Kashmir: श्रीनगर का आदि शंकराचार्य मंदिर क्यों कहलाता है सुलेमान का तख्त ?

Adi Shankracharya Mandir: लंबे समय से मुस्लिम-बहुल क्षेत्र के तौर पर जाना जाता कश्मीर कभी पूरी तरह से हिंदू आबादी वाला था. फिर एक वक्त ऐसा आया कि पूरे के पूरे सूबे की डेमोग्राफी बदलने लगी. ब्राह्मणों ने भी धर्म बदलकर इस्लाम को अपना लिया. कश्मीर के श्रीनगर की पहाड़ी में एक ऐसा मंदिर भी है जो आदि शंकराचार्य को समर्पित है लेकिन यहां के मुस्लिम इसे हजरत सुलेमान का सुलेमानी तख्त मानते हैं, आइए जानें क्या है इसकी कहानी. कश्मीर में आदि शंकराचार्य का तप स्थल आदि शंकराचार्य को भारत में हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है. शंकराचार्य ने देश के कोने-कोने में भ्रमण करके लोगों को जागृत किया, विद्वानों से शास्त्रार्थ किया, ताकि वे वैदिक धर्म को बढ़ा सकें. इसी दौरान वे कश्मीर भी गए, जो उस समय आध्यात्मिक, धार्मिक और ज्ञान की दृष्टिकोण से एक अहम् केंद्र हुआ करता था. यहां पर्वतमाला पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, कहा जाता है कि यहां आदि शंकराचार्य ने आकर साधना की थी. इसे शंकराचार्य की तप स्थली भी कहा जाता है. आदि शंकराचार्य ने जेष्ठस्वर मंदिर के प्रांगण में डेरा डाल शिव की साधना की थी. उनके ज्ञान और साधना से प्रभावित होकर कश्मीरी विद्वानों, संत-महात्माओं ने सम्मान स्वरूप संधिमान पर्वत और मंदिर का नामकरण शंकराचार्य पर्वत और शंकराचार्य मंदिर कर दिया. क्यों मुस्लिम इसे कहते हैं ‘तख्त ए सुलेमान’ ? हिंदू धर्म के लोगों के लिए बेशक ये मंदिर शंकराचार्य का तप स्थल है लेकिन यहां के मुस्लिम इसे हजरत सुलेमान का तख्त मानते हैं. उनके अनुसार एक बार हजरत सुलेमान हवा में उड़ते हुए कश्मीर का दौरा कर रहे थे. ये इलाका पानी से भरा था. आमजन की कोई बस्ती नहीं थी, तब हजरत सुलेमान ने जिन्नातों को हुक्म दिया किइस जगह से पानी हटाया जाए और इसे रहने लायक जगह बनाएं. कहते हैं सुलेमान यहां जिस पर्वत पर उतरे थे उसे सुलेमानी तख्त कहा जाता है. वट सावित्री व्रत 2025 आने वाला है, स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं व्रत, नोट करें डेट Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 

May 1, 2025 - 16:30
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Kashmir: श्रीनगर का आदि शंकराचार्य मंदिर क्यों कहलाता है सुलेमान का तख्त ?

Adi Shankracharya Mandir: लंबे समय से मुस्लिम-बहुल क्षेत्र के तौर पर जाना जाता कश्मीर कभी पूरी तरह से हिंदू आबादी वाला था. फिर एक वक्त ऐसा आया कि पूरे के पूरे सूबे की डेमोग्राफी बदलने लगी. ब्राह्मणों ने भी धर्म बदलकर इस्लाम को अपना लिया. कश्मीर के श्रीनगर की पहाड़ी में एक ऐसा मंदिर भी है जो आदि शंकराचार्य को समर्पित है लेकिन यहां के मुस्लिम इसे हजरत सुलेमान का सुलेमानी तख्त मानते हैं, आइए जानें क्या है इसकी कहानी.

कश्मीर में आदि शंकराचार्य का तप स्थल

आदि शंकराचार्य को भारत में हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है. शंकराचार्य ने देश के कोने-कोने में भ्रमण करके लोगों को जागृत किया, विद्वानों से शास्त्रार्थ किया, ताकि वे वैदिक धर्म को बढ़ा सकें. इसी दौरान वे कश्मीर भी गए, जो उस समय आध्यात्मिक, धार्मिक और ज्ञान की दृष्टिकोण से एक अहम् केंद्र हुआ करता था. यहां पर्वतमाला पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, कहा जाता है कि यहां आदि शंकराचार्य ने आकर साधना की थी. इसे शंकराचार्य की तप स्थली भी कहा जाता है.

आदि शंकराचार्य ने जेष्ठस्वर मंदिर के प्रांगण में डेरा डाल शिव की साधना की थी. उनके ज्ञान और साधना से प्रभावित होकर कश्मीरी विद्वानों, संत-महात्माओं ने सम्मान स्वरूप संधिमान पर्वत और मंदिर का नामकरण शंकराचार्य पर्वत और शंकराचार्य मंदिर कर दिया.

क्यों मुस्लिम इसे कहते हैं ‘तख्त ए सुलेमान’ ?

हिंदू धर्म के लोगों के लिए बेशक ये मंदिर शंकराचार्य का तप स्थल है लेकिन यहां के मुस्लिम इसे हजरत सुलेमान का तख्त मानते हैं. उनके अनुसार एक बार हजरत सुलेमान हवा में उड़ते हुए कश्मीर का दौरा कर रहे थे. ये इलाका पानी से भरा था.

आमजन की कोई बस्ती नहीं थी, तब हजरत सुलेमान ने जिन्नातों को हुक्म दिया किइस जगह से पानी हटाया जाए और इसे रहने लायक जगह बनाएं. कहते हैं सुलेमान यहां जिस पर्वत पर उतरे थे उसे सुलेमानी तख्त कहा जाता है.

वट सावित्री व्रत 2025 आने वाला है, स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं व्रत, नोट करें डेट

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 

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