गोरे लोगों को ही ज्यादा क्यों होता है स्किन कैंसर? दुनिया में हर साल आते हैं इतने मामले
दुनिया भर में कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन इनमें त्वचा कैंसर यानी स्किन कैंसर एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है. खासतौर पर गोरे लोगों (fair-skinned population) में इसकी दर बहुत अधिक पाई जाती है. वैज्ञानिक शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है कि त्वचा का रंग, मेलानिन की मात्रा और सूरज की पराबैंगनी (UV) किरणों का सीधा असर स्किन कैंसर की संभावना को बढ़ा देता है. मेलानिन और स्किन की सुरक्षा मेलानिन हमारी त्वचा का प्राकृतिक रंगद्रव्य है, जो सूर्य की हानिकारक UV किरणों से बचाव करता है. गहरी त्वचा वाले लोगों (dark-skinned) में मेलानिन की मात्रा ज्यादा होती है, जो एक तरह से प्राकृतिक सनस्क्रीन का काम करती है. शोध बताते हैं कि मेलानिन त्वचा को UV से मिलने वाले डीएनए नुकसान को लगभग 3 गुना कम कर देता है. वहीं, गोरे लोगों में मेलानिन बहुत कम होता है. इसी कारण उनकी त्वचा जल्दी जल जाती है और कैंसर कोशिकाएं बनने का खतरा बढ़ जाता है. जेनेटिक कारण भी जिम्मेदार गोरी त्वचा वाले लोगों में MC1R जीन अक्सर जिम्मेदार पाया गया है. यह जीन मेलानिन बनाने के लिए जिम्मेदार होता है. जब इसमें गड़बड़ी होती है, तो पर्याप्त मेलानिन नहीं बन पाता और UV से सुरक्षा कमजोर हो जाती है. यही वजह है कि गोरे लोगों में मेलेनोमा (melanoma सबसे खतरनाक स्किन कैंसर) का खतरा ज्यादा होता है. UV किरणें और बढ़ता खतरा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) के मुताबिक, साल 2022 में दुनिया भर में करीब 3.32 लाख नए मेलेनोमा मामले दर्ज हुए. इनमें से लगभग 2.67 लाख केस UV किरणों की वजह से थे. यह आंकड़ा बताता है कि धूप में ज्यादा समय बिताना, बिना सुरक्षा के टैनिंग करना और ओज़ोन परत की कमी सीधा स्किन कैंसर से जुड़ा हुआ है. रिसर्च क्या कहती है? अमेरिका के National Cancer Institute द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च (2020) में पाया गया कि गोरे लोगों में स्किन कैंसर का खतरा काले और भूरे रंग की त्वचा वालों की तुलना में कई गुना ज्यादा है. रिसर्च के अनुसार, Caucasian आबादी में melanoma का lifetime risk लगभग 2.6 प्रतिशत तक होता है, जबकि अफ्रीकी और एशियाई मूल के लोगों में यह दर 0.1 प्रतिशत से भी कम पाई गई. यह अंतर साफ बताता है कि त्वचा के रंग और मेलानिन की मात्रा का स्किन कैंसर पर गहरा असर पड़ता है. हर साल कितने मामले आते हैं? साल 2024 और 2025 के आंकड़े बताते हैं कि स्किन कैंसर, खासकर मेलेनोमा, लगातार बढ़ रहा है. AIM at Melanoma Foundation के अनुसार 2024 में अमेरिका में करीब 200,340 नए मेलेनोमा मामले सामने आए, जिनमें से लगभग 100,640 invasive और 99,700 non-invasive (in situ) थे, जबकि करीब 7,990 लोगों की मौत हुई. वहीं, 2025 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में करीब 104,960 नए invasive melanoma केस और 107,240 melanoma in situ केस दर्ज हो सकते हैं, जिनसे लगभग 8,430 मौतें होने की संभावना जताई गई है. गोरे लोगों को स्किन कैंसर अधिक होने की मुख्य वजह उनकी त्वचा में मौजूद मेलानिन की कमी है. यह कमी उन्हें UV विकिरण से मिलने वाले डीएनए नुकसान के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना देती है. साथ ही जेनेटिक फैक्टर और सूरज की किरणों का लगातार असर कैंसर का खतरा और बढ़ा देता है. शोधों से यह भी साबित हो चुका है कि 80 प्रतिशत से ज्यादा मेलेनोमा मामले सीधा UV एक्सपोजर से जुड़े होते हैं. इसे भी पढ़ें- ये नए दौर का इश्क है...Gen Z कैसे फरमाती है इश्क? जानें सिचुएशनशिप से लेकर ब्रेडक्रंबिंग जैसे टर्म्स का मतलब Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

दुनिया भर में कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन इनमें त्वचा कैंसर यानी स्किन कैंसर एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है. खासतौर पर गोरे लोगों (fair-skinned population) में इसकी दर बहुत अधिक पाई जाती है. वैज्ञानिक शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है कि त्वचा का रंग, मेलानिन की मात्रा और सूरज की पराबैंगनी (UV) किरणों का सीधा असर स्किन कैंसर की संभावना को बढ़ा देता है.
मेलानिन और स्किन की सुरक्षा
मेलानिन हमारी त्वचा का प्राकृतिक रंगद्रव्य है, जो सूर्य की हानिकारक UV किरणों से बचाव करता है. गहरी त्वचा वाले लोगों (dark-skinned) में मेलानिन की मात्रा ज्यादा होती है, जो एक तरह से प्राकृतिक सनस्क्रीन का काम करती है. शोध बताते हैं कि मेलानिन त्वचा को UV से मिलने वाले डीएनए नुकसान को लगभग 3 गुना कम कर देता है. वहीं, गोरे लोगों में मेलानिन बहुत कम होता है. इसी कारण उनकी त्वचा जल्दी जल जाती है और कैंसर कोशिकाएं बनने का खतरा बढ़ जाता है.
जेनेटिक कारण भी जिम्मेदार
गोरी त्वचा वाले लोगों में MC1R जीन अक्सर जिम्मेदार पाया गया है. यह जीन मेलानिन बनाने के लिए जिम्मेदार होता है. जब इसमें गड़बड़ी होती है, तो पर्याप्त मेलानिन नहीं बन पाता और UV से सुरक्षा कमजोर हो जाती है. यही वजह है कि गोरे लोगों में मेलेनोमा (melanoma सबसे खतरनाक स्किन कैंसर) का खतरा ज्यादा होता है.
UV किरणें और बढ़ता खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) के मुताबिक, साल 2022 में दुनिया भर में करीब 3.32 लाख नए मेलेनोमा मामले दर्ज हुए. इनमें से लगभग 2.67 लाख केस UV किरणों की वजह से थे. यह आंकड़ा बताता है कि धूप में ज्यादा समय बिताना, बिना सुरक्षा के टैनिंग करना और ओज़ोन परत की कमी सीधा स्किन कैंसर से जुड़ा हुआ है.
रिसर्च क्या कहती है?
अमेरिका के National Cancer Institute द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च (2020) में पाया गया कि गोरे लोगों में स्किन कैंसर का खतरा काले और भूरे रंग की त्वचा वालों की तुलना में कई गुना ज्यादा है. रिसर्च के अनुसार, Caucasian आबादी में melanoma का lifetime risk लगभग 2.6 प्रतिशत तक होता है, जबकि अफ्रीकी और एशियाई मूल के लोगों में यह दर 0.1 प्रतिशत से भी कम पाई गई. यह अंतर साफ बताता है कि त्वचा के रंग और मेलानिन की मात्रा का स्किन कैंसर पर गहरा असर पड़ता है.
हर साल कितने मामले आते हैं?
साल 2024 और 2025 के आंकड़े बताते हैं कि स्किन कैंसर, खासकर मेलेनोमा, लगातार बढ़ रहा है. AIM at Melanoma Foundation के अनुसार 2024 में अमेरिका में करीब 200,340 नए मेलेनोमा मामले सामने आए, जिनमें से लगभग 100,640 invasive और 99,700 non-invasive (in situ) थे, जबकि करीब 7,990 लोगों की मौत हुई. वहीं, 2025 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में करीब 104,960 नए invasive melanoma केस और 107,240 melanoma in situ केस दर्ज हो सकते हैं, जिनसे लगभग 8,430 मौतें होने की संभावना जताई गई है.
गोरे लोगों को स्किन कैंसर अधिक होने की मुख्य वजह उनकी त्वचा में मौजूद मेलानिन की कमी है. यह कमी उन्हें UV विकिरण से मिलने वाले डीएनए नुकसान के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना देती है. साथ ही जेनेटिक फैक्टर और सूरज की किरणों का लगातार असर कैंसर का खतरा और बढ़ा देता है. शोधों से यह भी साबित हो चुका है कि 80 प्रतिशत से ज्यादा मेलेनोमा मामले सीधा UV एक्सपोजर से जुड़े होते हैं.
इसे भी पढ़ें- ये नए दौर का इश्क है...Gen Z कैसे फरमाती है इश्क? जानें सिचुएशनशिप से लेकर ब्रेडक्रंबिंग जैसे टर्म्स का मतलब
Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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