भारत पर मंडराता ग्रहों का संकट! ज्योतिषीय भविष्यवाणी में बाढ़, युद्ध, अस्थिरता और विनाश का खतरा? जानें इसके बारे में
Planetary crisis on India: 15 अगस्त 1947 समय 00:00 बजे स्थान दिल्ली, भारत की स्वतंत्रता कुंडली वृषभ लग्न की है, जिसमें राहु लग्न में, मंगल मिथुन में, और सूर्य, चंद्रमा, बुध, शुक्र, शनि पांचों ग्रह एक साथ कर्क राशि में स्थित हैं. यह योग भारत की जनता, वाणी, राजनीतिक नीति, और प्राकृतिक संसाधनों पर गहरा प्रभाव डालता है. वर्तमान गोचर में शनि मीन में वक्री, राहु कुंभ में, बुध और सूर्य कर्क में वक्री व अस्त, मंगल कन्या में, बृहस्पति और शुक्र मिथुन में, तथा केतु सिंह में स्थित हैं. यह गोचर संरचना मेदिनी ज्योतिष के अनुसार भारत पर बहु-स्तरीय प्रभाव डालने वाली है. वक्री शनि का मीन राशि में गोचर-जलविपत्ति और कृषि संकट वर्तमान में शनि मीन राशि, जो कि जलतत्व की राशि है, में वक्री होकर गोचर कर रहा है. बृहत्संहिता के अनुसार- "यदा शनि: जलराशिषु वक्रगत: स्यात्, जलोपद्रवो भवति, धान्यहानिः, जनविपत्ति: च" इस श्लोक का अर्थ है कि जब शनि जल राशि में वक्री होता है, तब अत्यधिक वर्षा, बाढ़, फसल हानि, और जन-स्वास्थ्य संबंधी संकट उत्पन्न होते हैं. इसका प्रभाव भारत के अनेक कृषि प्रधान क्षेत्रों में दिख सकता है, विशेष रूप से गंगा बेसिन, पूर्वोत्तर, और तटीय क्षेत्रों में. मंगल का षष्ठ भाव में गोचर-शत्रु बाधा और रोग वृद्धि का संकेतमंगल का गोचर इस समय भारत की कुंडली के षष्ठ भाव (कन्या राशि) में हो रहा है. यह स्थान रोग, शत्रु, और आंतरिक तनाव से संबंधित है. नारद संहिता में कहा गया है- "मंगलश्च षष्ठगे युद्धभीतिं प्रयच्छति, रोगाणां च प्रकोपं करोति" इस गोचर से सीमाओं पर तनाव, सेना की सक्रियता, तथा स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक दबाव की आशंका है. यह संक्रमण फैलने या पेट संबंधी रोगों की नई लहर का संकेत हो सकता है. बुध और सूर्य का अस्त एवं वक्री-शासन में भ्रम और नीतिगत अव्यवस्थाबुध और सूर्य दोनों कर्क राशि में अस्त और बुध वक्री भी है, जो शासन और संवाद की दृष्टि से घातक है. बृहत्संहिता का स्पष्ट संकेत है- "यदि बुध अस्तश्च वक्री च स्यात्, तदा राजद्वारे कलहः, मंत्रिभेदश्च" इस योग के प्रभाव से सरकार में मतभेद, प्रशासनिक भ्रम, तथा जनता की नीतियों से असंतुष्टि सामने आ सकती है. नीतिगत निर्णयों में देरी और संचार में बाधा के कारण जनता की नाराजगी बढ़ सकती है. राहु कुंभ में- सत्ता पर अराजकता का प्रभावराहु का गोचर कुंभ राशि में भारत की कुंडली के दशम भाव (राज्य सत्ता) में हो रहा है. यह स्थान सरकार, प्रशासन, और कार्यपालिका से संबंधित है. नारद संहिता कहती है: "राहुर्वातकृत् सदा, दिग्भ्रमं जनयति, संकटा मार्गे जनसंचार:" इसका तात्पर्य यह है कि राहु भ्रम, भय और सामाजिक अराजकता फैलाता है. सरकार की नीतियाँ विरोध का कारण बन सकती हैं. विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी खिंचाव देखा जा सकता है, विशेष रूप से चीन, पाकिस्तान या अमेरिका के साथ. केतु सिंह राशि में- सत्ता को चुनौती और गुप्त विरोध की आशंकाकेतु सिंह राशि में गोचर कर रहा है, जो सत्ता, नेतृत्व और अहं का प्रतिनिधित्व करता है. बृहत्संहिता में कहा गया है- "केतु सिंहस्थे राज्ये विघ्नं जनयति, प्रचण्डवातो वा भवति" यह स्थिति संकेत करती है कि सरकार के खिलाफ गुप्त विरोध, सोशल मीडिया आंदोलनों, और प्रशासनिक असंतोष का उभार हो सकता है. संभवतः जनता में विश्वास की कमी उत्पन्न हो सकती है. बृहस्पति और शुक्र का द्वितीय भाव में योग- आर्थिक अस्थिरता और वाद-विवादबृहस्पति और शुक्र इस समय मिथुन राशि में युति कर रहे हैं, जो भारत की कुंडली के द्वितीय भाव (वित्त और वाणी) में आता है. नारद संहिता का उल्लेखनीय श्लोक है- "यदि शुक्र गुरु मिथुनस्थौ, व्यापारे नष्टिर्भवति, भाषायाम् विकारः" इस गोचर से शेयर बाजार में अस्थिरता, बैंकिंग क्षेत्र में विवाद, और वित्तीय नीति में भ्रम उत्पन्न हो सकता है. साथ ही, मीडिया और वक्तव्य भी अत्यधिक आलोचना का विषय बन सकते हैं. निष्कर्ष: आगामी माह का संभाव्य मेदिनी प्रभावअगस्त 2025 भारत के लिए राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील मास साबित हो सकता है. मुख्य संकेत इस प्रकार हैं- प्राकृतिक आपदाएं असमय वर्षा, बाढ़, जलजनित रोग राजनीतिक अस्थिरता मंत्रिमंडल में मतभेद, नीतिगत भ्रम सामाजिक आंदोलन विरोध-प्रदर्शन, जन असंतोष स्वास्थ्य संकट रोगों का प्रसार, अस्पतालों पर दबाव अर्थव्यवस्था बाजार अस्थिरता, महंगाई, निवेश में संकोच सीमा विवाद: सैन्य गतिविधियों में अचानक वृद्धि विदेश नीति प्रमुख राष्ट्रों के साथ दबाव की स्थिति मंगल और शनि का दृष्टि संबंध: मेदिनी दृष्टि में अशुभ संयोग वर्तमान गोचर में शनि वक्री होकर मीन राशि (11वां स्थान) में है, मंगल कन्या राशि (5वां स्थान) में है, और ये दोनों एक-दूसरे को पूर्ण सप्तम दृष्टि (7वीं दृष्टि) से देख रहे हैं. मंगल की 7वीं दृष्टि शनि पर, और शनि की 7वीं दृष्टि मंगल पर-यह परस्पर दृष्टि संबंध अत्यंत उग्र, संघर्षात्मक, और भयावह परिणामों वाला माना गया है, विशेषकर जब दोनों ग्रह अपने-अपने स्थानों पर शुभ स्थिति में न होकर वक्री या शत्रु राशि में हों. शास्त्रीय संदर्भ: बृहत्संहिता और नारद संहिता के अनुसार "मंगलश्च शनिना दृष्टो युद्धद्वन्द्वं करोति नृणाम्" (यदि मंगल शनि की दृष्टि में हो या उसे देख रहा हो, तो युद्ध, विरोध, रक्तपात और जनविद्रोह को जन्म देता है.) नारद संहिता में उल्लेख

Planetary crisis on India: 15 अगस्त 1947 समय 00:00 बजे स्थान दिल्ली, भारत की स्वतंत्रता कुंडली वृषभ लग्न की है, जिसमें राहु लग्न में, मंगल मिथुन में, और सूर्य, चंद्रमा, बुध, शुक्र, शनि पांचों ग्रह एक साथ कर्क राशि में स्थित हैं.
यह योग भारत की जनता, वाणी, राजनीतिक नीति, और प्राकृतिक संसाधनों पर गहरा प्रभाव डालता है. वर्तमान गोचर में शनि मीन में वक्री, राहु कुंभ में, बुध और सूर्य कर्क में वक्री व अस्त, मंगल कन्या में, बृहस्पति और शुक्र मिथुन में, तथा केतु सिंह में स्थित हैं. यह गोचर संरचना मेदिनी ज्योतिष के अनुसार भारत पर बहु-स्तरीय प्रभाव डालने वाली है.
वक्री शनि का मीन राशि में गोचर-जलविपत्ति और कृषि संकट
वर्तमान में शनि मीन राशि, जो कि जलतत्व की राशि है, में वक्री होकर गोचर कर रहा है. बृहत्संहिता के अनुसार-
- "यदा शनि: जलराशिषु वक्रगत: स्यात्, जलोपद्रवो भवति, धान्यहानिः, जनविपत्ति: च"
इस श्लोक का अर्थ है कि जब शनि जल राशि में वक्री होता है, तब अत्यधिक वर्षा, बाढ़, फसल हानि, और जन-स्वास्थ्य संबंधी संकट उत्पन्न होते हैं. इसका प्रभाव भारत के अनेक कृषि प्रधान क्षेत्रों में दिख सकता है, विशेष रूप से गंगा बेसिन, पूर्वोत्तर, और तटीय क्षेत्रों में.
मंगल का षष्ठ भाव में गोचर-शत्रु बाधा और रोग वृद्धि का संकेत
मंगल का गोचर इस समय भारत की कुंडली के षष्ठ भाव (कन्या राशि) में हो रहा है. यह स्थान रोग, शत्रु, और आंतरिक तनाव से संबंधित है. नारद संहिता में कहा गया है-
- "मंगलश्च षष्ठगे युद्धभीतिं प्रयच्छति, रोगाणां च प्रकोपं करोति"
इस गोचर से सीमाओं पर तनाव, सेना की सक्रियता, तथा स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक दबाव की आशंका है. यह संक्रमण फैलने या पेट संबंधी रोगों की नई लहर का संकेत हो सकता है.
बुध और सूर्य का अस्त एवं वक्री-शासन में भ्रम और नीतिगत अव्यवस्था
बुध और सूर्य दोनों कर्क राशि में अस्त और बुध वक्री भी है, जो शासन और संवाद की दृष्टि से घातक है. बृहत्संहिता का स्पष्ट संकेत है-
- "यदि बुध अस्तश्च वक्री च स्यात्, तदा राजद्वारे कलहः, मंत्रिभेदश्च"
इस योग के प्रभाव से सरकार में मतभेद, प्रशासनिक भ्रम, तथा जनता की नीतियों से असंतुष्टि सामने आ सकती है. नीतिगत निर्णयों में देरी और संचार में बाधा के कारण जनता की नाराजगी बढ़ सकती है.
राहु कुंभ में- सत्ता पर अराजकता का प्रभाव
राहु का गोचर कुंभ राशि में भारत की कुंडली के दशम भाव (राज्य सत्ता) में हो रहा है. यह स्थान सरकार, प्रशासन, और कार्यपालिका से संबंधित है. नारद संहिता कहती है:
- "राहुर्वातकृत् सदा, दिग्भ्रमं जनयति, संकटा मार्गे जनसंचार:"
इसका तात्पर्य यह है कि राहु भ्रम, भय और सामाजिक अराजकता फैलाता है. सरकार की नीतियाँ विरोध का कारण बन सकती हैं. विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी खिंचाव देखा जा सकता है, विशेष रूप से चीन, पाकिस्तान या अमेरिका के साथ.
केतु सिंह राशि में- सत्ता को चुनौती और गुप्त विरोध की आशंका
केतु सिंह राशि में गोचर कर रहा है, जो सत्ता, नेतृत्व और अहं का प्रतिनिधित्व करता है. बृहत्संहिता में कहा गया है-
- "केतु सिंहस्थे राज्ये विघ्नं जनयति, प्रचण्डवातो वा भवति"
यह स्थिति संकेत करती है कि सरकार के खिलाफ गुप्त विरोध, सोशल मीडिया आंदोलनों, और प्रशासनिक असंतोष का उभार हो सकता है. संभवतः जनता में विश्वास की कमी उत्पन्न हो सकती है.
बृहस्पति और शुक्र का द्वितीय भाव में योग- आर्थिक अस्थिरता और वाद-विवाद
बृहस्पति और शुक्र इस समय मिथुन राशि में युति कर रहे हैं, जो भारत की कुंडली के द्वितीय भाव (वित्त और वाणी) में आता है. नारद संहिता का उल्लेखनीय श्लोक है-
- "यदि शुक्र गुरु मिथुनस्थौ, व्यापारे नष्टिर्भवति, भाषायाम् विकारः"
इस गोचर से शेयर बाजार में अस्थिरता, बैंकिंग क्षेत्र में विवाद, और वित्तीय नीति में भ्रम उत्पन्न हो सकता है. साथ ही, मीडिया और वक्तव्य भी अत्यधिक आलोचना का विषय बन सकते हैं.
निष्कर्ष: आगामी माह का संभाव्य मेदिनी प्रभाव
अगस्त 2025 भारत के लिए राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील मास साबित हो सकता है. मुख्य संकेत इस प्रकार हैं-
प्राकृतिक आपदाएं | असमय वर्षा, बाढ़, जलजनित रोग |
राजनीतिक अस्थिरता | मंत्रिमंडल में मतभेद, नीतिगत भ्रम |
सामाजिक आंदोलन | विरोध-प्रदर्शन, जन असंतोष |
स्वास्थ्य संकट | रोगों का प्रसार, अस्पतालों पर दबाव |
अर्थव्यवस्था | बाजार अस्थिरता, महंगाई, निवेश में संकोच |
सीमा विवाद: | सैन्य गतिविधियों में अचानक वृद्धि |
विदेश नीति | प्रमुख राष्ट्रों के साथ दबाव की स्थिति |
मंगल और शनि का दृष्टि संबंध: मेदिनी दृष्टि में अशुभ संयोग
वर्तमान गोचर में
- शनि वक्री होकर मीन राशि (11वां स्थान) में है,
- मंगल कन्या राशि (5वां स्थान) में है,
- और ये दोनों एक-दूसरे को पूर्ण सप्तम दृष्टि (7वीं दृष्टि) से देख रहे हैं.
मंगल की 7वीं दृष्टि शनि पर, और शनि की 7वीं दृष्टि मंगल पर-
यह परस्पर दृष्टि संबंध अत्यंत उग्र, संघर्षात्मक, और भयावह परिणामों वाला माना गया है, विशेषकर जब दोनों ग्रह अपने-अपने स्थानों पर शुभ स्थिति में न होकर वक्री या शत्रु राशि में हों.
शास्त्रीय संदर्भ: बृहत्संहिता और नारद संहिता के अनुसार
- "मंगलश्च शनिना दृष्टो युद्धद्वन्द्वं करोति नृणाम्" (यदि मंगल शनि की दृष्टि में हो या उसे देख रहा हो, तो युद्ध, विरोध, रक्तपात और जनविद्रोह को जन्म देता है.)
नारद संहिता में उल्लेख है-
- "यदा शनिः पापदृष्ट्यां कुजो दृष्टः स्यात्, रक्तपातो, अग्निकांड, जनद्रोहः च जायते" (जब शनि और मंगल एक-दूसरे को दृष्टि दें, विशेषकर वक्री अवस्था में, तो रक्तपात, आगजनी, हिंसा और जनता में असंतोष बढ़ता है.)
भारत की कुंडली में इसका प्रभाव
भारत की स्वतंत्रता कुंडली में यह दृष्टि संबंध कन्या (षष्ठ भाव) और मीन (द्वादश भाव) में हो रहा है.
- षष्ठ भाव- शत्रु, सैन्य संघर्ष, महामारी, कानून-व्यवस्था
- द्वादश भाव- विदेश नीति, अस्पताल, गुप्त व्यय, गुप्त सेवाएं
इस दृष्टि के प्रभाव से भारत को निम्नलिखित क्षेत्रों में विशेष सावधानी की आवश्यकता है:
सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव या सैन्य गतिविधियाँ
- LOC या LAC जैसे क्षेत्रों में टकराव की स्थिति बन सकती है.
- पड़ोसी देशों से गुप्त सैन्य गतिविधियों या साइबर हमलों की आशंका.
आंतरिक विरोध और सामाजिक उथल-पुथल
- विशेष वर्गों द्वारा आंदोलन, रेल/सड़क बंद जैसी गतिविधियाँ.
- जातीय, धार्मिक या क्षेत्रीय तनाव का अचानक उभार.
दुर्घटनाएं और अग्निकांड
- रेल, औद्योगिक संयंत्र, या रासायनिक फैक्ट्रियों में दुर्घटनाओं की आशंका.
- प्राकृतिक आपदा जैसे भूकंप/भूस्खलन की संभाव्यता, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में.
विदेश नीति और सुरक्षा पर दबाव
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आलोचना या दबाव.
- गुप्तचर एजेंसियों की सक्रियता बढ़ सकती है, जैसे आतंक से संबंधित खुफिया इनपुट्स.
विशेष सावधानी- क्योंकि शनि वक्री है और मंगल व्ययभाव को देख रहा है
वक्री शनि का अर्थ है- कर्म और न्याय की उलझन, मंगल की दृष्टि व्यय भाव को लक्ष्य कर रही है- धन का व्यर्थ अपव्यय, सैन्य या आपातकालीन खर्च, राष्ट्रीय संपत्ति की क्षति. यह योग राजनीतिक नेतृत्व और रक्षा मंत्रालय के लिए विशेष परीक्षणकाल लाएगा. जनमानस में असंतोष, गुप्तचर एजेंसियों की सक्रियता, और विरोधी ताकतों की साजिशें उभर सकती हैं.
निवारण या समाधान हेतु सुझाव (ज्योतिषीय उपाय नहीं, नीति-आधारित दृष्टि से)
- सीमावर्ती सतर्कता बढ़ाई जाए, विशेषकर उत्तर और पश्चिमी मोर्चे पर.
- जन संवाद और मीडिया नीति मजबूत की जाए, ताकि भ्रामक सूचनाओं से बचा जा सके.
- आग, रेल और औद्योगिक सुरक्षा के विशेष मानकों की पुन: समीक्षा हो.
- कूटनीतिक तैयारियाँ तेज हों – अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कड़ा रुख जरूरी है.
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