आया को ही 'मां' क्यों मानने लगते हैं बच्चे, इससे बच्चों की मानसिक स्थिति पर क्या पड़ता है असर?

Child and Nany Attachment inpact on Mental Health: वर्किंग पैरेंट्स के बीच बच्चों की देखभाल के लिए आया या नैनी रखना जरूरी हो गया है. सुबह से शाम तक बच्चे का खाना, कपड़े, खेलना, सोना, सब कुछ आया ही संभालती है. ऐसे में बच्चे का ज्यादातर समय मां की जगह आया के साथ बीतने लगता है. धीरे-धीरे, बच्चा आया को ही अपनी "मां" जैसा मानने लगता है. यह स्थिति भावनात्मक और मानसिक स्तर पर बच्चे के विकास को गहराई से प्रभावित कर सकती है.  डॉ. हरप्रीत सिंह के अनुसार, बच्चे के दिमाग का शुरुआती विकास उसके पहले कुछ सालों में होता है. इस दौरान जो व्यक्ति उसके सबसे करीब रहता है, उसकी जरूरतें पूरा करता है और भावनात्मक जुड़ाव बनाता है, बच्चा उसी को अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाली शख्सियत मान लेता है. ज्यादा समय साथ बिताना: मां-पिता के ऑफिस जाने के कारण बच्चे का पूरा दिन आया के साथ गुजरता है. तुरंत प्रतिक्रिया: बच्चा रोए या भूखा हो, आया तुरंत उसकी जरूरत पूरी करती है. भावनात्मक जुड़ाव: रोजमर्रा की देखभाल और दुलार के कारण बच्चा आया के साथ सहज महसूस करने लगता है. ये भी पढ़े- फाफो पेरेंटिंग क्या है और क्यों तेजी से पेरेंट्स के बीच हो रही है पॉपुलर? इसके बारे में विस्तार से जानिए मानसिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव मां से दूरी: बच्चे और जैविक मां के बीच भावनात्मक दूरी बढ़ सकती है, जिससे बच्चा मां को ‘कम जरूरी’ समझ सकता है. अटैचमेंट पैटर्न में बदलाव: बच्चे का लगाव आया की ओर अधिक हो जाता है, जो बाद में मां-पिता के साथ रिश्तों में असहजता ला सकता है. कंफ्यूजन और असुरक्षा: बच्चा समझ नहीं पाता कि ‘वास्तविक मां’ कौन है, जिससे मानसिक असमंजस और असुरक्षा की भावना पैदा हो सकती है. भविष्य में रिश्तों पर असर: शुरुआती सालों में बना अटैचमेंट पैटर्न आगे चलकर दोस्ती, रिश्तों और आत्मविश्वास को प्रभावित कर सकता है. माता-पिता क्या कर सकते हैं क्वालिटी टाइम बिताएं: भले ही समय कम हो, लेकिन बच्चे के साथ खेलना, कहानियां सुनाना और बातचीत करना ज़रूरी है. महत्वपूर्ण गतिविधियों में शामिल हों: बच्चे को सुलाना, खाना खिलाना या सुबह तैयार करना जैसी दिनचर्या के काम खुद करने की कोशिश करें. प्यार का इजहार: गले लगाना, चूमना और आंखों से संपर्क बनाना, ये छोटे-छोटे भाव बच्चे को यह महसूस कराते हैं कि आप ही उसकी प्राथमिक देखभाल करने वाले हैं. आया और मां की भूमिकाएं स्पष्ट रखें: आया को देखभाल में मददगार बनाएं, लेकिन महत्वपूर्ण निर्णय और प्यार देने का काम खुद करें. ये भी पढ़ें - चेहरे पर सर्जरी को लेकर ट्रोल हो रहीं मौनी रॉय, जानें ऐसा करने पर क्या हो सकते हैं नुकसान Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

Aug 11, 2025 - 18:30
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आया को ही 'मां' क्यों मानने लगते हैं बच्चे, इससे बच्चों की मानसिक स्थिति पर क्या पड़ता है असर?

Child and Nany Attachment inpact on Mental Health: वर्किंग पैरेंट्स के बीच बच्चों की देखभाल के लिए आया या नैनी रखना जरूरी हो गया है. सुबह से शाम तक बच्चे का खाना, कपड़े, खेलना, सोना, सब कुछ आया ही संभालती है. ऐसे में बच्चे का ज्यादातर समय मां की जगह आया के साथ बीतने लगता है. धीरे-धीरे, बच्चा आया को ही अपनी "मां" जैसा मानने लगता है. यह स्थिति भावनात्मक और मानसिक स्तर पर बच्चे के विकास को गहराई से प्रभावित कर सकती है. 

डॉ. हरप्रीत सिंह के अनुसार, बच्चे के दिमाग का शुरुआती विकास उसके पहले कुछ सालों में होता है. इस दौरान जो व्यक्ति उसके सबसे करीब रहता है, उसकी जरूरतें पूरा करता है और भावनात्मक जुड़ाव बनाता है, बच्चा उसी को अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाली शख्सियत मान लेता है.

  • ज्यादा समय साथ बिताना: मां-पिता के ऑफिस जाने के कारण बच्चे का पूरा दिन आया के साथ गुजरता है.
  • तुरंत प्रतिक्रिया: बच्चा रोए या भूखा हो, आया तुरंत उसकी जरूरत पूरी करती है.
  • भावनात्मक जुड़ाव: रोजमर्रा की देखभाल और दुलार के कारण बच्चा आया के साथ सहज महसूस करने लगता है.

ये भी पढ़े- फाफो पेरेंटिंग क्या है और क्यों तेजी से पेरेंट्स के बीच हो रही है पॉपुलर? इसके बारे में विस्तार से जानिए

मानसिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव

  • मां से दूरी: बच्चे और जैविक मां के बीच भावनात्मक दूरी बढ़ सकती है, जिससे बच्चा मां को ‘कम जरूरी’ समझ सकता है.
  • अटैचमेंट पैटर्न में बदलाव: बच्चे का लगाव आया की ओर अधिक हो जाता है, जो बाद में मां-पिता के साथ रिश्तों में असहजता ला सकता है.
  • कंफ्यूजन और असुरक्षा: बच्चा समझ नहीं पाता कि ‘वास्तविक मां’ कौन है, जिससे मानसिक असमंजस और असुरक्षा की भावना पैदा हो सकती है.
  • भविष्य में रिश्तों पर असर: शुरुआती सालों में बना अटैचमेंट पैटर्न आगे चलकर दोस्ती, रिश्तों और आत्मविश्वास को प्रभावित कर सकता है.

माता-पिता क्या कर सकते हैं

  • क्वालिटी टाइम बिताएं: भले ही समय कम हो, लेकिन बच्चे के साथ खेलना, कहानियां सुनाना और बातचीत करना ज़रूरी है.
  • महत्वपूर्ण गतिविधियों में शामिल हों: बच्चे को सुलाना, खाना खिलाना या सुबह तैयार करना जैसी दिनचर्या के काम खुद करने की कोशिश करें.
  • प्यार का इजहार: गले लगाना, चूमना और आंखों से संपर्क बनाना, ये छोटे-छोटे भाव बच्चे को यह महसूस कराते हैं कि आप ही उसकी प्राथमिक देखभाल करने वाले हैं.
  • आया और मां की भूमिकाएं स्पष्ट रखें: आया को देखभाल में मददगार बनाएं, लेकिन महत्वपूर्ण निर्णय और प्यार देने का काम खुद करें.

ये भी पढ़ें - चेहरे पर सर्जरी को लेकर ट्रोल हो रहीं मौनी रॉय, जानें ऐसा करने पर क्या हो सकते हैं नुकसान

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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