नारायण बलि बनाम त्रिपिंडी श्राद्ध, पितृकर्म की दो रहस्यमयी विधियां! जानिए इसके बारे में

Narayan Bali and Tripindi Shraddha difference: पितरों का पर्व यानी पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. 7 सितंबर 2025, रविवार के दिन अगस्त ऋषि को तर्पण दिया गया. दूसरे दिन यानी 8 सितंबर 2025 सोमवार को प्रतिपदा श्राद्ध यानी पहला श्राद्ध है, जब लोग अपने पितरों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करेंगे.  भारतीय संस्कृति में पितृकर्म और श्राद्ध संस्कारों का विशेष महत्व होता है. इन कर्मों का उल्लेख ऋग्वेद, गरुड़ पुराण, धर्मसिंधु, स्मृति ग्रंथ और भविष्य पुराण में देखने को मिलता है. श्राद्ध की दो प्रमुख विधियां हैं, नारायणी बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध. दोनों विधियां पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए है. लेकिन दोनों का उद्देश्य और प्रक्रिया एक दूसरे से काफी भिन्न है.  नारायण बलि क्या होती है?पितृ पक्ष से जुड़ा एक धार्मिक अनुष्ठान जो पितृदोष निवारण और अकाल मृत्यु के कारण मरे हुए लोगों के लिए किया जाता है. अगर किसी की मृत्यु अकाल स्थिति, दुर्घटना, आत्महत्या, गर्भपात, हिंसक या असामान्य तरीके से होती है, तब आत्मा की शांति के लिए नारायण बलि अनुष्ठान को किया जाता है.  यह अनुष्ठान तीन दिनों का होता है, जिसमें गेहूं के आटे से बने कृत्रिम शरीर का प्रयोग कर अंतिम संस्कार किया जाता है. साथ ही मंत्रों के जरिए आत्माओं की अधूरी इच्छा को पूरा करके उन्हें शांति मिलती है.  नारायण बलि श्राद्ध कर्म मुख्य रूप से त्र्यंबकेश्वर (नासिक), सिद्धपुर (गुजरात), गया (बिहार) आदि तीर्थों पर किया जाता है. नारायण बलि का जिक्र गरुड़ पुराण के पूर्व खंड, प्रेत कल्प और धर्मसिंधु में उल्लेख किया गया है. इसके बिना पितृ दोष की निवृत्ति नहीं मानी जाती है.  त्रिपिंडी श्राद्ध क्या है?त्रिपिंडी श्राद्ध का मतलब पिछली तीन पीढ़ियों के पूर्वजों का पिंडदान करना. त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतीकात्मक मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके विधिवत पूजन किया जाता है. माना जाता है कि पूर्वज की आत्मा असंतुष्ट होती है तो वो अपने आने वाली पीढ़ियों को परेशान करती है. ऐसे में इन आत्माओं को शांत करने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है.  महाभारत के अनुशासन पर्व और गया महात्मय में त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व बताया गया है. इस कर्म को न करने पर पितर नाराज हो सकते हैं.  नारायण बलि और त्रिपिंडि श्राद्ध में मुख्य अंतर नारायण बलि- अकाल या असामान्य मौत और पितृदोष शांति के लिए कराया जाता है. त्रिपिंडि श्राद्ध- सामान्य पितरों की तृप्ति और मोक्ष के लिए किया जाता है. नारायण बलि- खास तीर्थ स्थान और प्रायश्चित विधि पर आधारित होती है. त्रिपिंडि श्राद्ध- नियमित श्राद्ध परंपरा का हिस्सा है. नारायण बलि- जीवत वंशजों की समस्याओं को खत्म करने का उपाय है. त्रिपिंडि श्राद्ध- पितरों के लिए आवश्यक कर्म माना गया है. Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

Sep 7, 2025 - 17:30
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नारायण बलि बनाम त्रिपिंडी श्राद्ध, पितृकर्म की दो रहस्यमयी विधियां! जानिए इसके बारे में

Narayan Bali and Tripindi Shraddha difference: पितरों का पर्व यानी पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. 7 सितंबर 2025, रविवार के दिन अगस्त ऋषि को तर्पण दिया गया. दूसरे दिन यानी 8 सितंबर 2025 सोमवार को प्रतिपदा श्राद्ध यानी पहला श्राद्ध है, जब लोग अपने पितरों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करेंगे. 

भारतीय संस्कृति में पितृकर्म और श्राद्ध संस्कारों का विशेष महत्व होता है. इन कर्मों का उल्लेख ऋग्वेद, गरुड़ पुराण, धर्मसिंधु, स्मृति ग्रंथ और भविष्य पुराण में देखने को मिलता है. श्राद्ध की दो प्रमुख विधियां हैं, नारायणी बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध. दोनों विधियां पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए है. लेकिन दोनों का उद्देश्य और प्रक्रिया एक दूसरे से काफी भिन्न है. 

नारायण बलि क्या होती है?
पितृ पक्ष से जुड़ा एक धार्मिक अनुष्ठान जो पितृदोष निवारण और अकाल मृत्यु के कारण मरे हुए लोगों के लिए किया जाता है. अगर किसी की मृत्यु अकाल स्थिति, दुर्घटना, आत्महत्या, गर्भपात, हिंसक या असामान्य तरीके से होती है, तब आत्मा की शांति के लिए नारायण बलि अनुष्ठान को किया जाता है. 

यह अनुष्ठान तीन दिनों का होता है, जिसमें गेहूं के आटे से बने कृत्रिम शरीर का प्रयोग कर अंतिम संस्कार किया जाता है. साथ ही मंत्रों के जरिए आत्माओं की अधूरी इच्छा को पूरा करके उन्हें शांति मिलती है. 

नारायण बलि श्राद्ध कर्म मुख्य रूप से त्र्यंबकेश्वर (नासिक), सिद्धपुर (गुजरात), गया (बिहार) आदि तीर्थों पर किया जाता है. नारायण बलि का जिक्र गरुड़ पुराण के पूर्व खंड, प्रेत कल्प और धर्मसिंधु में उल्लेख किया गया है. इसके बिना पितृ दोष की निवृत्ति नहीं मानी जाती है. 

त्रिपिंडी श्राद्ध क्या है?
त्रिपिंडी श्राद्ध का मतलब पिछली तीन पीढ़ियों के पूर्वजों का पिंडदान करना. त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की प्रतीकात्मक मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके विधिवत पूजन किया जाता है. माना जाता है कि पूर्वज की आत्मा असंतुष्ट होती है तो वो अपने आने वाली पीढ़ियों को परेशान करती है. ऐसे में इन आत्माओं को शांत करने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है. 

महाभारत के अनुशासन पर्व और गया महात्मय में त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व बताया गया है. इस कर्म को न करने पर पितर नाराज हो सकते हैं. 

नारायण बलि और त्रिपिंडि श्राद्ध में मुख्य अंतर

नारायण बलि- अकाल या असामान्य मौत और पितृदोष शांति के लिए कराया जाता है. 
त्रिपिंडि श्राद्ध- सामान्य पितरों की तृप्ति और मोक्ष के लिए किया जाता है. 
नारायण बलि- खास तीर्थ स्थान और प्रायश्चित विधि पर आधारित होती है. 
त्रिपिंडि श्राद्ध- नियमित श्राद्ध परंपरा का हिस्सा है. 
नारायण बलि- जीवत वंशजों की समस्याओं को खत्म करने का उपाय है. 
त्रिपिंडि श्राद्ध- पितरों के लिए आवश्यक कर्म माना गया है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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