रति-कामदेव की तरह रूप और प्रेम पाने के लिए आज के दिन स्त्रियां करती थीं ये गुप्त साधना

आज का दिन विशेष है. पंचांग अनुसार 3 जून को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र है, हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास चल रहा है. ज्येष्ठ मास में अष्टमी की तिथि पर पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र हो तो इसका क्या महत्व है, शास्त्रों में बहुत ही विस्तार से बताया गया है. आज का दिन महिलाओं के लिए विशेष माना गया है. कहा जाता है कि ज्येष्ठ अष्टमी के दिन, जब पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र होता था तो स्त्रियां जल, चंद्रमा और सौंदर्य तत्त्वों की विशेष पूजा करती थीं. इस दिन जल में चेहरा देखना, पीपल-नीम पूजन, और गुप्त व्रत ऐसे कर्म थे जो न केवल उनके सौंदर्य को निखारते थे, बल्कि प्रेम और दांपत्य जीवन में भी स्थायित्व लाते थे. कैसे? आइए जानते हैं ज्येष्ठ अष्टमी और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, शास्त्र और लोक परंपरा का अद्भूत संगमपूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र को प्रेम और सौंदर्य का शास्त्रीय स्वरूप माना गया है. पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र शुक्र से प्रभावित नक्षत्र है, जो सिंह राशि के अंतर्गत आता है और इसके देवता है 'भग' हैं. 'भग' का उल्लेख वेदों में भी मिलता है. ऋग्वेद के अनुसार- 'भगं धियं वाजं अश्वं नृवंतं गोमं रथम्.' इसके अनुसार हे भग, हमें बुद्धि, धन, घोड़े, पुरुषार्थ, गौ और रथ प्रदान करें. इससे यह स्पष्ट होता है कि भग संपत्ति, ऐश्वर्य, सौंदर्य और दाम्पत्य सुख प्रदान करने वाले देवता माने गए हैं. ज्येष्ठ अष्टमी पर जल की पूजा का महत्ववारुणी या जल देवी पूजन का संकेत स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में भी मिलता है. देवी भागवत के अष्टम स्कंध में एक जगह वर्णन मिलता है- 'ज्येष्ठे मासि शुक्लाष्टम्यां जलमातृ पूजनं कृतम्.सौंदर्यं सौभाग्यं च स्त्रीणां प्राप्यते निश्चितम्॥' यानि इस दिन जल को देवी रूप में पूजने से शरीर की शुद्धि, रूप सौंदर्य, संतुलित अग्नि और मानसिक शांति प्राप्त होती है. रति-कामदेव की कथाशिव पुराण में एक स्थान पर वर्णन मिलता है कि जब कामदेव ने शिव को विचलित करने का प्रयास किया तो शिव ने उन्हें भस्म कर दिया, तो रति ने गहन तपस्या की. शिव महापुराण, रुद्र संहिता में एक श्लोक इसकी पुष्टि करता है 'रति तपस्यां चकार पूर्वा फाल्गुनि दिने.तत्र कामोऽभ्युत्थितो नूनं, शिवदर्शना तत्क्षणे॥' इस कथा के अनुसार, रति ने पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में शुक्ल अष्टमी को व्रत रखा, जिससे कामदेव पुनर्जीवित हुए. यही कारण है कि यह योग प्रेम संयोग और विवाह इच्छाओं के लिए आज भी फलदायक माना जाता है. वृक्षों का विवाह हिंदू धर्म के ग्रंथ वृक्षों के महत्व से भरे हुए हैं. पाराशर स्मृति और नारद संहिता में वृक्षों की महिमा का विस्तार से उल्लेख मिलता है- 'नारीणां तुल्यं पीपलं, नीमस्तु रोगनाशकः.तयोः संयोगे भवति, वृष्टेः कारणमुत्तमम्॥' लोक मान्यता और शास्त्र दोनों के अनुसार पीपल और नीम का विवाह विशेषकर ग्रीष्मकाल में अच्छी वर्षा के लिए होता आया है. शास्त्र और लोक मान्यताएं ये बताती हैं कि यदि ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का संयोग बन जाए, तो वह दिन सौंदर्य, प्रेम, दाम्पत्य और संतति के लिए सर्वोत्तम होता है. गरुड़ पुराण के अनुसार 'पूर्वाफाल्गुन्यष्टम्यां तिथौ स्नानं जलार्चनम्. सौंदर्यं सौभाग्यं च स्त्रीणां भवति निश्चितम.' जल पूजन, स्त्री सौंदर्य साधना, और पर्यावरण के लिए किए गए शुभकर्म अत्यंत शुभ फल देने वाले माने गए हैं. FAQsQ1. क्या पूर्वा फाल्गुनी का शास्त्रों में उल्लेख है?हां, ऋग्वेद और शिव पुराण में इसका उल्लेख 'भग' देवता और रति-कामदेव की कथा के संदर्भ में हुआ है. Q2. ज्येष्ठ अष्टमी को जल देवी का पूजन क्यों किया जाता है?देवी भागवत व स्कंद पुराण में इसका उल्लेख है कि इस दिन जल तत्त्व की आराधना से स्त्रियों को सौंदर्य, स्वास्थ्य और मानसिक शांति मिलती है. Q3. वृक्ष विवाह की परंपरा का शास्त्रीय आधार क्या है?पाराशर स्मृति और नारद संहिता के अनुसार, पीपल-नीम विवाह वर्षा और वंश वृद्धि के लिए शुभ होता है.

Jun 3, 2025 - 15:30
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रति-कामदेव की तरह रूप और प्रेम पाने के लिए आज के दिन स्त्रियां करती थीं ये गुप्त साधना

आज का दिन विशेष है. पंचांग अनुसार 3 जून को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र है, हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास चल रहा है. ज्येष्ठ मास में अष्टमी की तिथि पर पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र हो तो इसका क्या महत्व है, शास्त्रों में बहुत ही विस्तार से बताया गया है. आज का दिन महिलाओं के लिए विशेष माना गया है.

कहा जाता है कि ज्येष्ठ अष्टमी के दिन, जब पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र होता था तो स्त्रियां जल, चंद्रमा और सौंदर्य तत्त्वों की विशेष पूजा करती थीं. इस दिन जल में चेहरा देखना, पीपल-नीम पूजन, और गुप्त व्रत ऐसे कर्म थे जो न केवल उनके सौंदर्य को निखारते थे, बल्कि प्रेम और दांपत्य जीवन में भी स्थायित्व लाते थे. कैसे? आइए जानते हैं

ज्येष्ठ अष्टमी और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, शास्त्र और लोक परंपरा का अद्भूत संगम
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र को प्रेम और सौंदर्य का शास्त्रीय स्वरूप माना गया है. पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र शुक्र से प्रभावित नक्षत्र है, जो सिंह राशि के अंतर्गत आता है और इसके देवता है 'भग' हैं. 'भग' का उल्लेख वेदों में भी मिलता है. ऋग्वेद के अनुसार-

'भगं धियं वाजं अश्वं नृवंतं गोमं रथम्.'

इसके अनुसार हे भग, हमें बुद्धि, धन, घोड़े, पुरुषार्थ, गौ और रथ प्रदान करें. इससे यह स्पष्ट होता है कि भग संपत्ति, ऐश्वर्य, सौंदर्य और दाम्पत्य सुख प्रदान करने वाले देवता माने गए हैं.

ज्येष्ठ अष्टमी पर जल की पूजा का महत्व
वारुणी या जल देवी पूजन का संकेत स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में भी मिलता है. देवी भागवत के अष्टम स्कंध में एक जगह वर्णन मिलता है-

'ज्येष्ठे मासि शुक्लाष्टम्यां जलमातृ पूजनं कृतम्.
सौंदर्यं सौभाग्यं च स्त्रीणां प्राप्यते निश्चितम्॥'

यानि इस दिन जल को देवी रूप में पूजने से शरीर की शुद्धि, रूप सौंदर्य, संतुलित अग्नि और मानसिक शांति प्राप्त होती है.

रति-कामदेव की कथा
शिव पुराण में एक स्थान पर वर्णन मिलता है कि जब कामदेव ने शिव को विचलित करने का प्रयास किया तो शिव ने उन्हें भस्म कर दिया, तो रति ने गहन तपस्या की. शिव महापुराण, रुद्र संहिता में एक श्लोक इसकी पुष्टि करता है

'रति तपस्यां चकार पूर्वा फाल्गुनि दिने.
तत्र कामोऽभ्युत्थितो नूनं, शिवदर्शना तत्क्षणे॥'

इस कथा के अनुसार, रति ने पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में शुक्ल अष्टमी को व्रत रखा, जिससे कामदेव पुनर्जीवित हुए. यही कारण है कि यह योग प्रेम संयोग और विवाह इच्छाओं के लिए आज भी फलदायक माना जाता है.

वृक्षों का विवाह 
हिंदू धर्म के ग्रंथ वृक्षों के महत्व से भरे हुए हैं. पाराशर स्मृति और नारद संहिता में वृक्षों की महिमा का विस्तार से उल्लेख मिलता है-

'नारीणां तुल्यं पीपलं, नीमस्तु रोगनाशकः.
तयोः संयोगे भवति, वृष्टेः कारणमुत्तमम्॥'

लोक मान्यता और शास्त्र दोनों के अनुसार पीपल और नीम का विवाह विशेषकर ग्रीष्मकाल में अच्छी वर्षा के लिए होता आया है.

शास्त्र और लोक मान्यताएं ये बताती हैं कि यदि ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का संयोग बन जाए, तो वह दिन सौंदर्य, प्रेम, दाम्पत्य और संतति के लिए सर्वोत्तम होता है.

गरुड़ पुराण के अनुसार 'पूर्वाफाल्गुन्यष्टम्यां तिथौ स्नानं जलार्चनम्. सौंदर्यं सौभाग्यं च स्त्रीणां भवति निश्चितम.' जल पूजन, स्त्री सौंदर्य साधना, और पर्यावरण के लिए किए गए शुभकर्म अत्यंत शुभ फल देने वाले माने गए हैं.

FAQs
Q1. क्या पूर्वा फाल्गुनी का शास्त्रों में उल्लेख है?
हां, ऋग्वेद और शिव पुराण में इसका उल्लेख 'भग' देवता और रति-कामदेव की कथा के संदर्भ में हुआ है.

Q2. ज्येष्ठ अष्टमी को जल देवी का पूजन क्यों किया जाता है?
देवी भागवत व स्कंद पुराण में इसका उल्लेख है कि इस दिन जल तत्त्व की आराधना से स्त्रियों को सौंदर्य, स्वास्थ्य और मानसिक शांति मिलती है.

Q3. वृक्ष विवाह की परंपरा का शास्त्रीय आधार क्या है?
पाराशर स्मृति और नारद संहिता के अनुसार, पीपल-नीम विवाह वर्षा और वंश वृद्धि के लिए शुभ होता है.

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