Chief Election Commissioner: क्या मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाना संभव है? जानें राहुल गांधी का आरोप और महाभियोग की पेचीदगियां

बिहार में चल रहे स्पेशल इंसेंटिव रिविजन यानी कि सर और फिर राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों के बाद पूरा विपक्ष लामबंद है और एक सुर से मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. वहीं मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके राहुल गांधी के तमाम आरोपों का अपने तईं जवाब दे चुके हैं और राहुल गांधी के सारे आरोपों को सिरे से खारिज कर चुके हैं. हालांकि, अब ये लड़ाई राजनीति से आगे बढ़कर संविधान के दांव-पेच तक पहुंच चुकी है और विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग लाने पर विचार कर रहा है. क्या मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाना इतना आसान है, जितना विपक्ष सोच रहा है. क्या महाभियोग का प्रस्ताव लाने भर से ही ज्ञानेश कुमार को उनके पद से हटाया जा सकता है या फिर संविधान में है कुछ ऐसा पेच है,  जिसकी वजह से विपक्ष चाहकर भी ज्ञानेश कुमार को उनके पद से नहीं हटा सकता है. आखिर मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने की प्रक्रिया क्या है और क्यों ये प्रक्रिया इतनी जटिल है कि राहुल गांधी महाभियोग लाने की बजाय बिहार में वोटर अधिकार यात्रा चलाने में ज्यादा व्यस्त हैं.   चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग अगर आपको एक लाइन में बताने की कोशिश की जाए तो बात सिर्फ इतनी सी है कि विपक्ष चाहे तो मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग तो बड़ी आसानी से ला सकता है, लेकिन इस महाभियोग को पास करवाना विपक्ष के लिए सिर्फ मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है और वो कैसे है, चलिए इसको समझने की कोशिश करते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियों का निर्धारण होता है. इस अनुच्छेद के पैरा 5 में साफ तौर पर लिखा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का इकलौता तरीका वही है, जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने का है. सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने का तरीका लिखा हुआ है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के भाग चार में. यानी कि एक बेहद लंबी और जटिल प्रकिया, लेकिन उससे पहले एक बात और समझ लीजिए कि मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके पद से हटाने की सिर्फ दो ही सूरत है. 1. अगर मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ भ्रष्टाचार या किसी राजनीतिक दल के लिए पक्षपात करने का आरोप लगे.2. अगर मुख्य चुनाव आयुक्त काम करने में अक्षम हो जाए, चाहे उसकी वजह कोई बीमारी या शारीरिक अक्षमता ही क्यों न हो. अगर ये दो बातें मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ जाती हैं तो फिर एक लंबी और जटिल प्रक्रिया शुरू हो जाती है. कौन ला सकता है मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का प्रस्ताव? लोकसभा या राज्यसभा, किसी भी सदन का सांसद मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का प्रस्ताव ला सकता है. लोकसभा में प्रस्ताव आता है तो लोकसभा के 100 सदस्यों की सहमति जरूरी है. राज्यसभा में प्रस्ताव आता है तो राज्यसभा के 50 सांसदों की सहमति जरूरी है. लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा में सभापति यानी कि उपराष्ट्रपति तय करेंगे कि जो आरोप मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ लगाए गए हैं, वो प्रथम दृष्टया सही हैं या नहीं. अगर लगता है कि प्रथम दृष्टया मामला सही है तो फिर लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति तीन सदस्यीय जांच समिति बना सकते हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज, हाई कोर्ट के जज और कानून के जानकार शामिल हो सकते हैं. अगर जांच समिति को भी लगता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोप सही हैं तो फिर जांच समिति मामले को संसद में भेजने का अनुरोध कर सकती है. मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए वोटिंग संसद में मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए दोनों सदनों में वोटिंग होगी.वोटिंग में भी साधारण बहुमत नहीं बल्कि विशेष बहुमत चाहिए होगा. विशेष बहुमत का मतलब है कि जितने लोग सदन के सदस्य हैं उनका बहुमत होता है. साथ ही साथ जितने लोग वोट कर रहे हैं उनका दो तिहाई वोट. अगर इतना हो जाता है तो फिर प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की सहमति के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाया जा सकेगा. ये पूरी प्रक्रिया संसद के एक सत्र में ही होनी जरूरी है. अध्यक्ष ओम बिड़ला के सामने साबित करने चुनौती लंबी और जटिल प्रक्रिया विपक्ष के हर वार को बेअसर करने और मुख्य चुनाव आयुक्त को बचाने और उनके पद पर बनाए रखने के लिए पर्याप्त है. सबसे पहले तो विपक्ष को लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिड़ला के सामने साबित करना होगा कि मुख्य चुनाव आयुक्त पक्षपात कर रहे हैं. हालांकि यही सबसे मुश्किल काम है, लेकिन मान लीजिए कि ये भी हो गया तो फिर लोकसभा में 100 या राज्यसभा में 50 सांसद तो विपक्ष के पास हैं, जो मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के पक्ष में आ जाएंगे, लेकिन जब वोटिंग होगी और दो तिहाई वोट की जरूरत होगी तो न तो लोकसभा में और न ही राज्यसभा में विपक्ष के पास वो नंबर है कि अपना लाया प्रस्ताव पास करवा सके. हां इतना बस हो सकता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की बात करके, महाभियोग लगाने की बात करके विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ माहौल बना सकता है.  वोट अधिकार यात्रा के जरिए आयुक्त के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश  मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए आगे विपक्ष के लिए अभी तो कोई भी दूसरा रास्ता नहीं है. शायद यही वजह है कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जिस मसले को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए शुरू किया था. उसे और धार देने के लिए वो बिहार की सड़क पर उतर गए हैं और वोट अधिकार यात्रा के जरिए लोगों के बीच मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. ये भी पढ़ें:  Odisha Gold Reserves: देश में यहां मिला सोने का बहुत बड़ा भंडार! मालामाल हो जाएगा ये राज्य

Aug 20, 2025 - 00:30
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Chief Election Commissioner: क्या मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाना संभव है? जानें राहुल गांधी का आरोप और महाभियोग की पेचीदगियां

बिहार में चल रहे स्पेशल इंसेंटिव रिविजन यानी कि सर और फिर राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों के बाद पूरा विपक्ष लामबंद है और एक सुर से मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. वहीं मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके राहुल गांधी के तमाम आरोपों का अपने तईं जवाब दे चुके हैं और राहुल गांधी के सारे आरोपों को सिरे से खारिज कर चुके हैं. हालांकि, अब ये लड़ाई राजनीति से आगे बढ़कर संविधान के दांव-पेच तक पहुंच चुकी है और विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग लाने पर विचार कर रहा है.

क्या मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाना इतना आसान है, जितना विपक्ष सोच रहा है. क्या महाभियोग का प्रस्ताव लाने भर से ही ज्ञानेश कुमार को उनके पद से हटाया जा सकता है या फिर संविधान में है कुछ ऐसा पेच है,  जिसकी वजह से विपक्ष चाहकर भी ज्ञानेश कुमार को उनके पद से नहीं हटा सकता है. आखिर मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाने की प्रक्रिया क्या है और क्यों ये प्रक्रिया इतनी जटिल है कि राहुल गांधी महाभियोग लाने की बजाय बिहार में वोटर अधिकार यात्रा चलाने में ज्यादा व्यस्त हैं.  

चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग

अगर आपको एक लाइन में बताने की कोशिश की जाए तो बात सिर्फ इतनी सी है कि विपक्ष चाहे तो मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग तो बड़ी आसानी से ला सकता है, लेकिन इस महाभियोग को पास करवाना विपक्ष के लिए सिर्फ मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है और वो कैसे है, चलिए इसको समझने की कोशिश करते हैं.

मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का नियम

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियों का निर्धारण होता है. इस अनुच्छेद के पैरा 5 में साफ तौर पर लिखा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का इकलौता तरीका वही है, जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने का है. सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने का तरीका लिखा हुआ है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के भाग चार में. यानी कि एक बेहद लंबी और जटिल प्रकिया, लेकिन उससे पहले एक बात और समझ लीजिए कि मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके पद से हटाने की सिर्फ दो ही सूरत है.

1. अगर मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ भ्रष्टाचार या किसी राजनीतिक दल के लिए पक्षपात करने का आरोप लगे.
2. अगर मुख्य चुनाव आयुक्त काम करने में अक्षम हो जाए, चाहे उसकी वजह कोई बीमारी या शारीरिक अक्षमता ही क्यों न हो.

अगर ये दो बातें मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ जाती हैं तो फिर एक लंबी और जटिल प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

कौन ला सकता है मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का प्रस्ताव?

लोकसभा या राज्यसभा, किसी भी सदन का सांसद मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने का प्रस्ताव ला सकता है. लोकसभा में प्रस्ताव आता है तो लोकसभा के 100 सदस्यों की सहमति जरूरी है. राज्यसभा में प्रस्ताव आता है तो राज्यसभा के 50 सांसदों की सहमति जरूरी है. लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा में सभापति यानी कि उपराष्ट्रपति तय करेंगे कि जो आरोप मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ लगाए गए हैं, वो प्रथम दृष्टया सही हैं या नहीं. अगर लगता है कि प्रथम दृष्टया मामला सही है तो फिर लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति तीन सदस्यीय जांच समिति बना सकते हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज, हाई कोर्ट के जज और कानून के जानकार शामिल हो सकते हैं. अगर जांच समिति को भी लगता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोप सही हैं तो फिर जांच समिति मामले को संसद में भेजने का अनुरोध कर सकती है.
 
मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए वोटिंग

संसद में मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए दोनों सदनों में वोटिंग होगी.वोटिंग में भी साधारण बहुमत नहीं बल्कि विशेष बहुमत चाहिए होगा. विशेष बहुमत का मतलब है कि जितने लोग सदन के सदस्य हैं उनका बहुमत होता है. साथ ही साथ जितने लोग वोट कर रहे हैं उनका दो तिहाई वोट. अगर इतना हो जाता है तो फिर प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की सहमति के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाया जा सकेगा. ये पूरी प्रक्रिया संसद के एक सत्र में ही होनी जरूरी है.

अध्यक्ष ओम बिड़ला के सामने साबित करने चुनौती

लंबी और जटिल प्रक्रिया विपक्ष के हर वार को बेअसर करने और मुख्य चुनाव आयुक्त को बचाने और उनके पद पर बनाए रखने के लिए पर्याप्त है. सबसे पहले तो विपक्ष को लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिड़ला के सामने साबित करना होगा कि मुख्य चुनाव आयुक्त पक्षपात कर रहे हैं. हालांकि यही सबसे मुश्किल काम है, लेकिन मान लीजिए कि ये भी हो गया तो फिर लोकसभा में 100 या राज्यसभा में 50 सांसद तो विपक्ष के पास हैं, जो मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के पक्ष में आ जाएंगे, लेकिन जब वोटिंग होगी और दो तिहाई वोट की जरूरत होगी तो न तो लोकसभा में और न ही राज्यसभा में विपक्ष के पास वो नंबर है कि अपना लाया प्रस्ताव पास करवा सके. हां इतना बस हो सकता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की बात करके, महाभियोग लगाने की बात करके विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ माहौल बना सकता है. 

वोट अधिकार यात्रा के जरिए आयुक्त के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश 

मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए आगे विपक्ष के लिए अभी तो कोई भी दूसरा रास्ता नहीं है. शायद यही वजह है कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने जिस मसले को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए शुरू किया था. उसे और धार देने के लिए वो बिहार की सड़क पर उतर गए हैं और वोट अधिकार यात्रा के जरिए लोगों के बीच मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें:  Odisha Gold Reserves: देश में यहां मिला सोने का बहुत बड़ा भंडार! मालामाल हो जाएगा ये राज्य

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