कब दिखाएं ज्योतिषी को अपनी कुंडली? जानिए सही समय और कारण, ताकि ना हो कोई पछतावा

Kundli: कई बार जिंदगी में ऐसी उलझनें आती हैं, जब हर दिशा बंद लगती है, करियर अटका रहता है, रिश्तों में खटास आ जाती है या बीमारी पीछा नहीं छोड़ती. ऐसे समय में हमें याद आता है,'कुंडली किसी अनुभवी ज्योतिषी को दिखानी चाहिए थी…' लेकिन कब? यह सवाल अक्सर हम तब पूछते हैं जब वक्त हाथ से निकल चुका होता है. ज्योतिषी को कुंडली कब दिखानी चाहिए? जानिए शास्त्र और अनुभव क्या कहते हैं? क्या सचमुच कुंडली दिखाने का भी कोई ‘सही समय’ होता है? क्या देर से दिखाने से कुछ छूट जाता है? आइए जानें शास्त्र, अनुभव और आधुनिक दृष्टिकोण से इसका उत्तर. कुंडली दिखाने के 7 निर्णायक समय क्रम  समय या परिस्थिति  कारण 1 जन्म के तुरंत बाद  जातकर्म, नामकरण, ग्रह शांति आदि संस्कारों के लिए 2 विवाह योग्य होने पर गुण मिलान, विवाह योग और दोष निवारण के लिए 3 करियर की दिशा चुनते समय दशा और ग्रहों के अनुसार उपयुक्त क्षेत्र जानने के लिए 4 बीमारी या बार-बार कष्ट की स्थिति में शारीरिक ग्रह दोष और आयु संकेत जानने के लिए 5 संतान संबंधी चिंता में संतान योग, पुत्र दोष, गर्भ बाधा के संकेत देखने के लिए 6 आर्थिक हानि या ऋण में फंसने पर धन भाव, लाभेश और शुभ ग्रहों की स्थिति के अनुसार उपाय के लिए 7 कोई बड़ा निर्णय लेने से पूर्व (विदेश, कोर्ट केस, संपत्ति आदि) शुभ मुहूर्त, ग्रह अनुकूलता और गोचर की सहायता से निर्णय को सफल बनाना शास्त्रीय प्रमाण क्या कहते हैं?बृहज्जातक (वराहमिहिर) में इस पर स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं, इस श्लोक को देखें-'जातकस्य ग्रहाणां च यथार्थं ज्ञातुमिच्छतः.तदा कालं प्रधानं स्यात् संज्ञां तु लक्षणैर्वदेत्॥' इस श्लोक का अर्थ है कि यदि किसी व्यक्ति के ग्रहों का सही अर्थ समझना है, तो समय का विचार करना बहुत आवश्यक है. ज्योतिष के अन्य ग्रंथ भी इस तरह की बात करते हैं. बृहत्पाराशर होरा शास्त्र भी कहता है कि प्रथम दशा और अंतर को जानना ही सटीक भविष्यवाणी का मूल है. वहीं जातक पारिजात के अनुसार जीवन के चारों पुरुषार्थ,धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष,के लिए कुंडली विश्लेषण को समयबद्ध तरीके से अपनाना चाहिए. क्या कुंडली देर से दिखाने से कुछ छूट सकता है?अब प्रश्न मन में उठता है कि क्या समय पर कुंडली विश्लेषण न करने से कुछ छूट जाता है तो इसका स्पष्ट उत्तर है हां, क्यों इसे भी समझना जरूरी है- कुछ दोष (जैसे कुज दोष, गंड मूल, नाड़ी दोष) समय रहते न दिखे तो गंभीर जीवन प्रभाव हो सकते हैं. दशा-परिवर्तन का विश्लेषण यदि समय पर न हो, तो अवसर चूक सकते हैं. कई उपाय और पूजा ऐसे होते हैं जो खास कालखंड में ही प्रभावी होते हैं,उन्हें चूकने से लाभ नहीं मिलता. अनुभवी ज्योतिषी से कब मिलें? क्या हर बार दिखाना जरूरी है?विद्वानों का मत है कि कुंडली आवश्यकता पड़ने पर ही खुलवानी चाहिए, छोटी-मोटी परिस्थितियों में कुंडली नहीं वाचनी चाहिए. यानि हर छोटी बात पर नहीं, लेकिन नीचे दिए गए अवसरों पर मिलना लाभकारी है माना गया है- प्रत्येक दशा परिवर्तन पर (महादशा / अंतर) ग्रहण, वक्री स्थिति, शनि साढ़े साती / ढैय्या प्रारंभ / समापन पर कोई नई योजना या यात्रा आरंभ करने से पहले ग्रह गोचर सावधानी! गलत समय पर दिखाने से भ्रम क्यों होता है? बिना दशा, गोचर और जन्म समय के सटीक मिलान के, उपाय निष्फल हो सकते हैं. कई बार भावनात्मक स्थिति में पूछे गए प्रश्न भ्रम पैदा कर सकते हैं,इसलिए मानसिक स्थिरता और सही प्रश्न आवश्यक हैं. कुंडली दिखाने का सही समय वही है जब... आप जीवन के किसी चौराहे पर हों जब आपके भीतर जिज्ञासा और ग्रहों को जानने की निष्ठा हो जब किसी योग्य और निष्पक्ष ज्योतिषी से मार्गदर्शन मिलने का अवसर हो ज्योतिष कोई चमत्कारी दवा नहीं, बल्कि समय और दिशा की गहरी समझ है, और कुंडली उसका मानचित्र. FAQs Q1. क्या हर व्यक्ति को कुंडली किसी न किसी समय दिखानी चाहिए?हाँ, विशेषकर यदि जीवन में बार-बार समस्याएँ, निर्णय भ्रम, या अवसर चूकने का अनुभव हो. Q2. क्या कुंडली बार-बार दिखाना सही है?नहीं, बार-बार दिखाना भ्रमित कर सकता है. बेहतर है कि मुख्य दशा परिवर्तनों, महत्वपूर्ण निर्णयों या गंभीर कष्ट की स्थिति में ही दिखाएं. Q3. क्या डिजिटल कुंडली पर्याप्त होती है?यदि जन्म समय सही है, तो हाँ. लेकिन विश्लेषण करने वाला ज्योतिषी अनुभवी होना चाहिए जो पंचांग, दशा और गोचर सभी को समझे. Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

Jul 2, 2025 - 17:30
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कब दिखाएं ज्योतिषी को अपनी कुंडली? जानिए सही समय और कारण, ताकि ना हो कोई पछतावा

Kundli: कई बार जिंदगी में ऐसी उलझनें आती हैं, जब हर दिशा बंद लगती है, करियर अटका रहता है, रिश्तों में खटास आ जाती है या बीमारी पीछा नहीं छोड़ती. ऐसे समय में हमें याद आता है,'कुंडली किसी अनुभवी ज्योतिषी को दिखानी चाहिए थी…' लेकिन कब? यह सवाल अक्सर हम तब पूछते हैं जब वक्त हाथ से निकल चुका होता है.

ज्योतिषी को कुंडली कब दिखानी चाहिए? जानिए शास्त्र और अनुभव क्या कहते हैं?

क्या सचमुच कुंडली दिखाने का भी कोई ‘सही समय’ होता है? क्या देर से दिखाने से कुछ छूट जाता है? आइए जानें शास्त्र, अनुभव और आधुनिक दृष्टिकोण से इसका उत्तर.

कुंडली दिखाने के 7 निर्णायक समय

क्रम  समय या परिस्थिति  कारण
1 जन्म के तुरंत बाद  जातकर्म, नामकरण, ग्रह शांति आदि संस्कारों के लिए
2 विवाह योग्य होने पर गुण मिलान, विवाह योग और दोष निवारण के लिए
3 करियर की दिशा चुनते समय दशा और ग्रहों के अनुसार उपयुक्त क्षेत्र जानने के लिए
4 बीमारी या बार-बार कष्ट की स्थिति में शारीरिक ग्रह दोष और आयु संकेत जानने के लिए
5 संतान संबंधी चिंता में संतान योग, पुत्र दोष, गर्भ बाधा के संकेत देखने के लिए
6 आर्थिक हानि या ऋण में फंसने पर धन भाव, लाभेश और शुभ ग्रहों की स्थिति के अनुसार उपाय के लिए
7 कोई बड़ा निर्णय लेने से पूर्व (विदेश, कोर्ट केस, संपत्ति आदि) शुभ मुहूर्त, ग्रह अनुकूलता और गोचर की सहायता से निर्णय को सफल बनाना

शास्त्रीय प्रमाण क्या कहते हैं?
बृहज्जातक (वराहमिहिर) में इस पर स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं, इस श्लोक को देखें-
'जातकस्य ग्रहाणां च यथार्थं ज्ञातुमिच्छतः.
तदा कालं प्रधानं स्यात् संज्ञां तु लक्षणैर्वदेत्॥'

इस श्लोक का अर्थ है कि यदि किसी व्यक्ति के ग्रहों का सही अर्थ समझना है, तो समय का विचार करना बहुत आवश्यक है. ज्योतिष के अन्य ग्रंथ भी इस तरह की बात करते हैं. बृहत्पाराशर होरा शास्त्र भी कहता है कि प्रथम दशा और अंतर को जानना ही सटीक भविष्यवाणी का मूल है.

वहीं जातक पारिजात के अनुसार जीवन के चारों पुरुषार्थ,धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष,के लिए कुंडली विश्लेषण को समयबद्ध तरीके से अपनाना चाहिए.

क्या कुंडली देर से दिखाने से कुछ छूट सकता है?
अब प्रश्न मन में उठता है कि क्या समय पर कुंडली विश्लेषण न करने से कुछ छूट जाता है तो इसका स्पष्ट उत्तर है हां, क्यों इसे भी समझना जरूरी है-

  • कुछ दोष (जैसे कुज दोष, गंड मूल, नाड़ी दोष) समय रहते न दिखे तो गंभीर जीवन प्रभाव हो सकते हैं.
  • दशा-परिवर्तन का विश्लेषण यदि समय पर न हो, तो अवसर चूक सकते हैं.
  • कई उपाय और पूजा ऐसे होते हैं जो खास कालखंड में ही प्रभावी होते हैं,उन्हें चूकने से लाभ नहीं मिलता.

अनुभवी ज्योतिषी से कब मिलें? क्या हर बार दिखाना जरूरी है?
विद्वानों का मत है कि कुंडली आवश्यकता पड़ने पर ही खुलवानी चाहिए, छोटी-मोटी परिस्थितियों में कुंडली नहीं वाचनी चाहिए. यानि हर छोटी बात पर नहीं, लेकिन नीचे दिए गए अवसरों पर मिलना लाभकारी है माना गया है-

  • प्रत्येक दशा परिवर्तन पर (महादशा / अंतर)
  • ग्रहण, वक्री स्थिति, शनि साढ़े साती / ढैय्या प्रारंभ / समापन पर
  • कोई नई योजना या यात्रा आरंभ करने से पहले
  • ग्रह गोचर

सावधानी! गलत समय पर दिखाने से भ्रम क्यों होता है?

  • बिना दशा, गोचर और जन्म समय के सटीक मिलान के, उपाय निष्फल हो सकते हैं.
  • कई बार भावनात्मक स्थिति में पूछे गए प्रश्न भ्रम पैदा कर सकते हैं,इसलिए मानसिक स्थिरता और सही प्रश्न आवश्यक हैं.

कुंडली दिखाने का सही समय वही है जब...

  • आप जीवन के किसी चौराहे पर हों
  • जब आपके भीतर जिज्ञासा और ग्रहों को जानने की निष्ठा हो
  • जब किसी योग्य और निष्पक्ष ज्योतिषी से मार्गदर्शन मिलने का अवसर हो
  • ज्योतिष कोई चमत्कारी दवा नहीं, बल्कि समय और दिशा की गहरी समझ है, और कुंडली उसका मानचित्र.

FAQs 
Q1. क्या हर व्यक्ति को कुंडली किसी न किसी समय दिखानी चाहिए?
हाँ, विशेषकर यदि जीवन में बार-बार समस्याएँ, निर्णय भ्रम, या अवसर चूकने का अनुभव हो.

Q2. क्या कुंडली बार-बार दिखाना सही है?
नहीं, बार-बार दिखाना भ्रमित कर सकता है. बेहतर है कि मुख्य दशा परिवर्तनों, महत्वपूर्ण निर्णयों या गंभीर कष्ट की स्थिति में ही दिखाएं.

Q3. क्या डिजिटल कुंडली पर्याप्त होती है?
यदि जन्म समय सही है, तो हाँ. लेकिन विश्लेषण करने वाला ज्योतिषी अनुभवी होना चाहिए जो पंचांग, दशा और गोचर सभी को समझे.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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