‘जल्दबाजी में तैयार की गई मतदाता सूची तो...’, बिहार SIR को लेकर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का बड़ा बयान
नोबल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर टिप्पणी की है. अमर्त्य सेन ने बिहार एसआईआर के दौरान तेजी से तैयार की जा रही मतदाता सूची में गंभीर गलतियों की चेतावनी दी है. द हिंदू को दिए इंटरव्यू में अर्थशास्त्री और नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा, “अगर चुनाव आयोग की ओर से इस प्रक्रिया को सही तरीके से किया जाता है, तो यह मतदाता सूची को दुरुस्त करने का एक अच्छा कदम हो सकता है. लेकिन अगर मौजूदा वोटर लिस्ट से गलतियों को हटाने की कोशिश में जल्दबाजी करने में और ज्यादा गलतियां जोड़ दी जाएं, तो इसका नतीजा बेहद खतरनाक हो सकता है.” इस प्रक्रिया की शुरुआत से आयोग पर उठ रहे सवाल- सेन चुनाव आयोग की ओर से पूरे देश में एसआईआर के जरिए वोटर लिस्ट अपडेट करने की कोशिश को समर्थन करने के सवाल पर सेन ने कहा, “इस प्रक्रिया को इतने कम समय में और किसी भी तरीके के पक्षपात की गंभीर संभावनाओं के साथ करने का निर्णय, चुनाव को पहले से भी कम निष्पक्ष बना सकता है. हालांकि, इस प्रक्रिया की शुरुआत के बाद कई लोगों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए हैं और यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका सही आकलन किया जाना चाहिए. लेकिन अगर चुनाव आयोग पूर्ण तरीके से निष्पक्ष भी हो, तब भी जल्दबाजी में तैयार की गई मतदाता सूची में गंभीर गलतियां हो सकती हैं, खासकर तब जब कई नागरिक विशेष रूप से गरीब और वंचित वर्गों से आते हैं और जिनके पास सभी आवश्यक दस्तावेज नहीं होते जिन्हें वे सत्यापन के लिए पेश कर सकें. ऐसे में इस प्रक्रिया में वर्गों के आधार पर पक्षपात (Class Bias) का बड़ा खतरा मौजूद है.” चुनाव आयोग को अपने फैसले से किसी तरह का संदेह नहीं बनने देना चाहिए- सेन जल्दबाजी में की जा रही प्रक्रिया से लोगों के मताधिकार छिन जाने के खतरे पर बोलते हुए अर्थशास्त्र अमर्त्य सेन ने कहा, “अगर कुछ नागरिकों, विशेषकर वो जो देश के वंचित तबके से आते हैं, की आवाज को खत्म करने का लक्ष्य बनाकर यह प्रक्रिया की जा रही है, तो यह एक भयानक स्थिति हो सकती है. इसे पूरी तरह से टाल दिया जाना चाहिए और चुनाव आयोग को उन सभी संदेहों को भी गंभीरता से लेना चाहिए, जिन्हें कई निष्पक्ष सोच रखने वाले आलोचकों ने उठाया है.” उन्होंने कहा, “यह बेहद जरूरी है कि चुनाव आयोग अपने किसी भी फैसले से संदेह की कोई वजह न बनने दे और सुप्रीम कोर्ट को अपनी निगरानी की भूमिका सक्रिय और निष्पक्ष तरीके से निभानी चाहिए.” यह भी पढ़ेंः भारत पर अमेरिका का पहले राउंड का 25 परसेंट टैरिफ आज से लागू, ट्रंप बोले- 'आने लगे अरबों डॉलर'

नोबल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर टिप्पणी की है. अमर्त्य सेन ने बिहार एसआईआर के दौरान तेजी से तैयार की जा रही मतदाता सूची में गंभीर गलतियों की चेतावनी दी है.
द हिंदू को दिए इंटरव्यू में अर्थशास्त्री और नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा, “अगर चुनाव आयोग की ओर से इस प्रक्रिया को सही तरीके से किया जाता है, तो यह मतदाता सूची को दुरुस्त करने का एक अच्छा कदम हो सकता है. लेकिन अगर मौजूदा वोटर लिस्ट से गलतियों को हटाने की कोशिश में जल्दबाजी करने में और ज्यादा गलतियां जोड़ दी जाएं, तो इसका नतीजा बेहद खतरनाक हो सकता है.”
इस प्रक्रिया की शुरुआत से आयोग पर उठ रहे सवाल- सेन
चुनाव आयोग की ओर से पूरे देश में एसआईआर के जरिए वोटर लिस्ट अपडेट करने की कोशिश को समर्थन करने के सवाल पर सेन ने कहा, “इस प्रक्रिया को इतने कम समय में और किसी भी तरीके के पक्षपात की गंभीर संभावनाओं के साथ करने का निर्णय, चुनाव को पहले से भी कम निष्पक्ष बना सकता है. हालांकि, इस प्रक्रिया की शुरुआत के बाद कई लोगों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए हैं और यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका सही आकलन किया जाना चाहिए. लेकिन अगर चुनाव आयोग पूर्ण तरीके से निष्पक्ष भी हो, तब भी जल्दबाजी में तैयार की गई मतदाता सूची में गंभीर गलतियां हो सकती हैं, खासकर तब जब कई नागरिक विशेष रूप से गरीब और वंचित वर्गों से आते हैं और जिनके पास सभी आवश्यक दस्तावेज नहीं होते जिन्हें वे सत्यापन के लिए पेश कर सकें. ऐसे में इस प्रक्रिया में वर्गों के आधार पर पक्षपात (Class Bias) का बड़ा खतरा मौजूद है.”
चुनाव आयोग को अपने फैसले से किसी तरह का संदेह नहीं बनने देना चाहिए- सेन
जल्दबाजी में की जा रही प्रक्रिया से लोगों के मताधिकार छिन जाने के खतरे पर बोलते हुए अर्थशास्त्र अमर्त्य सेन ने कहा, “अगर कुछ नागरिकों, विशेषकर वो जो देश के वंचित तबके से आते हैं, की आवाज को खत्म करने का लक्ष्य बनाकर यह प्रक्रिया की जा रही है, तो यह एक भयानक स्थिति हो सकती है. इसे पूरी तरह से टाल दिया जाना चाहिए और चुनाव आयोग को उन सभी संदेहों को भी गंभीरता से लेना चाहिए, जिन्हें कई निष्पक्ष सोच रखने वाले आलोचकों ने उठाया है.”
उन्होंने कहा, “यह बेहद जरूरी है कि चुनाव आयोग अपने किसी भी फैसले से संदेह की कोई वजह न बनने दे और सुप्रीम कोर्ट को अपनी निगरानी की भूमिका सक्रिय और निष्पक्ष तरीके से निभानी चाहिए.”
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