वसई-विरार घोटाला: पूर्व कमिश्नर अनिल पवार समेत 4 गिरफ्तार, करोड़ों की बेनामी संपत्ति जब्त
ED ने पूर्व VVCMC (वसई विरार सिटी म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन) के कमिश्नर अनिल पवार को गिरफ्तार किया गया. ED ने मामले में पूर्व नगरसेवक सीताराम गुप्ता, उसके बेटे अरुण गुप्ता और डेप्यूटी टाउन प्लैनेर YS रेडी को भी गिरफ्तार में किया है. आपको बता दें कि 29 जुलाई 2025 को प्रवर्तन निदेशालय (ED), मुंबई जोनल ऑफिस ने मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत मुंबई, पुणे, नासिक और सटाना में 12 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की. यह कार्रवाई वसई-विरार नगर निगम (VVCMC) घोटाले से जुड़े जयेश मेहता और अन्य आरोपियों के खिलाफ की गई. इस दौरान 1.33 करोड़ नकद के साथ-साथ बड़ी संख्या में आपत्तिजनक दस्तावेज, संपत्ति के कागजात, बेनामी संपत्तियों और अनिल पवार (तत्कालीन VVCMC कमिश्नर) के रिश्तेदारों के नाम पर दस्तावेज जब्त किए गए. आरक्षित जमीन पर खड़ी कर दी इमारत इस घोटाले की शुरुआत मीरा-भायंदर पुलिस कमिश्नरेट की ओर से दर्ज की गई कई एफआईआर से हुई थी. मामला वसई-विरार नगर निगम क्षेत्र में 2009 से सरकारी और निजी जमीनों पर अवैध रूप से रिहायशी व व्यावसायिक इमारतें बनाने से जुड़ा है. विकास योजना में जिस जमीन को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित किया गया था, उस पर 41 अवैध इमारतें खड़ी कर दी गईं. इन बिल्डरों ने अवैध निर्माण कर आम जनता को धोखा दिया और नकली मंजूरी दस्तावेजों के माध्यम से उन्हें फ्लैट बेच दिए, यह जानते हुए भी कि ये इमारतें गैरकानूनी हैं और कभी भी तोड़ी जा सकती हैं, लोगों को गुमराह कर उनके जीवनभर की कमाई लूटी गई. 8 जुलाई 2024 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन सभी 41 इमारतों को गिराने का आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी कायम रखा. 20 फरवरी 2025 को VVCMC की ओर से सभी अवैध इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया. 20–25 रुपए प्रति वर्गफुट की रिश्वत दर तय ED की जांच में खुलासा हुआ कि तत्कालीन आयुक्त अनिल पवार, डिप्टी डायरेक्टर (टाउन प्लानिंग) वाई.एस. रेड्डी, जूनियर इंजीनियर्स, आर्किटेक्ट्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और लायजनर्स, सब एक संगठित भ्रष्टाचार नेटवर्क का हिस्सा थे. इन अधिकारियों ने मिलकर 20–25 रुपए प्रति वर्गफुट की रिश्वत दर तय की थी, जिसमें से 10 रुपये प्रति वर्गफुट वाई.एस. रेड्डी को जाता था. जांच में यह भी सामने आया कि अनिल पवार ने अपने कार्यकाल के दौरान परिवारजनों और बेनामी व्यक्तियों के नाम पर कई शेल कंपनियां बनाई थीं, जिनके जरिए रिश्वत की रकम को वैध किया जाता था. ये कंपनियां मुख्य रूप से रिहायशी टावरों के पुनर्विकास और गोदाम निर्माण जैसे कार्यों में सक्रिय थीं. काले धन और भ्रष्टाचार पर आधारित प्रणाली डिजिटल उपकरणों से भी यह साफ हुआ कि VVCMC के अधिकारी, आर्किटेक्ट्स और अन्य बिचौलिए एक गहरे भ्रष्ट गठजोड़ का हिस्सा थे, जो भवन निर्माण की मंजूरी दिलाने के लिए काले धन और भ्रष्टाचार पर आधारित प्रणाली चला रहे थे. अब तक की बरामदगी में नकद 8.94 करोड, हीरे जड़े गहने व सोना-चांदी 23.25 करोड, बैंक बैलेंस, शेयर्स, म्यूचुअल फंड, एफडी फ्रीज 13.86 करोड़, ताजा बरामदगी 1.33 करोड़ नकद + दस्तावेज और डिजिटल सबूत प्राप्त हुए. प्रवर्तन निदेशालय की जांच अभी जारी है. ये भी पढ़ें:- ऑपरेशन डीप मेनिफेस्ट: पाकिस्तानी अवैध आयात का पर्दाफाश, विभाग ने 12.04 करोड़ का सामान किया जब्त

ED ने पूर्व VVCMC (वसई विरार सिटी म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन) के कमिश्नर अनिल पवार को गिरफ्तार किया गया. ED ने मामले में पूर्व नगरसेवक सीताराम गुप्ता, उसके बेटे अरुण गुप्ता और डेप्यूटी टाउन प्लैनेर YS रेडी को भी गिरफ्तार में किया है.
आपको बता दें कि 29 जुलाई 2025 को प्रवर्तन निदेशालय (ED), मुंबई जोनल ऑफिस ने मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत मुंबई, पुणे, नासिक और सटाना में 12 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की. यह कार्रवाई वसई-विरार नगर निगम (VVCMC) घोटाले से जुड़े जयेश मेहता और अन्य आरोपियों के खिलाफ की गई. इस दौरान 1.33 करोड़ नकद के साथ-साथ बड़ी संख्या में आपत्तिजनक दस्तावेज, संपत्ति के कागजात, बेनामी संपत्तियों और अनिल पवार (तत्कालीन VVCMC कमिश्नर) के रिश्तेदारों के नाम पर दस्तावेज जब्त किए गए.
आरक्षित जमीन पर खड़ी कर दी इमारत
इस घोटाले की शुरुआत मीरा-भायंदर पुलिस कमिश्नरेट की ओर से दर्ज की गई कई एफआईआर से हुई थी. मामला वसई-विरार नगर निगम क्षेत्र में 2009 से सरकारी और निजी जमीनों पर अवैध रूप से रिहायशी व व्यावसायिक इमारतें बनाने से जुड़ा है. विकास योजना में जिस जमीन को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित किया गया था, उस पर 41 अवैध इमारतें खड़ी कर दी गईं.
इन बिल्डरों ने अवैध निर्माण कर आम जनता को धोखा दिया और नकली मंजूरी दस्तावेजों के माध्यम से उन्हें फ्लैट बेच दिए, यह जानते हुए भी कि ये इमारतें गैरकानूनी हैं और कभी भी तोड़ी जा सकती हैं, लोगों को गुमराह कर उनके जीवनभर की कमाई लूटी गई. 8 जुलाई 2024 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन सभी 41 इमारतों को गिराने का आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी कायम रखा. 20 फरवरी 2025 को VVCMC की ओर से सभी अवैध इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया.
20–25 रुपए प्रति वर्गफुट की रिश्वत दर तय
ED की जांच में खुलासा हुआ कि तत्कालीन आयुक्त अनिल पवार, डिप्टी डायरेक्टर (टाउन प्लानिंग) वाई.एस. रेड्डी, जूनियर इंजीनियर्स, आर्किटेक्ट्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और लायजनर्स, सब एक संगठित भ्रष्टाचार नेटवर्क का हिस्सा थे. इन अधिकारियों ने मिलकर 20–25 रुपए प्रति वर्गफुट की रिश्वत दर तय की थी, जिसमें से 10 रुपये प्रति वर्गफुट वाई.एस. रेड्डी को जाता था.
जांच में यह भी सामने आया कि अनिल पवार ने अपने कार्यकाल के दौरान परिवारजनों और बेनामी व्यक्तियों के नाम पर कई शेल कंपनियां बनाई थीं, जिनके जरिए रिश्वत की रकम को वैध किया जाता था. ये कंपनियां मुख्य रूप से रिहायशी टावरों के पुनर्विकास और गोदाम निर्माण जैसे कार्यों में सक्रिय थीं.
काले धन और भ्रष्टाचार पर आधारित प्रणाली
डिजिटल उपकरणों से भी यह साफ हुआ कि VVCMC के अधिकारी, आर्किटेक्ट्स और अन्य बिचौलिए एक गहरे भ्रष्ट गठजोड़ का हिस्सा थे, जो भवन निर्माण की मंजूरी दिलाने के लिए काले धन और भ्रष्टाचार पर आधारित प्रणाली चला रहे थे.
अब तक की बरामदगी में नकद 8.94 करोड, हीरे जड़े गहने व सोना-चांदी 23.25 करोड, बैंक बैलेंस, शेयर्स, म्यूचुअल फंड, एफडी फ्रीज 13.86 करोड़, ताजा बरामदगी 1.33 करोड़ नकद + दस्तावेज और डिजिटल सबूत प्राप्त हुए. प्रवर्तन निदेशालय की जांच अभी जारी है.
ये भी पढ़ें:- ऑपरेशन डीप मेनिफेस्ट: पाकिस्तानी अवैध आयात का पर्दाफाश, विभाग ने 12.04 करोड़ का सामान किया जब्त
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