1971 से लेकर कारगिल और पुलवामा तक... कभी वायुसेना की रीढ़ था MiG-21, विदाई से पहले IAF चीफ ने उड़ाया फाइटर जेट

भारतीय वायुसेना का सबसे पुराना और बहादुर योद्धा मिग-21 अगले महीने औपचारिक रूप से रिटायर हो रहा है. करीब छह दशकों तक आसमान की रक्षा करने वाला यह लड़ाकू विमान कभी "वायु सेना की रीढ़" कहलाता था. मिग-21 ने 1971 के युद्ध से लेकर कई अहम अभियानों में भारत की जीत का परचम लहराया. लेकिन बढ़ती तकनीकी चुनौतियों और हादसों ने इसके सफर पर पूर्ण विराम लगा दिया है. अब यह विमान भारतीय रक्षा इतिहास का गौरवशाली अध्याय बनकर हमेशा याद किया जाएगा. सोमवार (25 अगस्त, 2025) को मिग-21 लड़ाकू विमानों ने बीकानेर के नाल स्थित वायुसैनिक अड्डे पर अपनी अंतिम उड़ान भरी. इन विमानों को 26 सितंबर को चंडीगढ़ में आयोजित औपचारिक रिटायरमेंट समारोह में अंतिम विदाई दी जाएगी. वायुसेना प्रमुख ने भरी मिग की अंतिम उड़ान मिग-21 की प्रतीकात्मक विदाई की बेला पर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने 18-19 अगस्त को नाल से मिग-21 में उड़ान भरी. यह 62 वर्षों तक वायुसेना की सेवा करने वाले रूसी मूल के लड़ाकू विमान पर प्रशिक्षित पायलट की कई पीढ़ियों के लिए एक भावुक क्षण था. एयर चीफ मार्शल सिंह ने अपनी उड़ान के बाद कहा- 'मिग-21 वर्ष 1960 के दशक में अपनी शुरुआत से ही भारतीय वायुसेना का सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमान रहा है और हम अब भी इसे इस्तेमाल कर रहे हैं. यह इतिहास में सबसे अधिक, बड़े पैमाने पर निर्मित किए गए सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों में से एक है, जिसके 11,000 से ज्यादा विमान 60 से अधिक देशों में इस्तेमाल किए जा चुके हैं.' VIDEO | Chief of Air Staff Air Chief Marshal Amar Preet Singh takes a sortie in MiG-21 aircraft in Bikaner. The IAF is all set to bid adieu MiG-21 aircraft from operation roles on September 26.#IndianAirForce #mig21 pic.twitter.com/7t9NqCszk7 — Press Trust of India (@PTI_News) August 25, 2025 मिग-21 की भारत में शुरुआत1963 में भारत ने मिग-21 विमानों की पहली खेप हासिल की थी. इस दौरान कुल 13 विमान लाए गए थे. उस समय वायुसेना को एक ऐसे हाई-एल्टीट्यूड इंटरसेप्टर की तलाश थी जो अमेरिकी U-2 स्पाई प्लेन जैसे विमानों का मुकाबला कर सके. यही कारण था कि भारत ने मिग-21 खरीदा. मिग-21 केवल इंटरसेप्टर तक सीमित नहीं रहा. समय के साथ इसकी भूमिका ग्राउंड अटैक, फाइटर टोही मिशन, एयर डिफेंस और यहां तक कि नए पायलटों के प्रशिक्षण तक पहुंच गई. हालांकि प्रशिक्षण इसकी मूल डिजाइन का हिस्सा नहीं था. शुरुआत में मिग-21 उड़ाने की इजाजत सिर्फ भारतीय वायुसेना के सबसे अनुभवी पायलटों को दी गई. इसका कारण था इसकी चुनौतीपूर्ण उड़ान क्षमताएं. विमान का छोटा आकार, सीमित कॉकपिट दृश्यता और 300 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की लैंडिंग स्पीड इसे खासकर नए पायलटों के लिए बेहद कठिन बनाती थी. कई युद्धों में मिग-21 ने दिया ऐतिहासिक योगदानकई युद्धों में मिग-21 का योगदान ऐतिहासिक रहा. इस विमान ने 1965 के युद्ध में भाग लिया था और 1971 की लड़ाई में विशेष रूप से 14 दिसंबर को ढाका में राज्यपाल के आवास पर हुए हमले में अहम भूमिका निभाई थी. राज्यपाल ने अगले दिन इस्तीफा दे दिया और 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया और उसके 93,000 सैनिकों ने हथियार डाल दिए.  इसके बाद 1999 में ऑपरेशन सफेद सागर के तहत कारगिल में भी इस विमान ने करामात दिखाई जब मिग-21 ने भारतीय इलाके में घुसपैठ कर रहे एक पाकिस्तानी अटलांटिक विमान को मार गिराया.' 2010 के दशक में मिग-21 ने अपनी ताकत तब दिखाई जब भारत ने 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए. वहीं 2020 के दशक में भी यह विमान सक्रिय रहा और लद्दाख में चीन के साथ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर गश्त करते हुए अपनी अहम भूमिका निभाई.दशकों तक रहा वायुसेना की रीढ़कठिनाइयों के बावजूद मिग-21 भारतीय वायुसेना का पसंदीदा विमान बना रहा. इतना ही नहीं, यह वायुसेना की रीढ़ तब तक बना रहा जब तक कि 2000 के दशक के मध्य में रूस निर्मित सुखोई Su-30MKI को बेड़े में शामिल नहीं कर लिया गया. वर्षों के दौरान मिग-21 को लगातार आधुनिक हथियारों और एवियोनिक्स से अपग्रेड किया गया. इसने इसे "सिर्फ एक फाइटर जेट" से कहीं ज्यादा बना दिया. मिग-21 सिर्फ एक फाइटर जेट नहीं था, बल्कि यह भारत-रूस के मजबूत सैन्य संबंधों का प्रतीक भी बन गया. यह रिश्ता भी मिग-21 की तरह ही दशकों तक कायम रहा और आज भी उतना ही मजबूत है.मिग-21 की कीमत 1960 के दशक में मिग-21 की सटीक कीमत क्या थी यह तो साफ नहीं है, लेकिन यह विमान बड़े पैमाने पर उत्पादन की वजह से बेहद सस्ता माना जाता था. इसकी लागत उस समय के पश्चिमी लड़ाकू विमानों जैसे F-4 फैंटम से काफी कम थी. इसी दौर में इजरायली खुफिया एजेंसी ने एक इराकी पायलट को उसके मिग-21 के बदले 3 लाख डॉलर दिए थे. इससे साफ होता है कि उस समय इस विमान को परीक्षण के लिए हासिल करने की कितनी अहमियत थी.

Aug 26, 2025 - 20:30
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1971 से लेकर कारगिल और पुलवामा तक... कभी वायुसेना की रीढ़ था MiG-21, विदाई से पहले IAF चीफ ने उड़ाया फाइटर जेट

भारतीय वायुसेना का सबसे पुराना और बहादुर योद्धा मिग-21 अगले महीने औपचारिक रूप से रिटायर हो रहा है. करीब छह दशकों तक आसमान की रक्षा करने वाला यह लड़ाकू विमान कभी "वायु सेना की रीढ़" कहलाता था. मिग-21 ने 1971 के युद्ध से लेकर कई अहम अभियानों में भारत की जीत का परचम लहराया. लेकिन बढ़ती तकनीकी चुनौतियों और हादसों ने इसके सफर पर पूर्ण विराम लगा दिया है. अब यह विमान भारतीय रक्षा इतिहास का गौरवशाली अध्याय बनकर हमेशा याद किया जाएगा. सोमवार (25 अगस्त, 2025) को मिग-21 लड़ाकू विमानों ने बीकानेर के नाल स्थित वायुसैनिक अड्डे पर अपनी अंतिम उड़ान भरी. इन विमानों को 26 सितंबर को चंडीगढ़ में आयोजित औपचारिक रिटायरमेंट समारोह में अंतिम विदाई दी जाएगी.

वायुसेना प्रमुख ने भरी मिग की अंतिम उड़ान 
मिग-21 की प्रतीकात्मक विदाई की बेला पर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने 18-19 अगस्त को नाल से मिग-21 में उड़ान भरी. यह 62 वर्षों तक वायुसेना की सेवा करने वाले रूसी मूल के लड़ाकू विमान पर प्रशिक्षित पायलट की कई पीढ़ियों के लिए एक भावुक क्षण था. एयर चीफ मार्शल सिंह ने अपनी उड़ान के बाद कहा- 'मिग-21 वर्ष 1960 के दशक में अपनी शुरुआत से ही भारतीय वायुसेना का सबसे शक्तिशाली लड़ाकू विमान रहा है और हम अब भी इसे इस्तेमाल कर रहे हैं. यह इतिहास में सबसे अधिक, बड़े पैमाने पर निर्मित किए गए सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों में से एक है, जिसके 11,000 से ज्यादा विमान 60 से अधिक देशों में इस्तेमाल किए जा चुके हैं.'

मिग-21 की भारत में शुरुआत
1963 में भारत ने मिग-21 विमानों की पहली खेप हासिल की थी. इस दौरान कुल 13 विमान लाए गए थे. उस समय वायुसेना को एक ऐसे हाई-एल्टीट्यूड इंटरसेप्टर की तलाश थी जो अमेरिकी U-2 स्पाई प्लेन जैसे विमानों का मुकाबला कर सके. यही कारण था कि भारत ने मिग-21 खरीदा. मिग-21 केवल इंटरसेप्टर तक सीमित नहीं रहा. समय के साथ इसकी भूमिका ग्राउंड अटैक, फाइटर टोही मिशन, एयर डिफेंस और यहां तक कि नए पायलटों के प्रशिक्षण तक पहुंच गई. हालांकि प्रशिक्षण इसकी मूल डिजाइन का हिस्सा नहीं था. शुरुआत में मिग-21 उड़ाने की इजाजत सिर्फ भारतीय वायुसेना के सबसे अनुभवी पायलटों को दी गई. इसका कारण था इसकी चुनौतीपूर्ण उड़ान क्षमताएं. विमान का छोटा आकार, सीमित कॉकपिट दृश्यता और 300 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की लैंडिंग स्पीड इसे खासकर नए पायलटों के लिए बेहद कठिन बनाती थी.

कई युद्धों में मिग-21 ने दिया ऐतिहासिक योगदान
कई युद्धों में मिग-21 का योगदान ऐतिहासिक रहा. इस विमान ने 1965 के युद्ध में भाग लिया था और 1971 की लड़ाई में विशेष रूप से 14 दिसंबर को ढाका में राज्यपाल के आवास पर हुए हमले में अहम भूमिका निभाई थी. राज्यपाल ने अगले दिन इस्तीफा दे दिया और 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया और उसके 93,000 सैनिकों ने हथियार डाल दिए.  इसके बाद 1999 में ऑपरेशन सफेद सागर के तहत कारगिल में भी इस विमान ने करामात दिखाई जब मिग-21 ने भारतीय इलाके में घुसपैठ कर रहे एक पाकिस्तानी अटलांटिक विमान को मार गिराया.' 2010 के दशक में मिग-21 ने अपनी ताकत तब दिखाई जब भारत ने 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए. वहीं 2020 के दशक में भी यह विमान सक्रिय रहा और लद्दाख में चीन के साथ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर गश्त करते हुए अपनी अहम भूमिका निभाई.

दशकों तक रहा वायुसेना की रीढ़
कठिनाइयों के बावजूद मिग-21 भारतीय वायुसेना का पसंदीदा विमान बना रहा. इतना ही नहीं, यह वायुसेना की रीढ़ तब तक बना रहा जब तक कि 2000 के दशक के मध्य में रूस निर्मित सुखोई Su-30MKI को बेड़े में शामिल नहीं कर लिया गया. वर्षों के दौरान मिग-21 को लगातार आधुनिक हथियारों और एवियोनिक्स से अपग्रेड किया गया. इसने इसे "सिर्फ एक फाइटर जेट" से कहीं ज्यादा बना दिया. मिग-21 सिर्फ एक फाइटर जेट नहीं था, बल्कि यह भारत-रूस के मजबूत सैन्य संबंधों का प्रतीक भी बन गया. यह रिश्ता भी मिग-21 की तरह ही दशकों तक कायम रहा और आज भी उतना ही मजबूत है.

मिग-21 की कीमत 
1960 के दशक में मिग-21 की सटीक कीमत क्या थी यह तो साफ नहीं है, लेकिन यह विमान बड़े पैमाने पर उत्पादन की वजह से बेहद सस्ता माना जाता था. इसकी लागत उस समय के पश्चिमी लड़ाकू विमानों जैसे F-4 फैंटम से काफी कम थी. इसी दौर में इजरायली खुफिया एजेंसी ने एक इराकी पायलट को उसके मिग-21 के बदले 3 लाख डॉलर दिए थे. इससे साफ होता है कि उस समय इस विमान को परीक्षण के लिए हासिल करने की कितनी अहमियत थी.

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