Gen Z और Millennials लड़कियों में क्यों दिख रहा है मांओं से ज्यादा टॉक्सिक PMS, क्या जिम्मेदार है मॉडर्न लाइफस्टाइल
ऑफिस का तनाव लगातार बदलती लाइफस्टाइल और हसल कल्‍चर यानी हर वक्त भागदौड़ में लगे रहना, इसका असर युवा पीढ़ी की सेहत पर साफ दिखाई दे रहा है. खासकर महिलाओं में इसका सीधा असर पीरियड से पहले आने वाले प्री-मेंस्ट्रूअल सिंड्रोम पर पड़ रहा है. डॉक्टरों का भी मानना है कि आज की पीढ़ी यानी जेन जी और मिलेनियल्स को अपनी मांओं की तुलना में ज्यादा गंभीर और टॉक्सिक PMS का सामना करना पड़ रहा है. क्या है PMS और क्यों बढ़ रही है दिक्कत PMS पीरियड से करीब 1 से 2 हफ्ते पहले शुरू होता है. इसमें मूड स्विंग्स, थकान, चिड़चिड़ापन, भूख और नींद में बदलाव जैसी दिक्कत के सामने आती है. सर्वे बताते हैं कि रिप्रोडक्टिव एज की लगभग 75% महिलाएं इससे प्रभावित होती है. लेकिन हर पांच में से एक महिला को यह इतना गंभीर होता है कि इससे रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है. हसल कल्चर और स्ट्रेस की मार डॉक्टर मानते हैं कि लगातार काम, देर रात तक जगना और हर वक्त परफॉर्म करने का दबाव महिलाओं के हार्मोनल बैलेंस को बिगाड़ देता है. कई एक्सपर्ट्स यह भी बताते हैं कि स्ट्रेस बढ़ने पर शरीर का कॉर्टिसोल लेवल ऊपर रहता है, जिससे नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है और PMS के लक्षण और ज्यादा तेज हो जाते हैं. इसके अलावा हाई कॉर्टिसोल का सीधा असर एस्ट्रोजन और प्रोटेस्टेरोन पर पड़ता है, जिसकी वजह से PMS ज्यादा परेशान करने लगता है. वर्कप्लेस और सोशल प्रेशर कई महिलाएं मानती है कि वर्कप्लेस पर PMS को गंभीरता से नहीं लिया जाता है. इसे लेकर एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कई बार दिक्कत होने पर काम से छुट्टी लेना कमजोरी माना जाता है. ऐसे में महिलाएं लक्षणों को दबाती रहती है और हालात और बिगड़ जाते हैं. एक्सपर्ट्स यह भी कहते हैं कि समय रहते ध्यान न देने पर यह PMDD यानी प्रीमेंस्ट्रूअल डिस्फोर‍िक डिसऑर्डर जैसी गंभीर स्थिति में बदल सकता है. वहीं माओं की तुलना में नई पीढ़ी ज्यादा खुलकर PMS पर बात तो कर रही है, लेकिन लाइफस्टाइल और स्ट्रेस की वजह से वही लक्षण अब ज्यादा गंभीर नजर आ रहे हैं. ये भी पढ़ें- क्या एक बटन दबाते ही किसी देश में बंद हो जाते हैं फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म, बैन के बाद क्या होता है प्रॉसेस?

ऑफिस का तनाव लगातार बदलती लाइफस्टाइल और हसल कल्चर यानी हर वक्त भागदौड़ में लगे रहना, इसका असर युवा पीढ़ी की सेहत पर साफ दिखाई दे रहा है. खासकर महिलाओं में इसका सीधा असर पीरियड से पहले आने वाले प्री-मेंस्ट्रूअल सिंड्रोम पर पड़ रहा है. डॉक्टरों का भी मानना है कि आज की पीढ़ी यानी जेन जी और मिलेनियल्स को अपनी मांओं की तुलना में ज्यादा गंभीर और टॉक्सिक PMS का सामना करना पड़ रहा है.
क्या है PMS और क्यों बढ़ रही है दिक्कत
PMS पीरियड से करीब 1 से 2 हफ्ते पहले शुरू होता है. इसमें मूड स्विंग्स, थकान, चिड़चिड़ापन, भूख और नींद में बदलाव जैसी दिक्कत के सामने आती है. सर्वे बताते हैं कि रिप्रोडक्टिव एज की लगभग 75% महिलाएं इससे प्रभावित होती है. लेकिन हर पांच में से एक महिला को यह इतना गंभीर होता है कि इससे रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है.
हसल कल्चर और स्ट्रेस की मार
डॉक्टर मानते हैं कि लगातार काम, देर रात तक जगना और हर वक्त परफॉर्म करने का दबाव महिलाओं के हार्मोनल बैलेंस को बिगाड़ देता है. कई एक्सपर्ट्स यह भी बताते हैं कि स्ट्रेस बढ़ने पर शरीर का कॉर्टिसोल लेवल ऊपर रहता है, जिससे नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है और PMS के लक्षण और ज्यादा तेज हो जाते हैं. इसके अलावा हाई कॉर्टिसोल का सीधा असर एस्ट्रोजन और प्रोटेस्टेरोन पर पड़ता है, जिसकी वजह से PMS ज्यादा परेशान करने लगता है.
वर्कप्लेस और सोशल प्रेशर
कई महिलाएं मानती है कि वर्कप्लेस पर PMS को गंभीरता से नहीं लिया जाता है. इसे लेकर एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कई बार दिक्कत होने पर काम से छुट्टी लेना कमजोरी माना जाता है. ऐसे में महिलाएं लक्षणों को दबाती रहती है और हालात और बिगड़ जाते हैं. एक्सपर्ट्स यह भी कहते हैं कि समय रहते ध्यान न देने पर यह PMDD यानी प्रीमेंस्ट्रूअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर जैसी गंभीर स्थिति में बदल सकता है. वहीं माओं की तुलना में नई पीढ़ी ज्यादा खुलकर PMS पर बात तो कर रही है, लेकिन लाइफस्टाइल और स्ट्रेस की वजह से वही लक्षण अब ज्यादा गंभीर नजर आ रहे हैं.
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