महंगी साड़ियां, मोती, सोना और हीरे भी खरीदे गए, जिनका भुगतान नकद में किया गया

ED का कहना है कि पवार ने अपने पद का दुरुपयोग कर निगम को संगठित भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया और करोड़ों रुपये के अवैध लेनदेन के मुख्य लाभार्थी बने

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