कई दिन से मेंटल स्ट्रेस और अकेलापन फील कर रहे आप, कहीं कुछ बड़ा इशारा तो नहीं दे रहा आपका दिमाग
अगर आप कई दिनों से मेंटल स्ट्रेस और अकेलापन महसूस कर रहे हैं, तो इसे सिर्फ एक बुरा फेज मानकर इग्नोर न करें. आपका दिमाग शायद आपको कोई बड़ा वार्निंग साइन दे रहा है. ये फीलिंग्स सिर्फ टेम्परेरी मूड स्विंग्स नहीं होतीं, बल्कि अक्सर किसी गहरी प्रॉब्लम या इमोशनल नीड का इंडिकेशन होती हैं. लगातार स्ट्रेस और अकेलेपन की फीलिंग आपकी मेंटल हेल्थ के लिए अच्छी नहीं है. आपका ब्रेन इन फीलिंग्स के जरिए आपको बताने की कोशिश कर रहा है कि कुछ ऐसा है जिस पर आपको ध्यान देने की जरूरत है. आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से. नोएडा सेक्टर-50 स्थित नियो हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. राजीव मोतियानी कहते हैं कि बीते कुछ साल में बिगड़ी लाइफस्टाइल, वर्कलोड, डिजिटल कनेक्टिविटी आदि फैक्टर्स ने हमारी मेंटल हेल्थ को और खराब कर दिया है. इन परिस्थितियों के लगातार बने रहने के कारण बहुत से लोग मेंटली थका हुआ या 'लो' फील कर रहे हैं, जिसे मेडिकल लैंग्वेज में ब्रेन फॉग कहते हैं. डॉ. मोतियानी बताते हैं कि भारत में ब्रेन फॉग की बढ़ती समस्या मौजूदा लाइफस्टाइल की प्रॉब्लम्स, एनवायरनमेंटल पॉल्यूशन और कोविड-19 महामारी के बाद के इफेक्ट्स से जुड़ी हो सकती है. इसके फैक्टर्स में ये शामिल हो सकते हैं. डिजिटल ओवरलोड और स्क्रीन पर डिपेंडेंसी जेनरेशन जी और मिलेनियल्स में स्क्रीन के ज्यादा यूज के कारण अटेंशन स्पैन कम हो रही है और मेंटल थकान बढ़ रही है. लगातार ऐप स्विच करने और नोटिफिकेशंस के ओवरलोड होने से ब्रेन पर एक्सट्रीम बर्डन पड़ता है, जिससे वह फोकस करने और इंफॉर्मेशन को बेहतर ढंग से प्रोसेस करने में इनकैपेबल हो जाता है. ऐसी सिचुएशन को डिजिटल ओवरलोड सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है, जो उन युवाओं में कॉमन है, जो लगातार स्क्रीन पर रहते हैं. कोविड के बाद के न्यूरोलॉजिकल इफेक्ट्स कोविड-19 से रिकवर हुए अधिकतर लोगों में लॉन्ग टर्म कॉग्निटिव सिम्प्टम्स डेवलप हुए हैं, जिन्हें ब्रेन फॉग के रूप में जाना जाता है. ये सिम्प्टम्स मेमोरी लॉस, कंसन्ट्रेशन की कमी और मेंटल एग्जॉशन के रूप में सामने आते हैं. अनुमान है कि लगभग 25-30% रिकवर्ड पेशेंट्स में ये न्यूरोलॉजिकल सिम्प्टम्स पाए जाते हैं. क्रॉनिक स्ट्रेस के कारण मेंटल हेल्थ स्ट्रेस स्ट्रेस को एक साथ बढ़ाने वाले तीन अलग-अलग फैक्टर्स में एकेडमिक स्ट्रेस, जॉब इनसिक्योरिटी और सोशल प्रेशर शामिल हैं. ये सभी मिलकर हाई लेवल का स्ट्रेस पैदा करते हैं. लगातार बना रहने वाला स्ट्रेस ब्रेन के फंक्शन को अफेक्ट करता है, जिससे मेमोरी वीक होती है और मेंटली शार्प नहीं रह पाता. न्यूट्रिएंट्स की कमी गलत खान-पान, जैसे प्रोसेस्ड फूड खाना और इरेगुलर मील टाइम, ब्रेन को उसके कुछ जरूरी न्यूट्रिएंट्स से वंचित कर सकते हैं. विटामिन बी12 और ओमेगा-3 फैटी एसिड की कमी का कनेक्शन कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट और मेंटल फॉग से है. एन्वॉयरमेंटल फैक्टर्स और क्लाइमेट स्ट्रेस भारत के बढ़ता तापमान और ह्यूमिडिटी का भी मेंटल हेल्थ पर नेगेटिव इफेक्ट पड़ता पाया गया है. एक्सेसिव हीट से डिप्रेशन और अन्य मेंटल डिसऑर्डर्स का रिस्क बढ़ सकता है. खासकर उन वल्नरेबल इंडिविजुअल्स में जिनके पास कूलिंग इक्विपमेंट्स तक एक्सेस नहीं है. नींद में खलल पुअर या डिस्टर्ब्ड स्लीप ब्रेन को मेमोरीज को इफेक्टिवली कंसोलिडेट करने और एसेन्शियल फंक्शंस करने से रोकती है. सोने से पहले स्क्रीन के एक्सपोजर में रहना और इरेगुलर टाइम पर सोना, इसके मेन रीजन्स हैं, जिसके रिजल्ट के तौर पर लॉन्ग-टर्म मेंटल फॉग होता है. ये ट्रीटमेंट ऑप्शंस ट्राई कर सकते हैं आप ब्रेन फॉग से जूझ रहे लोगों के लिए कुछ सरल लेकिन प्रभावी उपाय मौजूद हैं, जो दिमाग को फिर से स्पष्ट और तेज बनाने में मदद कर सकते हैं. इन उपायों में सबसे पहले डिजिटल डिटॉक्स शामिल है, जहां स्क्रीन के संपर्क को सीमित करना होता है. इसके साथ ही, हर रात 7-8 घंटे की पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है. जरूरी न्यूट्रिएंट्स के लिए बैलेंस्ड डाइट भी महत्वपूर्ण है. नियमित शारीरिक एक्टिविटीज भी तनाव कम करती हैं. माइंडफुलनेस, ध्यान या योग जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है. अंत में, यदि लक्षण बने रहते हैं या आपके को प्रभावित करते हैं तो किसी डॉक्टर से परामर्श करना महत्वपूर्ण है, ताकि कारण का पता लगाया जा सके और उचित उपचार मिल सके. ये भी पढ़ें: ये तो चमत्कार हो गया! 63 साल की बुजुर्ग ने कराया डेंटल इम्प्लांट, 10 साल बाद खुद ठीक हो गए कान Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

अगर आप कई दिनों से मेंटल स्ट्रेस और अकेलापन महसूस कर रहे हैं, तो इसे सिर्फ एक बुरा फेज मानकर इग्नोर न करें. आपका दिमाग शायद आपको कोई बड़ा वार्निंग साइन दे रहा है. ये फीलिंग्स सिर्फ टेम्परेरी मूड स्विंग्स नहीं होतीं, बल्कि अक्सर किसी गहरी प्रॉब्लम या इमोशनल नीड का इंडिकेशन होती हैं. लगातार स्ट्रेस और अकेलेपन की फीलिंग आपकी मेंटल हेल्थ के लिए अच्छी नहीं है. आपका ब्रेन इन फीलिंग्स के जरिए आपको बताने की कोशिश कर रहा है कि कुछ ऐसा है जिस पर आपको ध्यान देने की जरूरत है. आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.
नोएडा सेक्टर-50 स्थित नियो हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. राजीव मोतियानी कहते हैं कि बीते कुछ साल में बिगड़ी लाइफस्टाइल, वर्कलोड, डिजिटल कनेक्टिविटी आदि फैक्टर्स ने हमारी मेंटल हेल्थ को और खराब कर दिया है. इन परिस्थितियों के लगातार बने रहने के कारण बहुत से लोग मेंटली थका हुआ या 'लो' फील कर रहे हैं, जिसे मेडिकल लैंग्वेज में ब्रेन फॉग कहते हैं.
डॉ. मोतियानी बताते हैं कि भारत में ब्रेन फॉग की बढ़ती समस्या मौजूदा लाइफस्टाइल की प्रॉब्लम्स, एनवायरनमेंटल पॉल्यूशन और कोविड-19 महामारी के बाद के इफेक्ट्स से जुड़ी हो सकती है. इसके फैक्टर्स में ये शामिल हो सकते हैं.
डिजिटल ओवरलोड और स्क्रीन पर डिपेंडेंसी
जेनरेशन जी और मिलेनियल्स में स्क्रीन के ज्यादा यूज के कारण अटेंशन स्पैन कम हो रही है और मेंटल थकान बढ़ रही है. लगातार ऐप स्विच करने और नोटिफिकेशंस के ओवरलोड होने से ब्रेन पर एक्सट्रीम बर्डन पड़ता है, जिससे वह फोकस करने और इंफॉर्मेशन को बेहतर ढंग से प्रोसेस करने में इनकैपेबल हो जाता है. ऐसी सिचुएशन को डिजिटल ओवरलोड सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है, जो उन युवाओं में कॉमन है, जो लगातार स्क्रीन पर रहते हैं.
कोविड के बाद के न्यूरोलॉजिकल इफेक्ट्स
कोविड-19 से रिकवर हुए अधिकतर लोगों में लॉन्ग टर्म कॉग्निटिव सिम्प्टम्स डेवलप हुए हैं, जिन्हें ब्रेन फॉग के रूप में जाना जाता है. ये सिम्प्टम्स मेमोरी लॉस, कंसन्ट्रेशन की कमी और मेंटल एग्जॉशन के रूप में सामने आते हैं. अनुमान है कि लगभग 25-30% रिकवर्ड पेशेंट्स में ये न्यूरोलॉजिकल सिम्प्टम्स पाए जाते हैं.
क्रॉनिक स्ट्रेस के कारण मेंटल हेल्थ स्ट्रेस
स्ट्रेस को एक साथ बढ़ाने वाले तीन अलग-अलग फैक्टर्स में एकेडमिक स्ट्रेस, जॉब इनसिक्योरिटी और सोशल प्रेशर शामिल हैं. ये सभी मिलकर हाई लेवल का स्ट्रेस पैदा करते हैं. लगातार बना रहने वाला स्ट्रेस ब्रेन के फंक्शन को अफेक्ट करता है, जिससे मेमोरी वीक होती है और मेंटली शार्प नहीं रह पाता.
न्यूट्रिएंट्स की कमी
गलत खान-पान, जैसे प्रोसेस्ड फूड खाना और इरेगुलर मील टाइम, ब्रेन को उसके कुछ जरूरी न्यूट्रिएंट्स से वंचित कर सकते हैं. विटामिन बी12 और ओमेगा-3 फैटी एसिड की कमी का कनेक्शन कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट और मेंटल फॉग से है.
एन्वॉयरमेंटल फैक्टर्स और क्लाइमेट स्ट्रेस
भारत के बढ़ता तापमान और ह्यूमिडिटी का भी मेंटल हेल्थ पर नेगेटिव इफेक्ट पड़ता पाया गया है. एक्सेसिव हीट से डिप्रेशन और अन्य मेंटल डिसऑर्डर्स का रिस्क बढ़ सकता है. खासकर उन वल्नरेबल इंडिविजुअल्स में जिनके पास कूलिंग इक्विपमेंट्स तक एक्सेस नहीं है.
नींद में खलल
पुअर या डिस्टर्ब्ड स्लीप ब्रेन को मेमोरीज को इफेक्टिवली कंसोलिडेट करने और एसेन्शियल फंक्शंस करने से रोकती है. सोने से पहले स्क्रीन के एक्सपोजर में रहना और इरेगुलर टाइम पर सोना, इसके मेन रीजन्स हैं, जिसके रिजल्ट के तौर पर लॉन्ग-टर्म मेंटल फॉग होता है.
ये ट्रीटमेंट ऑप्शंस ट्राई कर सकते हैं आप
ब्रेन फॉग से जूझ रहे लोगों के लिए कुछ सरल लेकिन प्रभावी उपाय मौजूद हैं, जो दिमाग को फिर से स्पष्ट और तेज बनाने में मदद कर सकते हैं. इन उपायों में सबसे पहले डिजिटल डिटॉक्स शामिल है, जहां स्क्रीन के संपर्क को सीमित करना होता है. इसके साथ ही, हर रात 7-8 घंटे की पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है. जरूरी न्यूट्रिएंट्स के लिए बैलेंस्ड डाइट भी महत्वपूर्ण है. नियमित शारीरिक एक्टिविटीज भी तनाव कम करती हैं.
माइंडफुलनेस, ध्यान या योग जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है. अंत में, यदि लक्षण बने रहते हैं या आपके को प्रभावित करते हैं तो किसी डॉक्टर से परामर्श करना महत्वपूर्ण है, ताकि कारण का पता लगाया जा सके और उचित उपचार मिल सके.
ये भी पढ़ें: ये तो चमत्कार हो गया! 63 साल की बुजुर्ग ने कराया डेंटल इम्प्लांट, 10 साल बाद खुद ठीक हो गए कान
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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