IBS और कोलन कैंसर में क्या होता है अंतर? एक जैसे लक्षण कर देते हैं कंफ्यूज

आईबीएस (इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम) और कोलन कैंसर दोनों ही पाचन तंत्र से जुड़ी बीमारियां हैं और इन दोनों में पेट दर्द, गैस बनना, और पाखाने की आदतों में बदलाव जैसे लक्षण समान हो सकते हैं. लेकिन ये दोनों पूरी तरह अलग बीमारी हैं. आईबीएस एक लंबी बीमारी होती है जो आपके आंत के काम करने के तरीके को प्रभावित करती है, लेकिन यह जानलेवा नहीं होती. वहीं, कोलन कैंसर एक गंभीर बीमारी है, जिसमें कोलन या रेक्टम की कोशिकाओं में असामान्य और अनियंत्रित वृद्धि होने लगती है. दोनों को एक जैसे समझना सही इलाज में देरी कर सकता है, इसलिए इनके बीच फर्क समझना जरूरी है. कोलन कैंसर और आईबीएस के कारण आईबीएस को एक फंक्शनल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर माना जाता है, जिसका मतलब है कि इससे कोलन को कोई दिखने वाला नुकसान नहीं होता, लेकिन आंत की मांसपेशियों और नसों की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है. इसके कारण तनाव, चिंता, कुछ खाने से एलर्जी, संक्रमण या हार्मोनल बदलाव हो सकते हैं. इसके असली कारण अभी पूरी तरह नहीं समझे गए हैं, लेकिन माना जाता है कि दिमाग और आंत के बीच संचार में गड़बड़ी होती है. वहीं कोलन कैंसर अनुवांशिक म्यूटेशन की वजह से होता है, जिससे कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास शुरू हो जाता है. यह आमतौर पर कोलन की परत में छोटे और गैर-कैंसरयुक्त पॉलीप्स के रूप में शुरू होता है, जो समय के साथ कैंसर में बदल सकते हैं. इसके जोखिम बढ़ाने वाले कारणों में उम्र (खासकर 45 साल से ऊपर), रेड मीट और प्रोसेस्ड मीट ज्यादा खाने की आदत, निष्क्रिय जीवनशैली, धूम्रपान, शराब का सेवन, परिवार में कोलन कैंसर का इतिहास, और कुछ सूजन वाली आंत की बीमारियां शामिल हैं. कोलन कैंसर के लक्षण कोलन कैंसर के शुरुआती लक्षण हल्के और धीरे-धीरे बढ़ने वाले होते हैं. इसमें पाचन तंत्र की आदतों में लगातार बदलाव, जैसे दस्त या कब्ज, मल का आकार पतला होना, मल में खून आना, बिना वजह वजन कम होना, और लगातार थकान महसूस होना शामिल है. ये लक्षण समय के साथ बिगड़ते हैं और तनाव या खाने से जुड़े नहीं होते. पेट दर्द में फर्क आईबीएस में पेट का दर्द ऐंठन जैसा होता है और आमतौर पर निचले पेट में महसूस होता है. यह दर्द गैस या पाखाना करने से कम हो जाता है. दर्द दिनभर घटता-बढ़ता रहता है और कई बार तुरंत टॉयलेट जाने की जल्दी भी होती है. कोलन कैंसर में दर्द तब होता है जब कैंसर बढ़ चुका हो. यह लगातार और दबाव जैसा महसूस होता है, जो पाखाना करने से कम नहीं होता. कभी-कभी पेट या मलाशय में भरा हुआ महसूस होता है, खासकर जब ट्यूमर आंत के रास्ते को बंद कर रहा हो. थकान और वजन कम होना, क्यों खतरे की बात है? आईबीएस में वजन आमतौर पर स्थिर रहता है, जब तक कि व्यक्ति बहुत सारे खाने से परहेज न करे या कम न खाए. थकान तनाव या नींद की कमी से हो सकती है, लेकिन यह सीधे आईबीएस का लक्षण नहीं है. वहीं, बिना वजह वजन कम होना और लगातार थकान कोलन कैंसर के प्रमुख संकेत होते हैं. कैंसर की कोशिकाएं शरीर की ऊर्जा खपाती हैं, जिससे कमजोरी और थकान होती है. इसलिए अगर वजन घट रहा है और आप बहुत थका हुआ महसूस कर रहे हैं, तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कब डॉक्टर से मिलना चाहिए? अगर आपकी उम्र 45 से ऊपर है या आईबीएस के लक्षण अचानक बदल जाएं जैसे लगातार कब्ज या दस्त, मल में खून, बिना वजह वजन कम होना, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें. कॉलोनोस्कोपी या अन्य टेस्ट से कोलन कैंसर की पुष्टि या खारिज़ की जा सकती है. समय पर जांच से कैंसर का इलाज सफल हो सकता है. इसे भी पढ़ें: बार-बार हो रहे हैं मुंह में छाले, कहीं आपको इस विटामिन की कमी तो नहीं? Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

Aug 13, 2025 - 10:30
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IBS और कोलन कैंसर में क्या होता है अंतर? एक जैसे लक्षण कर देते हैं कंफ्यूज

आईबीएस (इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम) और कोलन कैंसर दोनों ही पाचन तंत्र से जुड़ी बीमारियां हैं और इन दोनों में पेट दर्द, गैस बनना, और पाखाने की आदतों में बदलाव जैसे लक्षण समान हो सकते हैं. लेकिन ये दोनों पूरी तरह अलग बीमारी हैं. आईबीएस एक लंबी बीमारी होती है जो आपके आंत के काम करने के तरीके को प्रभावित करती है, लेकिन यह जानलेवा नहीं होती. वहीं, कोलन कैंसर एक गंभीर बीमारी है, जिसमें कोलन या रेक्टम की कोशिकाओं में असामान्य और अनियंत्रित वृद्धि होने लगती है. दोनों को एक जैसे समझना सही इलाज में देरी कर सकता है, इसलिए इनके बीच फर्क समझना जरूरी है.

कोलन कैंसर और आईबीएस के कारण

आईबीएस को एक फंक्शनल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर माना जाता है, जिसका मतलब है कि इससे कोलन को कोई दिखने वाला नुकसान नहीं होता, लेकिन आंत की मांसपेशियों और नसों की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है. इसके कारण तनाव, चिंता, कुछ खाने से एलर्जी, संक्रमण या हार्मोनल बदलाव हो सकते हैं. इसके असली कारण अभी पूरी तरह नहीं समझे गए हैं, लेकिन माना जाता है कि दिमाग और आंत के बीच संचार में गड़बड़ी होती है.

वहीं कोलन कैंसर अनुवांशिक म्यूटेशन की वजह से होता है, जिससे कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास शुरू हो जाता है. यह आमतौर पर कोलन की परत में छोटे और गैर-कैंसरयुक्त पॉलीप्स के रूप में शुरू होता है, जो समय के साथ कैंसर में बदल सकते हैं. इसके जोखिम बढ़ाने वाले कारणों में उम्र (खासकर 45 साल से ऊपर), रेड मीट और प्रोसेस्ड मीट ज्यादा खाने की आदत, निष्क्रिय जीवनशैली, धूम्रपान, शराब का सेवन, परिवार में कोलन कैंसर का इतिहास, और कुछ सूजन वाली आंत की बीमारियां शामिल हैं.

कोलन कैंसर के लक्षण

कोलन कैंसर के शुरुआती लक्षण हल्के और धीरे-धीरे बढ़ने वाले होते हैं. इसमें पाचन तंत्र की आदतों में लगातार बदलाव, जैसे दस्त या कब्ज, मल का आकार पतला होना, मल में खून आना, बिना वजह वजन कम होना, और लगातार थकान महसूस होना शामिल है. ये लक्षण समय के साथ बिगड़ते हैं और तनाव या खाने से जुड़े नहीं होते.

पेट दर्द में फर्क

आईबीएस में पेट का दर्द ऐंठन जैसा होता है और आमतौर पर निचले पेट में महसूस होता है. यह दर्द गैस या पाखाना करने से कम हो जाता है. दर्द दिनभर घटता-बढ़ता रहता है और कई बार तुरंत टॉयलेट जाने की जल्दी भी होती है.

कोलन कैंसर में दर्द तब होता है जब कैंसर बढ़ चुका हो. यह लगातार और दबाव जैसा महसूस होता है, जो पाखाना करने से कम नहीं होता. कभी-कभी पेट या मलाशय में भरा हुआ महसूस होता है, खासकर जब ट्यूमर आंत के रास्ते को बंद कर रहा हो.

थकान और वजन कम होना, क्यों खतरे की बात है?

आईबीएस में वजन आमतौर पर स्थिर रहता है, जब तक कि व्यक्ति बहुत सारे खाने से परहेज न करे या कम न खाए. थकान तनाव या नींद की कमी से हो सकती है, लेकिन यह सीधे आईबीएस का लक्षण नहीं है. वहीं, बिना वजह वजन कम होना और लगातार थकान कोलन कैंसर के प्रमुख संकेत होते हैं. कैंसर की कोशिकाएं शरीर की ऊर्जा खपाती हैं, जिससे कमजोरी और थकान होती है. इसलिए अगर वजन घट रहा है और आप बहुत थका हुआ महसूस कर रहे हैं, तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

कब डॉक्टर से मिलना चाहिए?

अगर आपकी उम्र 45 से ऊपर है या आईबीएस के लक्षण अचानक बदल जाएं जैसे लगातार कब्ज या दस्त, मल में खून, बिना वजह वजन कम होना, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें. कॉलोनोस्कोपी या अन्य टेस्ट से कोलन कैंसर की पुष्टि या खारिज़ की जा सकती है. समय पर जांच से कैंसर का इलाज सफल हो सकता है.

इसे भी पढ़ें: बार-बार हो रहे हैं मुंह में छाले, कहीं आपको इस विटामिन की कमी तो नहीं?

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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