Pandharpur Wari 2025: पंढरपुर वारी यात्रा 2025 कब शुरू ? क्या होता है यात्रा में, जानें महत्व, इतिहास

Pandharpur Wari 2025: देशभर में अपने ईष्टजन की भक्ति में लीन होकर कई लोग यात्राएं करते हैं. हर एक यात्रा की अपनी अलग विशेषता होती है. इन्हीं में से एक है पंढरपुर वारी यात्रा. इस साल पंढरपुर वारी यात्रा 2025 की तारीख घोषित हो गई है, जानते हैं कब से शुरू होगी यात्रा, इस यात्रा में क्या होता है. क्या है पंढरपुर वारी यात्रा ? महाराष्ट्र के पंढरपुर में पिछले 800 सालों से  आषाढ़ माह की शुक्ल एकादशी के अवसर पर तीर्थयात्रा निकाली जाती है. इसे वैष्णवजनों का कुंभ भी कहा जाता है. इस दौरान हजारों वारकरी लगभग 250 किलोमीटर पैदल चलकर अलंदी और देहू से पंढरपुर पहुंचते हैं. वे संतों की पादुकाएं लेकर पवित्र गीत गाते हुए पालकियों के साथ चलते हैं. पंढरपुर वारी यात्रा 2025 कब शुरू ? पंढ़रपुर वारी यात्रा 2025 की समय सारिणी घोषित कर दी गई है. इसके अनुसार पालकी यात्रा 19 जून 2025 को पंढरपुर की ओर अपनी यात्रा शुरू करेगी. 6 जुलाई, 2025 को आषाढ़ी एकादशी के लिए पंढरपुर पहुंचने से पहले पालकी कई पड़ावों पर रुकेगी. यात्रा का समापन 10 जुलाई 2025 को होगा. पंढरपुर वारी यात्रा में क्या होता है ? महाराष्ट्र के विट्ठल मंदिर की यह पैदल यात्रा अनगिनत लोगों की आस्था की गवाही देती है. पंढरपुर वारी यात्रा के दौरान वारकरी पंढरपुर के देवता विट्‌ठल विट्ठल की पूजा करते हैं. संतो की खासकर संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम महाराज की पादुका को पालकी में ले जाते हैं. पंढरपुर पहुंचकर चंद्रभागा नदी में स्नान कर परिक्रमा पूरी करते हैं. पुंडलिका वरदा हरि विट्ठल, विट्ठल विट्ठल जय हरि विट्ठल नाम का जाप किया जाता है. एकादशी की दोपहर को श्री राधारानी के साथ विट्ठल और रुक्मिणी की मूर्तियों का जुलूस निकाला जाता है. आखिरी दिन आषाढ़ शुद्ध पूर्णिमा पर ये उत्सव समाप्त होता है जिसे 'गोपालकला' कहा जाता है. वारकरी कौन है ? पंढरपुर की यात्रा की विशेषता है उसकी वारी. वारी अर्था- सालों-साल लगातार यात्रा करना. इस यात्रा में हर साल शामिल होने वालों को वारकरी कहा जाता है और यह संप्रदाय भी 'वारकरी संप्रदाय' कहलाता है. पंढरपुर यात्रा के दौरान वारकरी 21 दिनों तक पदयात्रा करते हैं. पंढरपुर मंदिर महाराष्ट्र में स्थित विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर हिंदुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है,  यह मंदिर भगवान विट्ठल को समर्पित है, जो भगवान कृष्ण का एक रूप माने जाते हैं, इस मंदिर का इतिहास 13वीं शताब्दी का है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान विट्ठल को ईंट पर खड़े हुए दिखाया गया है, जो अपने भक्त पुंडलिक की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इसका गहरा संबंध पुंडलिक की नि:स्वार्थ भक्ति से जुड़ा हुआ है. Jyeshtha Purnima 2025 Date: ज्येष्ठ पूर्णिमा 10 या 11 जून कब ? स्नान-दान और चंद्रोदय समय, पूजा विधि जान लें Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

Jun 4, 2025 - 16:30
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Pandharpur Wari 2025: पंढरपुर वारी यात्रा 2025 कब शुरू ? क्या होता है यात्रा में, जानें महत्व, इतिहास

Pandharpur Wari 2025: देशभर में अपने ईष्टजन की भक्ति में लीन होकर कई लोग यात्राएं करते हैं. हर एक यात्रा की अपनी अलग विशेषता होती है. इन्हीं में से एक है पंढरपुर वारी यात्रा. इस साल पंढरपुर वारी यात्रा 2025 की तारीख घोषित हो गई है, जानते हैं कब से शुरू होगी यात्रा, इस यात्रा में क्या होता है.

क्या है पंढरपुर वारी यात्रा ?

महाराष्ट्र के पंढरपुर में पिछले 800 सालों से  आषाढ़ माह की शुक्ल एकादशी के अवसर पर तीर्थयात्रा निकाली जाती है. इसे वैष्णवजनों का कुंभ भी कहा जाता है. इस दौरान हजारों वारकरी लगभग 250 किलोमीटर पैदल चलकर अलंदी और देहू से पंढरपुर पहुंचते हैं. वे संतों की पादुकाएं लेकर पवित्र गीत गाते हुए पालकियों के साथ चलते हैं.

पंढरपुर वारी यात्रा 2025 कब शुरू ?

पंढ़रपुर वारी यात्रा 2025 की समय सारिणी घोषित कर दी गई है. इसके अनुसार पालकी यात्रा 19 जून 2025 को पंढरपुर की ओर अपनी यात्रा शुरू करेगी. 6 जुलाई, 2025 को आषाढ़ी एकादशी के लिए पंढरपुर पहुंचने से पहले पालकी कई पड़ावों पर रुकेगी. यात्रा का समापन 10 जुलाई 2025 को होगा.

पंढरपुर वारी यात्रा में क्या होता है ?

  • महाराष्ट्र के विट्ठल मंदिर की यह पैदल यात्रा अनगिनत लोगों की आस्था की गवाही देती है.
  • पंढरपुर वारी यात्रा के दौरान वारकरी पंढरपुर के देवता विट्‌ठल विट्ठल की पूजा करते हैं.
  • संतो की खासकर संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम महाराज की पादुका को पालकी में ले जाते हैं.
  • पंढरपुर पहुंचकर चंद्रभागा नदी में स्नान कर परिक्रमा पूरी करते हैं. पुंडलिका वरदा हरि विट्ठल, विट्ठल विट्ठल जय हरि विट्ठल नाम का जाप किया जाता है.
  • एकादशी की दोपहर को श्री राधारानी के साथ विट्ठल और रुक्मिणी की मूर्तियों का जुलूस निकाला जाता है.
  • आखिरी दिन आषाढ़ शुद्ध पूर्णिमा पर ये उत्सव समाप्त होता है जिसे 'गोपालकला' कहा जाता है.

वारकरी कौन है ?

पंढरपुर की यात्रा की विशेषता है उसकी वारी. वारी अर्था- सालों-साल लगातार यात्रा करना. इस यात्रा में हर साल शामिल होने वालों को वारकरी कहा जाता है और यह संप्रदाय भी 'वारकरी संप्रदाय' कहलाता है. पंढरपुर यात्रा के दौरान वारकरी 21 दिनों तक पदयात्रा करते हैं.

पंढरपुर मंदिर

महाराष्ट्र में स्थित विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर हिंदुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है,  यह मंदिर भगवान विट्ठल को समर्पित है, जो भगवान कृष्ण का एक रूप माने जाते हैं, इस मंदिर का इतिहास 13वीं शताब्दी का है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान विट्ठल को ईंट पर खड़े हुए दिखाया गया है, जो अपने भक्त पुंडलिक की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इसका गहरा संबंध पुंडलिक की नि:स्वार्थ भक्ति से जुड़ा हुआ है.

Jyeshtha Purnima 2025 Date: ज्येष्ठ पूर्णिमा 10 या 11 जून कब ? स्नान-दान और चंद्रोदय समय, पूजा विधि जान लें

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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