कॉफी बनाने के बाद आप भी फेंक देती हैं उसके बीन्स, इन बीमारी का कर सकते हैं इलाज

सुबह उठते ही लोग सबसे पहले कॉफी पीते हैं. एक कप कॉफी से दिन की शुरुआत फ्रेश और एनर्जेटिक होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं, जिस कॉफी ग्राउंड (बीन्स का बचा हिस्सा) को आप कॉफी बनाने के बाद डस्टबिन में फेंक देती हैं, वही फ्यूचर में अल्जाइमर, पार्किंसंस और हंटिंग्टन जैसी डेंजरस ब्रेन डिजीज का इलाज बन सकता है. चलिए आपको बताते हैं इसके बारे में विस्तार से.  यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की अमेजिंग रिसर्च अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास एट एल पासो के साइंटिस्ट्स ने कॉफी ग्राउंड्स से खास तरह के छोटे पार्टिकल्स बनाए हैं. इन्हें कहते हैं कार्बन क्वांटम डॉट्स (CQDs). जब ये डॉट्स कॉफी में पाए जाने वाले नेचुरल सब्सटेंस कैफिक एसिड से बनाए जाते हैं, तो इन्हें कहा जाता है CACQDs. ये पार्टिकल्स ब्रेन को डैमेज से बचाने में बहुत हेल्पफुल पाए गए. ब्रेन डिजीज क्यों होती हैं? अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी डिजीज में ब्रेन सेल्स यानी न्यूरॉन्स धीरे-धीरे मरने लगते हैं. एक रीज़न है फ्री रेडिकल्स, जो न्यूरॉन्स को डैमेज करते हैं. दूसरा रीजन है एमीलॉइड प्रोटीन, जो क्लंप बनाकर ब्रेन की एक्टिविटी ब्लॉक कर देते हैं. कॉफी के बचे हिस्से से कैसे होता है मैजिक? रिसर्चर्स ने CACQDs को लैब में टेस्ट ट्यूब्स, लिविंग सेल्स और पेस्टीसाइड पेराक्वाट से बने पार्किंसंस मॉडल पर टेस्ट किया. रिजल्ट बहुत पॉजिटिव था. CACQDs ने फ्री रेडिकल्स को न्यूट्रल कर दिया और एमीलॉइड प्रोटीन को क्लंप बनने से रोका. इसके अलावा कोई साइड इफेक्ट भी नहीं दिखा.  ब्लड ब्रेन बैरियर क्रॉस करना ज्यादातर मेडिसिन ब्रेन तक रीच ही नहीं कर पाती, क्योंकि ब्लड-ब्रेन बैरियर उन्हें ब्लॉक कर देता है. लेकिन कैफिक एसिड-बेस्ड ये पार्टिकल्स आसानी से इस बैरियर को क्रॉस करके ब्रेन तक पहुंच जाते हैं. मतलब ये सीधे वही काम करते हैं, जहां डिजीज़ की जड़ होती है. ईजी और ईको-फ्रेंडली प्रोसेस CACQDs बनाने का तरीका सिंपल और एन्वायरनमेंट-फ्रेंडली है. रिसर्चर्स ने इस्तेमाल किए हुए कॉफी बीन्स को 200 डिग्री सेल्सियस पर 4 घंटे तक हीट किया. इससे कार्बन पार्टिकल्स बन गए, जिनसे CACQDs तैयार हो गए. इसमें कोई टॉक्सिक केमिकल नहीं, प्रोसेस लो कॉस्ट है और कॉफी बीन्स हर जगह अवेलेबल हैं. यानी जो चीज नॉर्मली वेस्ट में फेंकी जाती है, वही फ्यूचर में मेडिसिन बन सकती है. क्यों गेम-चेंजर है यह रिसर्च?  आज अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी डिजीज़ का इलाज सिर्फ सिंप्टम्स कंट्रोल करने तक लिमिटेड है और बहुत एक्सपेंसिव भी है. अगर CACQDs को मेडिसिन में बदल दिया गया तो ये लो-कॉस्ट, इफेक्टिव और साइड-इफेक्ट-फ्री प्रिवेंशन टूल बन सकता है. आने वाले टाइम में एक सिंपल पिल ही इन इनक्युरेबल डिजीज से बचा सकती है. नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ हेल्थ के समर्थन से यह स्टडी नई होप देती है. एक दिन वही कॉफी ग्राउंड्स, जिन्हें हम बिना सोचे फेंक देते हैं, लाखों लोगों को ब्रेन डिजीज से बचा सकते हैं. इसे भी पढ़ें- स्टेथेस्कोप में भी हो गई AI की एंट्री, सिर्फ 15 सेकेंड में पता लगेंगी इतनी बीमारियां

Sep 1, 2025 - 15:30
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कॉफी बनाने के बाद आप भी फेंक देती हैं उसके बीन्स, इन बीमारी का कर सकते हैं इलाज

सुबह उठते ही लोग सबसे पहले कॉफी पीते हैं. एक कप कॉफी से दिन की शुरुआत फ्रेश और एनर्जेटिक होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं, जिस कॉफी ग्राउंड (बीन्स का बचा हिस्सा) को आप कॉफी बनाने के बाद डस्टबिन में फेंक देती हैं, वही फ्यूचर में अल्जाइमर, पार्किंसंस और हंटिंग्टन जैसी डेंजरस ब्रेन डिजीज का इलाज बन सकता है. चलिए आपको बताते हैं इसके बारे में विस्तार से. 

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की अमेजिंग रिसर्च

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास एट एल पासो के साइंटिस्ट्स ने कॉफी ग्राउंड्स से खास तरह के छोटे पार्टिकल्स बनाए हैं. इन्हें कहते हैं कार्बन क्वांटम डॉट्स (CQDs). जब ये डॉट्स कॉफी में पाए जाने वाले नेचुरल सब्सटेंस कैफिक एसिड से बनाए जाते हैं, तो इन्हें कहा जाता है CACQDs. ये पार्टिकल्स ब्रेन को डैमेज से बचाने में बहुत हेल्पफुल पाए गए.

ब्रेन डिजीज क्यों होती हैं?

  • अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी डिजीज में ब्रेन सेल्स यानी न्यूरॉन्स धीरे-धीरे मरने लगते हैं.
  • एक रीज़न है फ्री रेडिकल्स, जो न्यूरॉन्स को डैमेज करते हैं.
  • दूसरा रीजन है एमीलॉइड प्रोटीन, जो क्लंप बनाकर ब्रेन की एक्टिविटी ब्लॉक कर देते हैं.

कॉफी के बचे हिस्से से कैसे होता है मैजिक?

रिसर्चर्स ने CACQDs को लैब में टेस्ट ट्यूब्स, लिविंग सेल्स और पेस्टीसाइड पेराक्वाट से बने पार्किंसंस मॉडल पर टेस्ट किया. रिजल्ट बहुत पॉजिटिव था. CACQDs ने फ्री रेडिकल्स को न्यूट्रल कर दिया और एमीलॉइड प्रोटीन को क्लंप बनने से रोका. इसके अलावा कोई साइड इफेक्ट भी नहीं दिखा.

 ब्लड ब्रेन बैरियर क्रॉस करना

ज्यादातर मेडिसिन ब्रेन तक रीच ही नहीं कर पाती, क्योंकि ब्लड-ब्रेन बैरियर उन्हें ब्लॉक कर देता है. लेकिन कैफिक एसिड-बेस्ड ये पार्टिकल्स आसानी से इस बैरियर को क्रॉस करके ब्रेन तक पहुंच जाते हैं. मतलब ये सीधे वही काम करते हैं, जहां डिजीज़ की जड़ होती है.

ईजी और ईको-फ्रेंडली प्रोसेस

CACQDs बनाने का तरीका सिंपल और एन्वायरनमेंट-फ्रेंडली है. रिसर्चर्स ने इस्तेमाल किए हुए कॉफी बीन्स को 200 डिग्री सेल्सियस पर 4 घंटे तक हीट किया. इससे कार्बन पार्टिकल्स बन गए, जिनसे CACQDs तैयार हो गए. इसमें कोई टॉक्सिक केमिकल नहीं, प्रोसेस लो कॉस्ट है और कॉफी बीन्स हर जगह अवेलेबल हैं. यानी जो चीज नॉर्मली वेस्ट में फेंकी जाती है, वही फ्यूचर में मेडिसिन बन सकती है.

क्यों गेम-चेंजर है यह रिसर्च? 

आज अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी डिजीज़ का इलाज सिर्फ सिंप्टम्स कंट्रोल करने तक लिमिटेड है और बहुत एक्सपेंसिव भी है. अगर CACQDs को मेडिसिन में बदल दिया गया तो ये लो-कॉस्ट, इफेक्टिव और साइड-इफेक्ट-फ्री प्रिवेंशन टूल बन सकता है. आने वाले टाइम में एक सिंपल पिल ही इन इनक्युरेबल डिजीज से बचा सकती है. नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ हेल्थ के समर्थन से यह स्टडी नई होप देती है. एक दिन वही कॉफी ग्राउंड्स, जिन्हें हम बिना सोचे फेंक देते हैं, लाखों लोगों को ब्रेन डिजीज से बचा सकते हैं.

इसे भी पढ़ें- स्टेथेस्कोप में भी हो गई AI की एंट्री, सिर्फ 15 सेकेंड में पता लगेंगी इतनी बीमारियां

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