एमपी हाईकोर्ट सिविल जज भर्ती मामले में SC ने सुरक्षित रखा फैसला, HC ने तीन साल की प्रैक्टिस के बिना नौकरी देने पर लगाई थी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (25 अगस्त 2025) को सिविल जजों की भर्ती पर रोक लगाने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने तीन साल की अनिवार्य वकालत की शर्त के बिना की जा रही दीवानी न्यायाधीश की भर्ती पर रोक लगाई थी. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने सभी दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. हाईकोर्ट की तरफ से एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे पेश हुए उन्होंने कहा कि पुनर्परीक्षा असंवैधानिक, अव्यावहारिक है और इससे मुकदमेबाजी की बाढ़ आ जाएगी. सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी खंडपीठ के 13 जून, 2024 को पारित आदेश को चुनौती दी गई थी. इस आदेश में 14 जनवरी, 2024 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में उन सभी सफल उम्मीदवारों को बाहर करने या छांटने का निर्देश दिया गया था, जो संशोधित नियमों के तहत पात्रता मानदंड को पूरा नहीं करते थे. सुप्रीम कोर्ट ने पहले हाईकोर्ट को दीवानी न्यायाधीश, कनिष्ठ श्रेणी (प्रवेश स्तर) परीक्षा 2022 के इंटरव्यू आयोजित करने और परिणाम घोषित करने की अनुमति दी थी. कोर्ट ने पिछले साल हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें तीन साल की वकालत की अनिवार्य आवश्यकता के बिना दीवानी न्यायाधीश के पद पर भर्ती पर रोक लगा दी गई थी. मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 को 23 जून, 2023 को संशोधित किया गया था, ताकि राज्य में दीवानी न्यायाधीश प्रवेश स्तर की परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होने के लिए तीन साल की वकालत अनिवार्य की जा सके. हाईकोर्ट ने संशोधित नियमों को बरकरार रखा, लेकिन दो अचयनित अभ्यर्थियों की ओर से संशोधित नियमों के लागू होने के बाद पात्र होने का दावा करने और कट-ऑफ की समीक्षा की मांग करने के बाद मुकदमेबाजी का एक और दौर शुरू हो गया. पद पर भर्ती पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट ने संशोधित भर्ती नियमों के तहत पात्रता मानदंड पूरा नहीं करने वाले प्रारंभिक परीक्षा में सफल उम्मीदवारों को बाहर करने का निर्देश दिया. अपनी अपील में उच्च न्यायालय ने कहा कि खंडपीठ यह समझने में विफल रही कि एक सुविचारित निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति बहुत सीमित है तथा यह केवल तभी उपलब्ध होती है जब रिकॉर्ड में कोई गलती या त्रुटि स्पष्ट हो.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (25 अगस्त 2025) को सिविल जजों की भर्ती पर रोक लगाने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने तीन साल की अनिवार्य वकालत की शर्त के बिना की जा रही दीवानी न्यायाधीश की भर्ती पर रोक लगाई थी.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने सभी दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. हाईकोर्ट की तरफ से एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे पेश हुए उन्होंने कहा कि पुनर्परीक्षा असंवैधानिक, अव्यावहारिक है और इससे मुकदमेबाजी की बाढ़ आ जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी खंडपीठ के 13 जून, 2024 को पारित आदेश को चुनौती दी गई थी. इस आदेश में 14 जनवरी, 2024 को आयोजित प्रारंभिक परीक्षा में उन सभी सफल उम्मीदवारों को बाहर करने या छांटने का निर्देश दिया गया था, जो संशोधित नियमों के तहत पात्रता मानदंड को पूरा नहीं करते थे.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले हाईकोर्ट को दीवानी न्यायाधीश, कनिष्ठ श्रेणी (प्रवेश स्तर) परीक्षा 2022 के इंटरव्यू आयोजित करने और परिणाम घोषित करने की अनुमति दी थी. कोर्ट ने पिछले साल हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें तीन साल की वकालत की अनिवार्य आवश्यकता के बिना दीवानी न्यायाधीश के पद पर भर्ती पर रोक लगा दी गई थी.
मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 को 23 जून, 2023 को संशोधित किया गया था, ताकि राज्य में दीवानी न्यायाधीश प्रवेश स्तर की परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होने के लिए तीन साल की वकालत अनिवार्य की जा सके. हाईकोर्ट ने संशोधित नियमों को बरकरार रखा, लेकिन दो अचयनित अभ्यर्थियों की ओर से संशोधित नियमों के लागू होने के बाद पात्र होने का दावा करने और कट-ऑफ की समीक्षा की मांग करने के बाद मुकदमेबाजी का एक और दौर शुरू हो गया.
पद पर भर्ती पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट ने संशोधित भर्ती नियमों के तहत पात्रता मानदंड पूरा नहीं करने वाले प्रारंभिक परीक्षा में सफल उम्मीदवारों को बाहर करने का निर्देश दिया. अपनी अपील में उच्च न्यायालय ने कहा कि खंडपीठ यह समझने में विफल रही कि एक सुविचारित निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति बहुत सीमित है तथा यह केवल तभी उपलब्ध होती है जब रिकॉर्ड में कोई गलती या त्रुटि स्पष्ट हो.
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