महिलाओं को ज्यादा होता है कैंसर या मर्दों को? डराने वाली है यह स्टडी
कैंसर का खतरा पुरुषों और महिलाओं दोनों में अलग है और यह सिर्फ शरीर की संरचना तक सीमित नहीं है. लाइफस्टाइल, हार्मोनल प्रभाव, जेनेटिक और सोशल-इकोनॉमिक रीजन भी इसमें अहम भूमिका निभाते हैं. आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं. ग्लोबल डाटा पुरुष बनाम महिलाएं ग्लोबल आंकड़े दिखाते हैं कि पुरुषों में कैंसर की कुल घटनाएं महिलाओं की तुलना में ज्यादा हैं. 2022 में पुरुषों में कैंसर के मामले 10.6 मिलियन थे, जबकि महिलाओं में यह 9.3 मिलियन था. हालांकि, कुछ विशेष प्रकार के कैंसर महिलाओं में ज्यादा पाए जाते हैं. इनमें ब्रेस्ट कैंसर और लिवर कैंसर आदि शामिल हैं. वहीं, पुरुषों में लंग्स, प्रोस्टेट और लिवर कैंसर के मामले ज्यादा मिलते हैं. महिलाओं में बढ़ रहा कैंसर का खतरा हाल के वर्षों में, खासकर 50 साल से कम उम्र की महिलाओं में कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं. अमेरिकी कैंसर सोसायटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2002 में महिलाओं में कैंसर के मामले पुरुषों की तुलना में 51 प्रतिशत ज्यादा थे, जो 2025 तक बढ़कर 82 प्रतिशत हो गई हैं. इस वृद्धि का मुख्य कारण ब्रेस्ट और थायरॉयड कैंसर में बढ़ोतरी है, जो देर से मां बनने के बाद, मोटापा, शराब का सेवन और अनहेल्दी लाइफस्टाइल से संबंधित हैं. पुरुषों में कैंसर और मृत्यु दर पुरुषों में कुल कैंसर के मामले अधिक होने के बावजूद उनकी मृत्यु दर भी ज्यादा है. उदाहरण के लिए, मेलानोमा (त्वचा कैंसर) में पुरुषों की मृत्यु दर महिलाओं की तुलना में अधिक है. इसका कारण उनकी स्किन की मोटाई, जनेटिक संरचना और रेगुलर स्वास्थ्य जांच की कमी हो सकती है. हार्मोनल और जेनेटिक कारण हार्मोनल प्रभाव भी कैंसर के खतरे को प्रभावित करते हैं. महिलाओं में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ब्रेस्ट और Uterus के कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं, जबकि पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन प्रोस्टेट कैंसर के जोखिम को प्रभावित करता है. इसके अलावा जेनेटिक कारक जैसे BRCA जीन म्यूटेशन महिलाओं में ब्रेस्ट और Ovarian के कैंसर का जोखिम बढ़ाते हैं. क्या कहते हैं डॉक्टर? एम्स झज्जर के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. नवीन कुमार बताते हैं कि कुल मिलाकर पुरुषों और महिलाओं में कैंसर का खतरा अलग-अलग है. यह शारीरिक, हार्मोनल, जनेटिक और लाइफस्टाइल से जुड़े कारकों पर निर्भर करता है. महिलाओं में कुछ विशिष्ट प्रकार के कैंसर के मामले बढ़े हैं, जबकि पुरुषों में कुल कैंसर के केसेज ज्यादा हैं. रेगुलर हेल्थ चेकअप, हेल्दी लाइफस्टाइल और समय पर इलाज से कैंसर के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है. याद रखें, कैंसर किसी एक लिंग तक सीमित नहीं है. सही देखभाल और जागरूकता ही इसे रोकने का सबसे अच्छा तरीका है. इसे भी पढ़ें: क्या है AI डिप्रेशन सिंड्रोम, नई पीढ़ी क्यों हो रही इसका शिकार? Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

कैंसर का खतरा पुरुषों और महिलाओं दोनों में अलग है और यह सिर्फ शरीर की संरचना तक सीमित नहीं है. लाइफस्टाइल, हार्मोनल प्रभाव, जेनेटिक और सोशल-इकोनॉमिक रीजन भी इसमें अहम भूमिका निभाते हैं. आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं.
ग्लोबल डाटा पुरुष बनाम महिलाएं
ग्लोबल आंकड़े दिखाते हैं कि पुरुषों में कैंसर की कुल घटनाएं महिलाओं की तुलना में ज्यादा हैं. 2022 में पुरुषों में कैंसर के मामले 10.6 मिलियन थे, जबकि महिलाओं में यह 9.3 मिलियन था. हालांकि, कुछ विशेष प्रकार के कैंसर महिलाओं में ज्यादा पाए जाते हैं. इनमें ब्रेस्ट कैंसर और लिवर कैंसर आदि शामिल हैं. वहीं, पुरुषों में लंग्स, प्रोस्टेट और लिवर कैंसर के मामले ज्यादा मिलते हैं.
महिलाओं में बढ़ रहा कैंसर का खतरा
हाल के वर्षों में, खासकर 50 साल से कम उम्र की महिलाओं में कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं. अमेरिकी कैंसर सोसायटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2002 में महिलाओं में कैंसर के मामले पुरुषों की तुलना में 51 प्रतिशत ज्यादा थे, जो 2025 तक बढ़कर 82 प्रतिशत हो गई हैं. इस वृद्धि का मुख्य कारण ब्रेस्ट और थायरॉयड कैंसर में बढ़ोतरी है, जो देर से मां बनने के बाद, मोटापा, शराब का सेवन और अनहेल्दी लाइफस्टाइल से संबंधित हैं.
पुरुषों में कैंसर और मृत्यु दर
पुरुषों में कुल कैंसर के मामले अधिक होने के बावजूद उनकी मृत्यु दर भी ज्यादा है. उदाहरण के लिए, मेलानोमा (त्वचा कैंसर) में पुरुषों की मृत्यु दर महिलाओं की तुलना में अधिक है. इसका कारण उनकी स्किन की मोटाई, जनेटिक संरचना और रेगुलर स्वास्थ्य जांच की कमी हो सकती है.
हार्मोनल और जेनेटिक कारण
हार्मोनल प्रभाव भी कैंसर के खतरे को प्रभावित करते हैं. महिलाओं में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ब्रेस्ट और Uterus के कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं, जबकि पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन प्रोस्टेट कैंसर के जोखिम को प्रभावित करता है. इसके अलावा जेनेटिक कारक जैसे BRCA जीन म्यूटेशन महिलाओं में ब्रेस्ट और Ovarian के कैंसर का जोखिम बढ़ाते हैं.
क्या कहते हैं डॉक्टर?
एम्स झज्जर के ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. नवीन कुमार बताते हैं कि कुल मिलाकर पुरुषों और महिलाओं में कैंसर का खतरा अलग-अलग है. यह शारीरिक, हार्मोनल, जनेटिक और लाइफस्टाइल से जुड़े कारकों पर निर्भर करता है. महिलाओं में कुछ विशिष्ट प्रकार के कैंसर के मामले बढ़े हैं, जबकि पुरुषों में कुल कैंसर के केसेज ज्यादा हैं. रेगुलर हेल्थ चेकअप, हेल्दी लाइफस्टाइल और समय पर इलाज से कैंसर के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है. याद रखें, कैंसर किसी एक लिंग तक सीमित नहीं है. सही देखभाल और जागरूकता ही इसे रोकने का सबसे अच्छा तरीका है.
इसे भी पढ़ें: क्या है AI डिप्रेशन सिंड्रोम, नई पीढ़ी क्यों हो रही इसका शिकार?
Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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