काशी से गंगाजल क्यों नहीं लाना चाहिए? जानिए इसके पीछे की आध्यात्मिक मान्यता और रहस्य
काशी से गंगाजल लाना वर्जित क्यों माना गया है? जानिए इसके पीछे का आध्यात्मिक रहस्य, श्रद्धा और शास्त्रीय संकेत. हर घर में गंगाजल होता है, लेकिन काशी का नहीं, क्यों? यह सवाल जितना साधारण दिखता है, उसके पीछे उतनी ही गहराई, भावनात्मक श्रद्धा और आत्मिक संवेदनशीलता छिपी है. गंगाजल: केवल जल नहीं, जीवन की पवित्र धारा हिंदू धर्म में गंगाजल को अमृततुल्य माना गया है. यह पूजन, स्नान, तर्पण, संस्कार और शुद्धिकरण में अनिवार्य होता है. हरिद्वार, ऋषिकेश और गंगोत्री से लाया गया गंगाजल ऊर्जा, स्वास्थ्य और सकारात्मकता का प्रतीक है. मान्यता है कि यह जल पापों को धोता है और आत्मा को शुद्ध करता है. लेकिन जब बात काशी (वाराणसी) की आती है, तो यही पवित्र जल कभी भी घर नहीं लाया जाता. क्यों? काशी: वह भूमि जहां मृत्यु भी उत्सव है. स्कन्द पुराण के अनुसार-काश्यां मरणं मुक्तिः इसका अर्थ है, काशी में मृत्यु, मोक्ष का द्वार है. काशी को मोक्ष की नगरी कहा गया है, जहां मणिकर्णिका घाट पर शरीर नहीं जलता, बल्कि आत्मा मुक्त होती है. मान्यता है कि मृत्यु के समय स्वयं भगवान शिव मृतक के कान में ‘तारक मंत्र’ फूंकते हैं, जो आत्मिक मुक्ति की कुंजी है. क्यों नहीं लाते काशी से गंगाजल?यह प्रश्न केवल परंपरा का नहीं, बल्कि आत्मिक समझ और श्रद्धा का है. मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट की भूमिका. प्रतिदिन सैकड़ों मृतकों की अस्थियां और राख मां गंगा में विसर्जित होती हैं. यह गंगा अब केवल जीवनदायिनी नहीं, बल्कि मोक्षदायिनी आत्माओं की साक्षी बन जाती है. आध्यात्मिक भावमान्यता है कि काशी से लाया गया जल यदि किसी मृत आत्मा के अवशेष के संपर्क में हो, तो वह उनके मोक्ष पथ में अनजाने में बाधा बन सकता है. यह ‘अशुद्धि’ की बात नहीं, उन आत्माओं के प्रति सम्मान की भावना है. यह नियम नहीं, श्रद्धा है , और यही उसे महान बनाता है हरिद्वार, ऋषिकेश और गंगोत्री की गंगा जीवन के लिए है. लेकिन काशी की गंगा मरणोत्तर जीवन के लिए. इसलिए काशी से कुछ नहीं लाया जाता , न राख़, न जल, न स्मृति. वहां से सिर्फ शिव का आशीर्वाद और आत्मिक शांति की अनुभूति लाई जाती है. काशी से गंगाजल न लाना कोई धार्मिक वर्जना नहीं, बल्कि विनम्र श्रद्धा और आत्मिक संवेदना की अभिव्यक्ति है. यह हमें यह सिखाता है कि जब कोई आत्मा अपनी अंतिम यात्रा पर हो, तो हमें उसमें सम्मानपूर्वक मौन सहभागी बनना चाहिए , न कि हस्तक्षेपकर्ता. FAQsQ1: क्या काशी से गंगाजल लाने से कोई दोष लगता है?नहीं, यह कोई दोष नहीं है, पर यह मान्यता आत्मिक सम्मान से जुड़ी है कि मोक्ष की ओर बढ़ती आत्माओं के मार्ग में हम कोई व्यवधान न डालें. Q2: क्या यह नियम केवल काशी पर लागू है?जी हाँ, काशी विशेष रूप से मोक्ष की नगरी मानी गई है, इसलिए यह मान्यता काशी तक ही सीमित रहती है. Q3: अगर किसी ने अनजाने में काशी से गंगाजल घर ला लिया हो, तो क्या करना चाहिए?उस जल को श्रद्धापूर्वक किसी पवित्र जल में प्रवाहित कर दें और शिवजी से क्षमा प्रार्थना करें. Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

काशी से गंगाजल लाना वर्जित क्यों माना गया है? जानिए इसके पीछे का आध्यात्मिक रहस्य, श्रद्धा और शास्त्रीय संकेत. हर घर में गंगाजल होता है, लेकिन काशी का नहीं, क्यों?
यह सवाल जितना साधारण दिखता है, उसके पीछे उतनी ही गहराई, भावनात्मक श्रद्धा और आत्मिक संवेदनशीलता छिपी है.
गंगाजल: केवल जल नहीं, जीवन की पवित्र धारा
- हिंदू धर्म में गंगाजल को अमृततुल्य माना गया है.
- यह पूजन, स्नान, तर्पण, संस्कार और शुद्धिकरण में अनिवार्य होता है.
- हरिद्वार, ऋषिकेश और गंगोत्री से लाया गया गंगाजल ऊर्जा, स्वास्थ्य और सकारात्मकता का प्रतीक है.
- मान्यता है कि यह जल पापों को धोता है और आत्मा को शुद्ध करता है.
लेकिन जब बात काशी (वाराणसी) की आती है, तो यही पवित्र जल कभी भी घर नहीं लाया जाता. क्यों?
काशी: वह भूमि जहां मृत्यु भी उत्सव है. स्कन्द पुराण के अनुसार-
काश्यां मरणं मुक्तिः
इसका अर्थ है, काशी में मृत्यु, मोक्ष का द्वार है.
काशी को मोक्ष की नगरी कहा गया है, जहां मणिकर्णिका घाट पर शरीर नहीं जलता, बल्कि आत्मा मुक्त होती है. मान्यता है कि मृत्यु के समय स्वयं भगवान शिव मृतक के कान में ‘तारक मंत्र’ फूंकते हैं, जो आत्मिक मुक्ति की कुंजी है.
क्यों नहीं लाते काशी से गंगाजल?
यह प्रश्न केवल परंपरा का नहीं, बल्कि आत्मिक समझ और श्रद्धा का है. मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट की भूमिका. प्रतिदिन सैकड़ों मृतकों की अस्थियां और राख मां गंगा में विसर्जित होती हैं. यह गंगा अब केवल जीवनदायिनी नहीं, बल्कि मोक्षदायिनी आत्माओं की साक्षी बन जाती है.
आध्यात्मिक भाव
मान्यता है कि काशी से लाया गया जल यदि किसी मृत आत्मा के अवशेष के संपर्क में हो, तो वह उनके मोक्ष पथ में अनजाने में बाधा बन सकता है. यह ‘अशुद्धि’ की बात नहीं, उन आत्माओं के प्रति सम्मान की भावना है.
यह नियम नहीं, श्रद्धा है , और यही उसे महान बनाता है
- हरिद्वार, ऋषिकेश और गंगोत्री की गंगा जीवन के लिए है.
- लेकिन काशी की गंगा मरणोत्तर जीवन के लिए.
- इसलिए काशी से कुछ नहीं लाया जाता , न राख़, न जल, न स्मृति.
- वहां से सिर्फ शिव का आशीर्वाद और आत्मिक शांति की अनुभूति लाई जाती है.
काशी से गंगाजल न लाना कोई धार्मिक वर्जना नहीं, बल्कि विनम्र श्रद्धा और आत्मिक संवेदना की अभिव्यक्ति है. यह हमें यह सिखाता है कि जब कोई आत्मा अपनी अंतिम यात्रा पर हो, तो हमें उसमें सम्मानपूर्वक मौन सहभागी बनना चाहिए , न कि हस्तक्षेपकर्ता.
FAQs
Q1: क्या काशी से गंगाजल लाने से कोई दोष लगता है?
नहीं, यह कोई दोष नहीं है, पर यह मान्यता आत्मिक सम्मान से जुड़ी है कि मोक्ष की ओर बढ़ती आत्माओं के मार्ग में हम कोई व्यवधान न डालें.
Q2: क्या यह नियम केवल काशी पर लागू है?
जी हाँ, काशी विशेष रूप से मोक्ष की नगरी मानी गई है, इसलिए यह मान्यता काशी तक ही सीमित रहती है.
Q3: अगर किसी ने अनजाने में काशी से गंगाजल घर ला लिया हो, तो क्या करना चाहिए?
उस जल को श्रद्धापूर्वक किसी पवित्र जल में प्रवाहित कर दें और शिवजी से क्षमा प्रार्थना करें.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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