क्यों फिर से भारतीय शेयरों से खफा हो गए FPIs? जून में की 8749 करोड़ रुपये की बिकवाली
Share Market: भारतीय शेयरों से विदेशी निवेशक फिर से खफा नजर आ रहे हैं. जून में विदेशी निवेशक दोबारा बिकवाली के मूड में हैं. महीने के पहले सप्ताह में ही उन्होंने 8,749 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं. डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, मई में 19,860 करोड़ रुपये और अप्रैल में 4,223 करोड़ रुपये के मजबूत निवेश के बाद यह बड़ा बदलाव देखने को मिला है. क्यों अचानक से शेयरों में आई गिरावट? मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च के एसोसिएट डायरेक्टर हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि अडानी ग्रुप पर अमेरिकी जांच से निवेशकों का भरोसा डगमगाया है. अडानी ग्रुप पर ईरान से जुड़े प्रतिबंधों के भी उल्लंघन के आरोप हैं. इन खबरों ने बाजार की धारणा को प्रभावित किया है और शेयरों की कीमत में गिरावट आई है. बता दें कि वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि क्या भारतीय कारोबारी गौतम अडानी की कंपनियों ने मुंद्रा पोर्ट के रास्ते ईरानी लिक्विफाइड पेट्रोलियम का आयात कराया था. हालांकि, अडानी ग्रुप ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है. इस बीच, अमेरिकी न्याय विभाग अडानी एंटरप्राइजेज को माल भेजने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे एलपीजी टैंकरों की गतिविधियों की जांच में जुटा हुआ है. भारत इस वक्त अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल्स प्रोडक्ट्स का आयात नहीं करता है. मई में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि ईरान से तेल या पेट्रोकेमिकल्स प्रोडक्ट्स खरीदने वाले देश अमेरिका के साथ व्यापार नहीं कर सकेंगे. 2025 में अब तक इतना हो गया आउटफ्लो इससे पहले, विदेशी निवेशकों ने मार्च में 3,973 करोड़ रुपये, फरवरी में 34,574 करोड़ रुपये और जनवरी में 78,027 करोड़ रुपये के शेयर बेच दिए थे. जून में हुए आउटफ्लो के साथ 2025 में अब तक भारतीय इक्विटी से टोटल निकासी 1.01 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई है. हालांकि, इस बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती और कैश रिजर्व रेशियो (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती कर निवेशकों को रात दी. विदेशी निवेशकों ने डेट मार्केट में भी भारी बिकवाली की, 2-6 जून के दौरान डेट जनरल लिमिट से 6,709 करोड़ रुपये और वॉलेंट्री रिटेंशन रूट से 5,974 करोड़ रुपये निकाले. इसका मुख्य कारण अमेरिकी और भारतीय बॉन्ड यील्ड के बीच कम अंतर है. ये भी पढ़ें: अब इस बॉलीवुड कपल के नाम है विजय माल्या का किंगफिशर विला, जानें क्यों बेचने की आई गई थी नौबत?

Share Market: भारतीय शेयरों से विदेशी निवेशक फिर से खफा नजर आ रहे हैं. जून में विदेशी निवेशक दोबारा बिकवाली के मूड में हैं. महीने के पहले सप्ताह में ही उन्होंने 8,749 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं. डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, मई में 19,860 करोड़ रुपये और अप्रैल में 4,223 करोड़ रुपये के मजबूत निवेश के बाद यह बड़ा बदलाव देखने को मिला है.
क्यों अचानक से शेयरों में आई गिरावट?
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च के एसोसिएट डायरेक्टर हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि अडानी ग्रुप पर अमेरिकी जांच से निवेशकों का भरोसा डगमगाया है. अडानी ग्रुप पर ईरान से जुड़े प्रतिबंधों के भी उल्लंघन के आरोप हैं. इन खबरों ने बाजार की धारणा को प्रभावित किया है और शेयरों की कीमत में गिरावट आई है.
बता दें कि वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि क्या भारतीय कारोबारी गौतम अडानी की कंपनियों ने मुंद्रा पोर्ट के रास्ते ईरानी लिक्विफाइड पेट्रोलियम का आयात कराया था.
हालांकि, अडानी ग्रुप ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है. इस बीच, अमेरिकी न्याय विभाग अडानी एंटरप्राइजेज को माल भेजने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे एलपीजी टैंकरों की गतिविधियों की जांच में जुटा हुआ है. भारत इस वक्त अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल्स प्रोडक्ट्स का आयात नहीं करता है. मई में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि ईरान से तेल या पेट्रोकेमिकल्स प्रोडक्ट्स खरीदने वाले देश अमेरिका के साथ व्यापार नहीं कर सकेंगे.
2025 में अब तक इतना हो गया आउटफ्लो
इससे पहले, विदेशी निवेशकों ने मार्च में 3,973 करोड़ रुपये, फरवरी में 34,574 करोड़ रुपये और जनवरी में 78,027 करोड़ रुपये के शेयर बेच दिए थे. जून में हुए आउटफ्लो के साथ 2025 में अब तक भारतीय इक्विटी से टोटल निकासी 1.01 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई है.
हालांकि, इस बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती और कैश रिजर्व रेशियो (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती कर निवेशकों को रात दी. विदेशी निवेशकों ने डेट मार्केट में भी भारी बिकवाली की, 2-6 जून के दौरान डेट जनरल लिमिट से 6,709 करोड़ रुपये और वॉलेंट्री रिटेंशन रूट से 5,974 करोड़ रुपये निकाले. इसका मुख्य कारण अमेरिकी और भारतीय बॉन्ड यील्ड के बीच कम अंतर है.
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