नेत्रहीन, फिर भी 22 भाषाओं के ज्ञाता! जानिए रामभद्राचार्य जी कितने पढ़े-लिखे हैं
रामभद्राचार्य को लोग एक संत, एक रामकथा वाचक या तुलसीदास के व्याख्याकार के रूप में जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह वही व्यक्ति हैं जो न तो देख सकते हैं, न बचपन में बोल सकते थे, फिर भी आज वे संस्कृत, हिंदी, उर्दू, गुजराती, अंग्रेज़ी सहित 22 भाषाओं में निपुण हैं! उनके पास कोई डिग्री नहीं, लेकिन दुनिया की कई यूनिवर्सिटीज उनकी विद्वता के आगे नतमस्तक हैं. कैसे एक नेत्रहीन बालक जगद्गुरु बन गया और क्यों दुनिया की सबसे बड़ी डिग्रियां भी उनके सामने फीकी पड़ जाती हैं. जगद्गुरु रामभद्राचार्य की विद्वता सिर्फ शिक्षा नहीं, साधना है. वे हमें याद दिलाते हैं कि दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण मायने रखता है. डिग्री नहीं, ज्ञान का तेज बड़ा होता है. बचपन में ही छिन गई दृष्टि और वाणी जन्म: 14 जनवरी 1950, जौनपुर (उत्तर प्रदेश) मात्र दो वर्ष की उम्र में नेत्रहीन हो गए. बोलने की शक्ति 5 वर्ष की आयु तक विकसित नहीं हुई थी. लेकिन रामायण, भगवद्गीता, उपनिषद और वेद उन्होंने ऐसे कंठस्थ किए जैसे कोई आंखों से पढ़ रहा हो. उन्होंने बिना ब्रेल, बिना कंप्यूटर, बिना किसी आधुनिक साधन के हजारों ग्रंथों को श्रवण व स्मरण से आत्मसात किया. कितनी पढ़ाई की है रामभद्राचार्य ने? जानकर चौंक जाएंगे! क्षेत्र जानकारी भाषाएं 22 भाषाओं के ज्ञाता, संस्कृत, हिंदी, अवधी, मैथिली, तमिल, तेलुगु, अंग्रेज़ी, गुजराती, बंगाली, फारसी, उर्दू आदि महापुरुष पद जगद्गुरु रामानंदाचार्य, विद्वद्मार्तण्ड, महाकाव्यकार, संविधानिक विद्वान लेखन 50 से अधिक ग्रंथ, 30 से अधिक शोध निबंध, गीता और रामचरितमानस की मौलिक टीका मानद उपाधियां 5 अंतरराष्ट्रीय मानद डिग्रियां (USA, Mauritius आदि) अध्यक्षता जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, जो भारत का इकलौता दिव्यांगों के लिए समर्पित विश्वविद्यालय है शास्त्रज्ञ या जादूगर? रामभद्राचार्य की विद्वता संस्कृत में उनका प्रवचन सुनकर विद्वान तक चकित हो जाते हैं, क्योंकि वे पिंगल, छंद, अलंकार, व्याकरण, तर्कशास्त्र, सबका प्रयोग करते हैं. तुलसीदास की रामचरितमानस पर उनकी टीका 'भावार्थबोधिनी' आज मानक मानी जाती है. 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने महाकाव्य श्रीभार्गवराघवीयम् संस्कृत में रच दिया था, जो विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाया जाता है. उन्होंने रामकथा को 5000 से अधिक स्थानों पर सुनाया है, जिसमें अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड जैसे देश भी शामिल हैं. FAQsQ1. क्या रामभद्राचार्य ने कोई डिग्री हासिल की है?नहीं, उन्होंने कोई पारंपरिक डिग्री नहीं ली, पर उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय उपाधियां मानद रूप में दी गई हैं. Q2. क्या वह वाकई 22 भाषाएं जानते हैं?हां, उन्होंने विभिन्न भाषाओं में प्रवचन दिए हैं और काव्य रचनाएं भी की हैं. Q3. उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना कौन सी है?'भावार्थबोधिनी' तुलसीकृत रामचरितमानस पर संस्कृत-हिंदी टीका. Q4. वे कैसे पढ़ाई करते हैं यदि देख नहीं सकते?श्रवण स्मरण प्रणाली (Auditory Memory) के माध्यम से उन्होंने वेद-शास्त्र तक कंठस्थ किए हैं. Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

रामभद्राचार्य को लोग एक संत, एक रामकथा वाचक या तुलसीदास के व्याख्याकार के रूप में जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह वही व्यक्ति हैं जो न तो देख सकते हैं, न बचपन में बोल सकते थे, फिर भी आज वे संस्कृत, हिंदी, उर्दू, गुजराती, अंग्रेज़ी सहित 22 भाषाओं में निपुण हैं!
उनके पास कोई डिग्री नहीं, लेकिन दुनिया की कई यूनिवर्सिटीज उनकी विद्वता के आगे नतमस्तक हैं. कैसे एक नेत्रहीन बालक जगद्गुरु बन गया और क्यों दुनिया की सबसे बड़ी डिग्रियां भी उनके सामने फीकी पड़ जाती हैं.
जगद्गुरु रामभद्राचार्य की विद्वता सिर्फ शिक्षा नहीं, साधना है. वे हमें याद दिलाते हैं कि दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण मायने रखता है. डिग्री नहीं, ज्ञान का तेज बड़ा होता है.
बचपन में ही छिन गई दृष्टि और वाणी
- जन्म: 14 जनवरी 1950, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
- मात्र दो वर्ष की उम्र में नेत्रहीन हो गए.
- बोलने की शक्ति 5 वर्ष की आयु तक विकसित नहीं हुई थी.
- लेकिन रामायण, भगवद्गीता, उपनिषद और वेद उन्होंने ऐसे कंठस्थ किए जैसे कोई आंखों से पढ़ रहा हो.
- उन्होंने बिना ब्रेल, बिना कंप्यूटर, बिना किसी आधुनिक साधन के हजारों ग्रंथों को श्रवण व स्मरण से आत्मसात किया.
कितनी पढ़ाई की है रामभद्राचार्य ने? जानकर चौंक जाएंगे!
क्षेत्र | जानकारी |
भाषाएं | 22 भाषाओं के ज्ञाता, संस्कृत, हिंदी, अवधी, मैथिली, तमिल, तेलुगु, अंग्रेज़ी, गुजराती, बंगाली, फारसी, उर्दू आदि |
महापुरुष पद | जगद्गुरु रामानंदाचार्य, विद्वद्मार्तण्ड, महाकाव्यकार, संविधानिक विद्वान |
लेखन | 50 से अधिक ग्रंथ, 30 से अधिक शोध निबंध, गीता और रामचरितमानस की मौलिक टीका |
मानद उपाधियां | 5 अंतरराष्ट्रीय मानद डिग्रियां (USA, Mauritius आदि) |
अध्यक्षता | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, जो भारत का इकलौता दिव्यांगों के लिए समर्पित विश्वविद्यालय है |
शास्त्रज्ञ या जादूगर? रामभद्राचार्य की विद्वता
- संस्कृत में उनका प्रवचन सुनकर विद्वान तक चकित हो जाते हैं, क्योंकि वे पिंगल, छंद, अलंकार, व्याकरण, तर्कशास्त्र, सबका प्रयोग करते हैं.
- तुलसीदास की रामचरितमानस पर उनकी टीका 'भावार्थबोधिनी' आज मानक मानी जाती है.
- 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने महाकाव्य श्रीभार्गवराघवीयम् संस्कृत में रच दिया था, जो विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाया जाता है.
- उन्होंने रामकथा को 5000 से अधिक स्थानों पर सुनाया है, जिसमें अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड जैसे देश भी शामिल हैं.
FAQs
Q1. क्या रामभद्राचार्य ने कोई डिग्री हासिल की है?
नहीं, उन्होंने कोई पारंपरिक डिग्री नहीं ली, पर उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय उपाधियां मानद रूप में दी गई हैं.
Q2. क्या वह वाकई 22 भाषाएं जानते हैं?
हां, उन्होंने विभिन्न भाषाओं में प्रवचन दिए हैं और काव्य रचनाएं भी की हैं.
Q3. उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना कौन सी है?
'भावार्थबोधिनी' तुलसीकृत रामचरितमानस पर संस्कृत-हिंदी टीका.
Q4. वे कैसे पढ़ाई करते हैं यदि देख नहीं सकते?
श्रवण स्मरण प्रणाली (Auditory Memory) के माध्यम से उन्होंने वेद-शास्त्र तक कंठस्थ किए हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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