जातिगणना जरूरी या मजबूरी ? By Shyamanand Mishra
जाति गणना इतना ही जरुरी था तो स्वतंत्र भारत में जाति गणना आज तक क्यों नहीं कराया गया। यदि वोट बैंक के लिए नेताओं को जाती गणना करना मजबूरी है तो फिर नेताओं को जाति प्रथा को मिटाने वाला नारा को बंद करना चाहिए। सरकारों ने जाति प्रथा खत्म करने के लिए मंदिरों में दलित पुजारी की नियुक्ति, अंतर जाति विवाह को बढ़ावा, जाति सूचक संबोधन पर कानूनी प्रक्रिया, विद्यालय एवं मध्यान भोजन एवं पोशाक एक समान आदि प्रथा, जाति प्रथा को मिटाने के लिए ही किया गया है। दूसरी तरफ नेताओं ने संविधान को अनदेखा कर जाति प्रथा को गहरा करने के लिए जाति सम्मेलन करना जाती नेताओं से पहचान बनाना जाति के नाम पर वोट मांगना अपना अधिकार समझ लिया है। इस गिरगिट वाले रंग बदल चेहरा छुपाने के लिए दलित अल्पसंख्यक जाति गणना का नकाब डाल रखा है। सच्चाई यह है कि नेता सच में दलित अल्पसंख्यक गरीबों का हितैसी होता तो आज 7 दशक तक गरीब अशिक्षित नजर नहीं आता। यदि नेता ऐसा कर देता तो उनका वोट बैंक खत्म हो जाता। नेता गरीबों को रूपयो का लालच देकर तो अशिक्षित से उल्टा पुल्टा बातें बता वोट ठगता है। संविधान की विडंबना है एक अशिक्षित अंगूठा छाप नेता एक शिक्षित IAS पदाधिकारी पर रौब जमाता है। यही शिक्षित समाज का अपमान है। जो एक नेता की साजिश है।
आज जो नेता जाति गणना पर अपना पीठ ठोक रहा है वही नेता कल मुस्लिम समाज में जाति गणना पर हाय तौबा मचाएगा। क्योंकि जाति गणना से मुस्लिम में भी विभाजन होगा। तब वे वोट बैंक टूटता देख बेचैन हो जाएंगे। नेता ने जनता को अंग्रेजों के जैसा फूट डालो शासन करो की नीति से जाति गणना का समर्थन कर रखा है। जबकि देश हित में जाति गणना से जरूरी अमीरी - गरीबी शिक्षित - अशिक्षित वर्गों की गणना जरूरी है जो सभी वर्गों में पैठ जमाया है।
संविधान की दुहाई देने वाले राहुल गांधी संविधान से हटकर आरक्षण को 50% का दायरा तोड़ना चाह रहे हैं। मेरा मानना है यदि आरक्षण बढ़ाने से देश का भला हो जाए तो उसे संविधान को बिना परवाह किए 100% कर दिया जाए। नेहरू परिवार के आरक्षण से राहुल गांधी नेता तो बन गया परंतु देश का भला नहीं हो पाया ऐसा जाति गणना आरक्षण अल्पसंख्यक, दलित, हितैषी उनके हित के लिए नहीं सिर्फ अपना वोट बैंक हित के लिए बेचैन है।
श्यामानंद मिश्र
श्याम सिद्धप मधुबनी
बिहार
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