Independence Day 2025: नेहरू युग से लेकर दुनिया की चौथी इकोनॉमी बनने तक... भारत की ऐसी रही विकास यात्रा
Independence Day 2025: देश 1947 में आज़ाद हुआ और उसके बाद विकास के कई आयाम देखे गए. नेहरू युग से लेकर इंदिरा और राजीव गांधी का शासन, फिर पी.वी. नरसिम्हा राव के दौर में उदारीकरण और आज के "न्यू इंडिया" के विज़न तक — हर दौर की अपनी अलग नीतियाँ रहीं. कभी समाजवाद को तरजीह दी गई, कभी औद्योगीकरण को, तो कभी हरित क्रांति ने देश की भूख मिटाने में मील का पत्थर साबित किया. 1947 — आज़ादी और नई शुरुआत जवाहरलाल नेहरू के शासनकाल में देश समाजवाद के रास्ते पर आगे बढ़ा. उस समय लिए गए फैसलों ने भविष्य के भारत की बुनियाद रखी. आज अगर भारत वैश्विक आर्थिक केंद्र बना हुआ है, तो इसमें उनकी सोच की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. आजादी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी. विभाजन के दर्द के साथ गरीबी चरम पर थी. ऐसे में सोवियत संघ की तर्ज पर नेहरू ने "मिक्स्ड इकोनॉमी" मॉडल अपनाया — जो आत्मनिर्भरता के साथ तेज औद्योगीकरण पर केंद्रित था. इससे भारत को भुखमरी से उबरने और विभाजन के ग़म से निकलने में मदद मिली. 1950s — नेहरू युग और बुनियाद का निर्माण 1950 में योजना आयोग का गठन हुआ, जिसका काम पंचवर्षीय योजनाएँ बनाना और उन्हें लागू करना था. पहले (1951–1956) पंचवर्षीय योजना में कृषि, सिंचाई और बिजली को प्राथमिकता दी गई, जिससे GDP वृद्धि दर 3.2% तक पहुँच गई — जो अनुमानित 2.1% से कहीं अधिक थी. दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योग, स्टील प्लांट और बड़े पैमाने के उत्पादन पर ज़ोर दिया गया. SAIL, BHEL और NTPC जैसी PSU कंपनियाँ इसी दौर में स्थापित हुईं. इन्हें "आधुनिक भारत के मंदिर" कहा गया — जिनका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं बल्कि रोजगार पैदा करना और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना था. 1960s–1970s — हरित क्रांति और खाद्य आत्मनिर्भरता 1960 के दशक में भारत गंभीर भुखमरी के संकट से जूझ रहा था और विदेशी खाद्यान्न सहायता पर निर्भर था. उस समय कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन — जिन्हें हरित क्रांति का जनक कहा जाता है — ने उच्च उत्पादकता वाले गेहूँ और चावल के बीज विकसित किए. सरकार ने उर्वरकों, कीटनाशकों और सिंचाई सुधार पर निवेश किया, जिससे भारत का कृषि परिदृश्य बदल गया. 1980s — टेक्नोलॉजी का उदय राजीव गांधी के शासन में भारत कठोर समाजवाद से धीरे-धीरे हटकर तकनीक आधारित विकास की ओर बढ़ा. टेलीकम्युनिकेशन और आईटी को बूस्ट मिला, ग्रामीण क्षेत्रों तक टेलीफोन पहुँचने लगे, और MTNL ने शहरी सेवाओं में सुधार किया. लाइसेंस राज में भी कुछ ढील दी गई. 1991 — आर्थिक उदारीकरण का बड़ा कदम लेकिन असली आर्थिक सुधार 1991 में हुए, जब विदेशी मुद्रा भंडार संकट और खाड़ी युद्ध से भारत लगभग दिवालिया हो गया था. पी.वी. नरसिम्हा राव और तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने "नई आर्थिक नीति" लागू की — जिसमें लाइसेंस राज का अंत, विदेशी निवेश के लिए खुलापन और बाज़ार आधारित सुधार शामिल थे. डिजिटल इंडिया से ग्लोबल हब तक आज TCS और Infosys जैसी कंपनियाँ भारत को वैश्विक आउटसोर्सिंग हब बना चुकी हैं. 2025 में भारत की अर्थव्यवस्था 4.19 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गई है और जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. ये भी पढ़ें: स्वतंत्रता दिवस से पहले भारत के लिए आई खुशखबरी, 19 साल बाद S&P ने क्रेडिट रेटिंग किया अपग्रेड, जानें इससे क्या होगा

Independence Day 2025: देश 1947 में आज़ाद हुआ और उसके बाद विकास के कई आयाम देखे गए. नेहरू युग से लेकर इंदिरा और राजीव गांधी का शासन, फिर पी.वी. नरसिम्हा राव के दौर में उदारीकरण और आज के "न्यू इंडिया" के विज़न तक — हर दौर की अपनी अलग नीतियाँ रहीं. कभी समाजवाद को तरजीह दी गई, कभी औद्योगीकरण को, तो कभी हरित क्रांति ने देश की भूख मिटाने में मील का पत्थर साबित किया.
1947 — आज़ादी और नई शुरुआत
जवाहरलाल नेहरू के शासनकाल में देश समाजवाद के रास्ते पर आगे बढ़ा. उस समय लिए गए फैसलों ने भविष्य के भारत की बुनियाद रखी. आज अगर भारत वैश्विक आर्थिक केंद्र बना हुआ है, तो इसमें उनकी सोच की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता.
आजादी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी. विभाजन के दर्द के साथ गरीबी चरम पर थी. ऐसे में सोवियत संघ की तर्ज पर नेहरू ने "मिक्स्ड इकोनॉमी" मॉडल अपनाया — जो आत्मनिर्भरता के साथ तेज औद्योगीकरण पर केंद्रित था. इससे भारत को भुखमरी से उबरने और विभाजन के ग़म से निकलने में मदद मिली.
1950s — नेहरू युग और बुनियाद का निर्माण
1950 में योजना आयोग का गठन हुआ, जिसका काम पंचवर्षीय योजनाएँ बनाना और उन्हें लागू करना था. पहले (1951–1956) पंचवर्षीय योजना में कृषि, सिंचाई और बिजली को प्राथमिकता दी गई, जिससे GDP वृद्धि दर 3.2% तक पहुँच गई — जो अनुमानित 2.1% से कहीं अधिक थी. दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योग, स्टील प्लांट और बड़े पैमाने के उत्पादन पर ज़ोर दिया गया. SAIL, BHEL और NTPC जैसी PSU कंपनियाँ इसी दौर में स्थापित हुईं. इन्हें "आधुनिक भारत के मंदिर" कहा गया — जिनका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं बल्कि रोजगार पैदा करना और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना था.
1960s–1970s — हरित क्रांति और खाद्य आत्मनिर्भरता
1960 के दशक में भारत गंभीर भुखमरी के संकट से जूझ रहा था और विदेशी खाद्यान्न सहायता पर निर्भर था. उस समय कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन — जिन्हें हरित क्रांति का जनक कहा जाता है — ने उच्च उत्पादकता वाले गेहूँ और चावल के बीज विकसित किए. सरकार ने उर्वरकों, कीटनाशकों और सिंचाई सुधार पर निवेश किया, जिससे भारत का कृषि परिदृश्य बदल गया.
1980s — टेक्नोलॉजी का उदय
राजीव गांधी के शासन में भारत कठोर समाजवाद से धीरे-धीरे हटकर तकनीक आधारित विकास की ओर बढ़ा. टेलीकम्युनिकेशन और आईटी को बूस्ट मिला, ग्रामीण क्षेत्रों तक टेलीफोन पहुँचने लगे, और MTNL ने शहरी सेवाओं में सुधार किया. लाइसेंस राज में भी कुछ ढील दी गई.
1991 — आर्थिक उदारीकरण का बड़ा कदम
लेकिन असली आर्थिक सुधार 1991 में हुए, जब विदेशी मुद्रा भंडार संकट और खाड़ी युद्ध से भारत लगभग दिवालिया हो गया था. पी.वी. नरसिम्हा राव और तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने "नई आर्थिक नीति" लागू की — जिसमें लाइसेंस राज का अंत, विदेशी निवेश के लिए खुलापन और बाज़ार आधारित सुधार शामिल थे.
डिजिटल इंडिया से ग्लोबल हब तक
आज TCS और Infosys जैसी कंपनियाँ भारत को वैश्विक आउटसोर्सिंग हब बना चुकी हैं. 2025 में भारत की अर्थव्यवस्था 4.19 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गई है और जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.
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